अस्पताल में भर्ती माँ को टिफिन देकर वापस आ रहे शख्स को अचानक दो गोली लगती है , 1992 के दंगे में | अचानक ही तो हुआ था दंगा ,वह युवक मुआवजे के लिए अदालत में जाता है सालों साल सुनवाई के तीस साल बाद जिला न्यायालय का फैसला आता है , अदालत मुआवजे के तर्क से सहमत नहीं होती लेकिन भावनातमक नुकसान के लिए 49000 के मुआवज़े का आदेश देती है |
मिली जानकारी के मुताबिक रथयात्रा के दौरान 2 जुलाई 1992 को शहर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। पांच जुलाई की शाम 18 वर्षीय मनीष कुमार चौहान और उसके परिजन अस्पताल में भर्ती माँ को टिफिन देकर लौट रहे थे ,इस बीच, दो अजनबियों ने नेहरू ब्रिज पार करते समय गोलियां चला दीं। हमले में मनीष चौहान और उनके परिजन घायल हो गए। मनीष की कमर और सीने में गोली लगी है।मनीष को वीएस अस्पताल ले जाया गया जहां 12 दिनों तक उसका इलाज चला।
ठीक होने के बाद मनीष चौहान ने 1994 में मुकदमा दायर कर सरकार को कानूनी नोटिस देकर 7 .01 लाख की मुआवजे की मांग की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार सांप्रदायिक दंगों की स्थिति में अपने लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य में विफल रही है। सार्वजनिक सड़कों पर हथियारों के साथ चलने वाले लोगों को रोकने में अधिकारी विफल रहे।राज्य सरकार ने मनीष चौहान के दावे की वैधता पर सवाल उठाया और सरकारी वकील के मुताबिक मनीष के घायल होने के बाद उन्हें एक हजार का अनुदान दिया गया था और मुआवजे के वह हकदार नहीं है |
मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि मनीष चौहान को अस्पताल में भर्ती होने के लिए कोई खर्च नहीं उठाना पड़ा, लेकिन घर में व्यक्ति की चोट और इलाज से उसे और उसके रिश्तेदारों को असुविधा जरूर हुई होगी.अदालत ने माना कि मनीष को अपनी स्थिति के कारण गंभीर दर्द और आघात लगा होगा, लेकिन मनीष द्वारा मांगी गई मुआवजे की राशि पर सहमत नहीं था। हालांकि, सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट ने सरकार को 6% ब्याज के साथ मुआवजे के रूप में 49,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था।