गुजरात हाई कोर्ट के जनादेश के मद्देनजर मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने जिस आरटीआई पोर्टल का उद्घाटन किया था, वह 24 घंटे से भी कम समय बाद ही काम नहीं कर रहा।
वाइब्स ऑफ इंडिया ने दिन में कम से कम चार बार पोर्टल की जांच की। हर बार साइट को डाउन ही पाया (देखें स्क्रीनशॉट)। गौरतलब है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में पारित किया गया था। गुजरात सरकार ने 2021 में आखिरकार पोर्टल लॉन्च किया, लेकिन वह भी बेकार रहा।
पोर्टल का संपर्क वाला सेक्शन अक्षम है। किसी भी प्रश्न या मार्गदर्शन के लिए मदद करने वाला कोई नहीं है। नागरिकों को उनके अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। यदि आप अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न वाले सेक्शन में जाते हैं, तो वह भी केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है। गुजरातियों द्वारा मुख्य रूप से उपयोग किए जाने वाले पोर्टल के लिए प्रश्न और उत्तर गुजराती भाषा में नहीं है।
बता दें कि पोर्टल को ऑनलाइन करने का मुख्यमंत्री पटेल का निर्णय गुजरात हाई कोर्ट के समक्ष क्रमशः 2018 और 2019 की दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के मद्देनजर था, जिसमें आरटीआई आवेदनों की ऑनलाइन फाइलिंग को लागू करने की मांग की गई थी।
इससे पहले राज्य में आरटीआई आवेदनों के लिए ऑनलाइन फाइलिंग और शुल्क भुगतान की सुविधा की मांग करने वाली दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था। मुख्य न्यायाधीश अरविंद और न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने पूछा था कि “क्या आप आरटीआई आवेदनों को ऑनलाइन करने के लिए तैयार हैं या नहीं।” इसकी अगली सुनवाई निर्धारित होने पर राज्य को 17 नवंबर तक अदालत के सवालों का जवाब देने की उम्मीद थी।
जवाब में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मंगलवार को आरटीआई आवेदनों को ऑनलाइन दाखिल करने की सुविधा देने के लिए एक ऑनलाइन सूचना का अधिकार (आरटीआई) पोर्टल लॉन्च किया।
अब सचिवालय के किसी भी विभाग से जानकारी लेने के लिए rtionline.gujarat.gov.in पर ऑनलाइन आरटीआई आवेदन दाखिल किए जा सकते हैं। राज्य सरकार के बयान के अनुसार जल्द ही चरणबद्ध तरीके से मुख्यालय और जिला स्तर के कार्यालयों के लिए यह सेवाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी।
आरटीआई कार्यकर्ता पंक्ति जोग ने पोर्टल में कई कमियां पाईं हैं। उन्होंने कहा, ‘हर बार जब आप आरटीआई दाखिल करना चाहते हैं, तो आपको अपनी जानकारी भरनी होगी और लॉग इन करना होगा। यह सुविधा गुजरात पोर्टल के लिए विशिष्ट है। जबकि मध्य या यहां तक कि राजस्थान पोर्टल तक में यह परेशानी नहीं है। ग्रामीणों या उन लोगों के लिए जो तकनीक से इतने परिचित नहीं हैं, यह परेशानियों से भरी सुविधा है। इसे दूर करने की जरूरत है।”
जोग कहती हैं कि जब आप पोर्टल में गुजराती भाषा का उपयोग करते हैं, तो यह स्पष्ट है कि उन्होंने अंग्रेजी से गुजराती में सामग्री का अनुवाद करने के लिए गूगल अनुवाद या इसी तरह के टूल का उपयोग किया है। जिसमें व्याकरण संबंधी त्रुटियां हैं और अनुवाद में बहुत कुछ खो गया है। इस पोर्टल का उपयोग गुजराती प्रमुख रूप से करेंगे, फिर भी ऐसा घटिया काम क्यों? उन्होंने कहा, “गुजरात में कोई सूचना आयुक्त नहीं है। पिछले 11 नवंबर को सेवानिवृत्त हो गए थे, लेकिन सरकार के पास नया आयुक्त नियुक्त करने की कोई अग्रिम योजना नहीं थी। कम से कम तब, जब वे पोर्टल लॉन्च कर रहे थे। ”
एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता पंकज भट्ट आरटीआई दाखिल करने पर फीस में 40% की वृद्धि की बात करते हैं। उन्होंने कहा, “ऑनलाइन पोर्टल पर मानक शुल्क 10 रुपये है, लेकिन जब आप गुजरात आरटीआई पोर्टल के माध्यम से भुगतान करते हैं तो यह बढ़कर 24 रुपये हो जाता है। अगर हम एक से अधिक आरटीआई दाखिल करना चाहते हैं तो यह काफी महंगा है।”
भट्ट यह भी कहते हैं, “पोर्टल तक पहुंचने पर ऐसा लगता है कि जीएडी विभाग भी पोर्टल के साथ ही आया, क्योंकि वह हाई कोर्ट के दबाव में थे। पोर्टल सार्वजनिक उपयोग के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। यह बीटा वर्जन हो सकता है।”
गौरतलब है कि राज्य सूचना आयुक्त दिलीप ठाकर 11 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए थे और तब से यह पद खाली है।