खबर यह नहीं है कि ललित कला (Fine arts) के छात्र कुंदन कुमार महतो को एमएस यूनिवर्सिटी (MSU) ने पिछले साल ‘आपत्तिजनक’ कलाकृतियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। इसके कारण पिछले मई में कैंपस में बड़ा बवाल भी हो गया था। खबर यह है कि उसी छात्र को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU). द्वारा गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया है। महतो ने बीएचयू के 102वें दीक्षांत समारोह में 12 दिसंबर को गोल्ड मेडल लिया।
एमएसयू ने महिलाओं पर यौन हमले (sexual assault) पर अखबारों में छपे लेखों की कतरनों से हिंदू देवी-देवता बनाने पर महतो के खिलाफ कठोर कदम उठाया था। अक्टूबर में महतो इसके खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर एमएसयू को नोटिस भी जारी किया गया था।
2017 से 2021 तक बीएचयू के फैकल्टी ऑफ विजुअल आर्ट्स में मूर्तिकला विभाग के छात्र महतो ने कहा, “यह कितनी विडंबना है कि एक यूनिवर्सिटी ने मेधावी (meritorious) छात्र के रूप में मुझे गोल्ड मेडल दिया है, जबकि दूसरी यूनिवर्सिटी ने मुझे प्रतिबंधित कर दिया था।”
महतो ने कहा, “मुझे गोल्ड मेडल से सम्मानित इसलिए किया गया, क्योंकि मैंने अपने विभाग में चार साल के स्नातक अध्ययन (bachelor studies) में टॉप किया था।” बता दें कि महतो को एक जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर निकाल दिया गया था, जो दक्षिणपंथी (right-wing) समर्थकों द्वारा उनकी कलाकृति का विरोध करने के बाद बनाई गई थी।
उन्होंने गर्व से कहा, “गोल्ड मेडल ही इस बात का प्रमाण है कि मैं मेहनती छात्र हूं। बीएचयू में मेरे शिक्षकों ने मुझे इस तरह ढाला है कि मैं एक कलाकार के रूप में अपने करियर में बेहतर कर सकूं। उन्होंने मुझे सोना बना दिया है। लेकिन बड़ौदा में मेरे साथ जो हुआ, वह बहुत भयानक था।”
बता दें कि महतो को जांच समिति की रिपोर्ट भी नहीं दी गई। इसके लिए उन्होंने आरटीआई का भी सहारा लिया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। महतो कई बार एमएसयू के अधिकारियों से बहाल करने की गुहार लगा चुके हैं। सिर्फ छात्र ही नहीं, यहां तक कि पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं सहित देश भर के प्रमुख कलाकारों ने बड़ौदा में विश्वविद्यालय के अधिकारियों से आग्रह किया था कि दक्षिणपंथी संगठनों का विरोध करने वाले छात्र को निष्कासित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
मई में विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखे एक पत्र में भट्ट ने कहा था कि उनके द्वारा तैयार की गई कलाकृतियां न तो उन्हें अश्लील लगती हैं और न ही आपत्तिजनक। महतो ने कहा कि बीएचयू में उनके शिक्षक अभी भी अनावश्यक विवाद से उनका नाम हटाने की मांग कर रहे हैं।
कौन हैं कुंदनः
कुंदन कुमार महतो बचपन से ही बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अपने गांव फुलकाहा गोडैन में मिट्टी से मूर्तियां बनाते थे। यही जुनून उन्हें वर्षों बाद गुजरात के वडोदरा में प्रसिद्ध महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (MSU) में ले गया। लेकिन 22 वर्षीय छात्र की कलाकारी को लेकर हुए विवाद ने उसके सपनों को धूल चटा दी। उन्हें अभी भी विश्वविद्यालय से प्रतिबंधित कर दिया हुआ है। गौरतलब है कि उनकी विवादित कलाकृति को MSU में केवल एक आंतरिक ज्यूरी को दिखाई गई थी। इसे प्रदर्शन के लिए मंजूरी नहीं दी गई थी। वह सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए नहीं थी। फिर भी विवाद उठा दिया गया। यह अभी तक नहीं मालूम कि उसकी तस्वीरें किसने जारी कीं।
तब महतो मूर्तिकला में अपनी मास्टर डिग्री के पहले वर्ष में थे। उन्होंने तब कहा था, “मैं एक ऐसे गांव से आता हूं जहां लोग स्कूल के बाद दिहाड़ी मजदूर के रूप में नौकरी करते हैं। मैंने लंबे समय से इस विश्वविद्यालय में आने और भारतीय कला में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का सपना देखा था, लेकिन मैं चार महीने बाद ही जेल में बंद हो गया।”
9 मई को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक सदस्य की शिकायत पर धारा 295A (किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) और धारा 298 (जानबूझकर किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से बोलना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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