ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी को रोकने के लिए गठित उपभोक्ता अदालत काम के बोझ से दबी है | उपभोक्ता दिवस पर आरोपी और फरियादी दोनों बस एक ही चाहत रखते है की फैसला जल्दी हो जाये ,लेकिन फैसला हो भी कैसे जब ना तो ना जजों के पद भरे हैं ना कर्मचारियों के | लगभग ४० हजार मामले लबित हैं , जिनके समाधान के लिए लोकअदालत का सहारा लिया जा रहा है , जंहा आपसी सहमति से मामले सुलझ जाये |
गुजरात समेत पूरे देश में उपभोक्ताओं के साथ खरीद-बिक्री में अनियमितता और अन्याय के कई मामले सामने आ रहे हैं. उपभोक्ता अदालत में जागरूक नागरिक शिकायत कर रहे हैं। आज ही के दिन 24 दिसंबर 1988 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित हुआ था और उपभोक्ताओं को कुछ महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हुए थे। उस समय गुजरात की मुख्य अदालत यानि गुजरात राज्य आयोग और राज्य के जिलों के 38 उपभोक्ता अदालतों में मुकदमे दायर होने और अदालत में जज की कमी के कारण बड़ी संख्या में मामले लंबित थे। गुजरात में 1990 से जिला स्तर पर उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग और राज्य स्तर पर राज्य आयोग का गठन किया गया है। पिछले 31 वर्षों के दौरान गुजरात के विभिन्न उपभोक्ता निवारण आयोगों में प्राप्त शिकायतों पर नजर डालें तो अब तक कुल 2,72,974 शिकायतें प्राप्त हुई हैं। जिसमें से 2,38,429 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है।
जबकि 34,555 ग्राहक अभी भी विभिन्न वस्तुओं की खरीद में अपने कदाचार या अन्याय के लिए न्याय पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वहीं राज्य की मुख्य अदालत यानी गुजरात राज्य उपभोक्ता आयुक्त में सीधे दर्ज मामलों की संख्या 6097 है, जिनमें से 4872 मामलों का निपटारा हो चुका है, जबकि 1225 मामले अभी भी लंबित हैं.
इसके अलावा जिला उपभोक्ता अदालत में इस आदेश को चुनौती देने वाली 37,214 अपीलें हुई हैं, जिनमें से 33,674 अपीलों का निपटारा किया जा चुका है और 3,540 अपीलें लंबित हैं.सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य भर के कुल 38 उपभोक्ता मंचों में से सबसे ज्यादा शिकायतें अहमदाबाद शहर की तीन अदालतों में लंबित हैं. जिनकी संख्या 8371 है। जबकि वडोदरा की दो अदालतों में 5484 मामले लंबित हैं, जबकि सूरत की दो अदालतों में 5039 मामले लंबित हैं. अहमदाबाद सिटी कंज्यूमर कोर्ट में पिछले 31 साल में 35,514 शिकायतें दर्ज हुई हैं।
18,520 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर वडोदरा शहर है। जिसके बाद सूरत की अतिरिक्त उपभोक्ता अदालत में 17,312 मामले दर्ज किए गए हैं।
समय पर न्याय के लिए तड़प रहे हैं उपभोक्ता , ना जज हैं ना कर्मचारी ,बदहाली से जूझ रहे उपभोक्ता अदालत
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