गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार से इतना तो यह हो ही गया कि अल्पसंख्यक वोटों (minority votes) पर अब पहले की तरह उसका कब्जा नहीं रह गया है। वैसे भी गुजरात में कभी भी बहुत सारे मुस्लिम विधायक नहीं हुए हैं। 2017 में जीतने वाले तीन विधायक 1995 के बाद से विधानसभा में जाने वालों में सबसे अधिक थे।
इस बार कांग्रेस कई सीटों पर अल्पसंख्यक वोटों की उम्मीद कर रही थी। ऐसा लगता है कि हाल के चुनावों में यह पैटर्न बदल गया है। कांग्रेस ने न केवल 2017 के विधानसभा चुनावों में हासिल की गई सीटों को खो दिया है, बल्कि अपने कुछ गढ़ों में भी उसे हार का सामना करना पड़ा है। इनमें से कई में अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है। इनमें से कई क्षेत्रों में कांग्रेस का वोट शेयर लगभग 10 प्रतिशत गिर गया।
एकमात्र मुस्लिम विधायक अब कांग्रेस के इमरान खेड़ावाला हैं, जिन्होंने अहमदाबाद में जमालपुर-खड़िया सीट को बरकरार रखा है। हालांकि, खेड़ावाला की जीत का अंतर 29,000 वोटों से घटकर 13,600 रह गया। विधायक ने बताया था कि आम आदमी पार्टी (AAP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) उनके मार्जिन और वोट शेयर को प्रभावित किया, जो 58 प्रतिशत से घटकर 46 प्रतिशत रह गया।
इन सीटों के नतीजे बता रहे हैं कांग्रेस का संकट:
• जम्बूसर (भरूच जिला): यहां के मतदाताओं में मुसलमानों की संख्या 31.25 प्रतिशत है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक संजय सोलंकी को 46.71 प्रतिशत से कम 39.07 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा के देवकिशोरदासजी भक्तिस्वरूपदासजी स्वामी को 42.62 प्रतिशत से बढ़कर 55.74 प्रतिशत वोट मिले।
• दरियापुर (अहमदाबाद जिला): इस सीट पर 46 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। कांग्रेस ने 2012 में परिसीमन (delimitation) के बाद से इसे अपने कब्जे में रखा है। लेकिन पार्टी का वोट शेयर 50 प्रतिशत से गिरकर 44.67 प्रतिशत हो गया, जबकि भाजपा का वोट प्रतिशत 45.14 प्रतिशत से बढ़कर 49.05 प्रतिशत हो गया। परिसीमन से पहले 1990 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था।
तीन बार के विधायक कांग्रेस के ग्यासुद्दीन शेख ने कहा कि इस बार सामान्य तौर पर 68-70 प्रतिशत होने वाला मुस्लिम मतदान घटकर 62 प्रतिशत रह गया है। उन्होंने कहा कि आप और एआईएमआईएम ने उनके जनाधार को खत्म कर दिया है।
उन्होंने कहा कि दरियापुर में मुझे लगभग 12,000-15,000 हिंदू वोट और 50,000 मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। इस बार हिंदू और मुस्लिम दोनों वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। मेरे जैसे निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना आसान है। इस पैटर्न का एक और उदाहरण वांकानेर है, जहां महमद जावेद पीरजादा (कांग्रेस उम्मीदवार जो 2017 में जीते थे) हार गए। हालांकि कोली मतदाता उनके साथ बने रहे, लेकिन मुस्लिम वोट खिसक गए।
• दाहोद और झालोद (दाहोद जिला): कांग्रेस ने अपने दोनों गढ़ खो दिए। दाहोद (14 फीसदी मुस्लिम वोट) में इसका वोट शेयर 52.16 फीसदी से गिरकर 25.95 फीसदी हो गया। जीतने वाली भाजपा का वोट शेयर 42.03 प्रतिशत से बढ़कर 43.54 प्रतिशत हो गया। आप ने 20 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।
झालोद में, कांग्रेस भाजपा और आप के बाद तीसरे स्थान पर रही। जहां सत्तारूढ़ दल का वोट शेयर 39.91 प्रतिशत से बढ़कर 51.41 प्रतिशत हो गया, वहीं आप ने 29.53 प्रतिशत वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा छीन लिया।
जिला कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा, “दाहोद के (दाउदी बोहरा) मुस्लिम समुदाय ने अतीत में भी भाजपा को वोट दिया था। इस बार आप की वजह से खेल हो गया। उसने दाहोद के निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का गणिति गड़बड़ा दिया। दूसरे, मौजूदा विधायक को टिकट नहीं दिया गया। हालांकि पार्टी के पास कोई विकल्प भी नहीं था, क्योंकि झालोद के विधायक भावेश कटारा ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। फिर पार्टी की जिला इकाई में गुटबाजी बहुत थी।
• खंभालिया और मंगरोल (सौराष्ट्र): कांग्रेस सौराष्ट्र में महत्वपूर्ण मुस्लिम वोट होते हुए भी इन सीटों पर हार गई। देवभूमि द्वारका जिले के खंभालिया में अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं की संख्या 16.5 प्रतिशत और जूनागढ़ जिले के मांगरोल में 16.98 प्रतिशत है।
मौजूदा विधायक विक्रम मैडम की संभावनाओं को आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार इसुदन गढ़वी ने झटका दिया। उन्होंने सलाया में कांग्रेस के वोट शेयर को आधा कर दिया, जो एक महत्वपूर्ण मुस्लिम उपस्थिति वाली नगर पालिका है। मैडम ने कहा, “आम तौर पर मुझे सलाया से 12,000 वोट और बीजेपी को 1,500 वोट मिलते हैं। लेकिन इस चुनाव में मुझे केवल 6,500 वोट मिले और इतने ही वोट इसुदान को मिले। भाजपा की संख्या बढ़कर लगभग 1,700 हो गई। गरीबों में सबसे गरीब मुस्लिम मुफ्त के वादे के लालच में आ गए।”
मांगरोल में कांग्रेस के मौजूदा विधायक बाबू वाजा भाजपा के भगवानजी करगटिया से 22,508 मतों से हार गए। आप के पीयूष परमार ने 34,314 वोट यानी 23.22 फीसदी वोट शेयर हासिल कर बीजेपी विरोधी वोटों को बांट दिया। एआईएमआईएम उम्मीदवार को 10,789 वोट मिले।
उन्होंने कहा, “जहां हमने एआईएमआईएम को अपने सुनिश्चित वोटों का एक हिस्सा खो दिया, वहीं आप ने अल्पसंख्यक समुदाय के सबसे गरीब के लगभग 4,000 वोट छीन लिए। मालधारी (पशुपालक) ने भी आप के लिए काफी मतदान किया, क्योंकि समुदाय ने आप के इस दावे को मान लिया कि गढ़वी अगला मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।’
खेड़ा जिले में कांग्रेस महुदा, थसरा और कपडवंज के निर्वाचन क्षेत्रों में भी हार गई, जहां 13-18 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। उन्होंने कहा, ‘खेड़ा जिले में निश्चित रूप से कुल मिलाकर भाजपा को बढ़त मिली है। मटर में भी गिरावट नगण्य (0.58 प्रतिशत) है और हमारे परिणामों को प्रभावित नहीं करती है। बेशक, कांग्रेस को अपने पहचान के संकट के कारण अल्पसंख्यक बहुल अधिकांश हिस्सों में नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी खुले तौर पर अपने वोट बैंक का समर्थन नहीं कर रही है, जिससे वह भ्रमित लगती है। इससे लोगों में कांग्रेस के प्रति विश्वास की कमी में दिखाई देता है।
एकमात्र निर्वाचन क्षेत्र जहां अल्पसंख्यक वोटों ने इस बार कांग्रेस की मदद की, वह है-आनंद जिले में खंभात। वहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 11 प्रतिशत थी। कांग्रेस ने करीबी मुकाबले में यह सीट बीजेपी से छीन ली। उसे 43.53 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेपी 41.19 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई।
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