कोविड वर्षों यानी 2020 और 2021 के के अधिकांश समय में लोग घरों में बंद ही रहे। ऐसे में बच्चों की आबादी बढ़ने का सहज अनुमान लगाया गया था। लेकिन हुआ सब उलटा। महामारी से पहले की तुलना में उन दो वर्षों में अहमदाबाद में हुए जन्मों में लगभग 17% की गिरावट दर्ज की गई। अचरज यह कि 2022 की शुरुआत में कोविड के मामले कम होने और आम जीवन के पटरी पर लौटने के बावजूद शहर की जनसंख्या में कोई खास वृद्धि नहीं रही।
इस साल नवंबर-अंत तक शहर में 88,711 बच्चों का जन्म हुआ, जबकि 2020 में 89,201 और 2021 में 87,406 बच्चे पैदा हुए थे। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष इस आंकड़ों में थोड़ा सुधार हुआ है। फिर भी यह उत्साहजनक नहीं है। इसलिए कि 2019 में इसी शहर ने 1.06 लाख नए बच्चों का स्वागत किया था।
अहमदाबाद नगर निगम (AMC) के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, “2019 में 1.06 लाख बच्चे शहर में पैदा हुए थे। इनमें से 56,566 लड़के और 49,661 लड़कियां थीं। लेकिन 2020 और 2021 में जीवित रहना ही प्रमुख चिंता बन गया और परिवार नियोजन पीछे छूट गया। इसका सीधा असर जन्म दर पर पड़ा।” उन्होंने कहा कि दंपती अभी तक परिवार की योजना बनाने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए बच्चों के जन्म की संख्या के प्री-कोविड स्तर तक पहुंचने में एक साल और लग सकता है।
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जयवंत मकवाना कहते हैं, “महामारी ने नौकरी छूटने, वेतन में कटौती और महंगाई के कारण परिवारों में वित्तीय संकट पैदा कर दिया है। इसके कारण दंपती गर्भधारण (pregnancy) में देरी कर सकते हैं। इसके अलावा, महिलाओं में मानसिक तनाव और पुरुषों में कम कामेच्छा (libido) ने भी जन्म दर कम करने में योगदान दिया है।”
एएमसी के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, “कुछ मामलों में हमने देखा है कि अधिक युवा महिलाओं ने कोविड के वर्षों के दौरान छोटे शहरों के नर्सिंग होम में बच्चों को जन्म देना पसंद किया, क्योंकि वे उनके घरों के करीब ही थे। यह भी जन्म पंजीकरण (birth registrations) कम रहने का बड़ा कारण हो सकता है।”
Also Read: कक्षा 6 – 8 तक 10 दिन की ‘बैगलेस एजुकेशन’ दी जाएगी: शिक्षा मंत्री