गांधीनगरः जमानत पर बाहर आने के लगभग एक महीने बाद गुजरात के पूर्व मंत्री विपुल चौधरी रविवार को अंजना-चौधरी समुदाय के विशाल कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के साथ दिखे। सीएम समुदाय के ‘स्नेह मिलन’ में भाग ले रहे थे। वहां सतर्क और विवादों से दूर रहने वाले मुख्यमंत्री का विपुल चौधरी के साथ देखा जाना असामान्य घटना थी। इसलिए कि उनकी ही सरकार कथित रूप से 800 करोड़ रुपये के घोटाले में विपुल चौधरी के खिलाफ जांच कर रही है।
अंजना चौधरी को संख्या और प्रभाव से ओबीसी के बीच एक शक्तिशाली समुदाय माना जाता है। उनमें से कई उत्तर गुजरात में डेयरी और कृषि क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं। रविवार का कार्यक्रम मनसा तालुका के सोलैया गांव में था। इसे एक एनआरआई ने आयोजित किया था। इसमें पार्टी लाइन से परे गुजरात के चौधरी समुदाय के लगभग सभी नेताओं ने भाग लिया था।
प्रोग्राम में भाजपा के अशोक चौधरी भी थे, जिन्होंने जनवरी 2021 में मेहसाणा के दूधसागर डेयरी के चेयरमैन के चुनाव में विपुल को हराया था। विपुल को जमानत पर रिहा करने का आदेश विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद ही आया था।
उदार नजरिया यह है कि शायद सीएम पटेल को मंच पर विपुल की उपस्थिति के बारे में पता नहीं था। हालांकि, बहुसंख्यक झुकाव दूसरी ओर रहा। शायद इसीलिए भाजपा ने विपुल के साथ समझौते की दिशा में पहला कदम रखा है, जो आज भी शक्तिशाली चौधरी नेता बने हुए हैं। दूसरी ओर, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार को देखते हुए विपुल के पास भी बहुत कम विकल्प हैं।
अंजना-चौधरी समुदाय के एक सीनियर नेता और रविवार की बैठक के एक आयोजक ने तर्क दिया कि यह बहुत संभव है कि सीएम पटेल को उनके आने तक मंच पर विपुल की उपस्थिति के बारे में पता नहीं हो। उन्होंने कहा, “यह एक सामाजिक समारोह था। कार्यक्रम के मुख्य मेजबान रमन चौधरी और विपुल चौधरी कॉलेज में सहपाठी थे। इसलिए जाहिर है कि उन्होंने विपुल को दोस्त के रूप में बुलाया हो। अगर आपने गौर किया हो तो सीएम ने अपने संबोधन में अन्य लोगों का नाम लेते हुए विपुल का नाम नहीं लिया।’
कांग्रेस के सीनियर नेता और पोरबंदर के विधायक अर्जुन मोढवाडिया ने जेल जाने से लेकर बाहर आने तक विपुल का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह भाजपा की रणनीति का एक और संकेत था। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि सहकारिता आंदोलन स्वतंत्र रहे, लेकिन दुर्भाग्य से (भाजपा) सरकार लोगों पर दबाव डालकर समर्पण कराती है या लोगों को सहकारी आंदोलन से हटा देती है। विपुल चौधरी उसी के शिकार हुए हैं।’
मोढवाडिया ने कहा कि वह विपुल के साथ मुख्यमंत्री के मंच साझा करने के बारे में अटकलें नहीं लगाना चाहते। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता ऐसा क्यों हुआ। हो सकता है कि या तो विपुल को सरेंडर करने के लिए मजबूर किया गया हो या फिर कोई समझौता हुआ हो।”
इसके बारे में पूछे जाने पर विपुल ने कहा, “मैं सीएम की ओर से नहीं बोल सकता कि उन्होंने मेरे साथ मंच साझा क्यों किया। लेकिन मैं कह सकता हूं कि मैंने मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा किया, क्योंकि मैं उनकी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी में हूं। इतनी-सी बात है।”
यह पूछने पर कि क्या उनके और सत्ता पक्ष के बीच कोई समझौता हो गया है, विपुल ने कहा- ‘मुझे भी ऐसी बातें सुनने को मिल रही हैं। लेकिन तथ्य यह है कि मैं भाजपा में था, हूं और रहूंगा… बाकी सब अटकलें हैं।’
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा चुनाव से दो महीने पहले सितंबर में विपुल की गिरफ्तारी चौंकाने वाली घटना थी। तब भाजपा ने एक तरह से जुआ खेला था। विपुल कभी शंकरसिंह वाघेला सरकार में गृह मंत्री थे, और पूर्व मुख्यमंत्री ने उनके समर्थन में एक रैली को संबोधित भी किया था, जिसमें चौधरी समुदाय से भाजपा को वोट देने के लिए कहा था।
अक्टूबर में गुजरात सरकार ने विपुल की ज़मानत अर्ज़ी का यह कहते हुए विरोध किया कि जांच अभी भी जारी है और चार्जशीट दायर नहीं की गई है।
विपुल ने पलटवार की कोशिश की। अर्बुदा सेना नाम के चौधरी समुदाय के एक सामाजिक संगठन के साथ भाजपा के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। उन्होंने अपनी रिहाई की मांग की।
15-17 लाख की संख्या वाले इस समुदाय की उत्तर गुजरात में परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता को देखते हुए बहुत अटकलें थीं। सब जानना चाहते थे कि विपुल किसका समर्थन करेंगे। मेहसाणा जिले के विसनगर से विपुल को आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से टिकट दिलाने की बात भी हुई थी।
गुजरात में भाजपा को राज्य में अब तक का सबसे बड़ा जनादेश मिला। उधर, नतीजे घोषित होने के चार दिन बाद ही विपुल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई।
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