नौकरशाही भारत में शासन का स्थायी संसाधन है, लेकिन जैसी कहावत है कि कुछ भी स्थायी नहीं है, पिछले कुछ वर्षों में भारत में बाबू शाही का चेहरा भी काफी बदल गया है। लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के उदय के बाद राजधानी में व्यापक पैमाने पर इसमें बदलाव देखने को मिल रहा है।
खैर, नौकरशाह आईएएस और आईपीएस भी राज्य के मोहरे के रूप में काम करने के आदी हैं। और यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है , जैसे राजनीतिक नेतृत्व होगा वैसे ही प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी।
ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल का है जिसमें सेवारत मुख्य सचिव और दशकों के अनुभव वाले व्यक्ति ने भारत के प्रधानमंत्री के प्रति उदासीनता अनादर और कर्तव्यों की कथित उपेक्षा करने का दुस्साहस एक आपदा प्रबंधन से संबंधित बैठक में दिखाया।
लेकिन वापस आते हैं, 2014 के बाद दिल्ली में नमो नेतृत्व में हुए नौकरशाही के बदलाव पर जो काफी महत्वपूर्ण रहे हैं, अनिवार्य रूप से राजनीतिक मोर्चे पर और शासन की शैली में मोदी सरकार हमेशा लुटियन संस्कृति के साथ टकराव के मोड पर रही है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके संजय बारू के मुताबिक दिल्ली और भारत के कई हिस्सों में नौकरशाही अब अंग्रेजी में नहीं सोचती है । यहां तक की प्रशासनिक शैली में भी क्षेत्रीय या स्थानीय सोच को प्रधानता मिल रही है।
संख्या और कुछ विशिष्ट पोस्टिंग के संदर्भ में देखें तो केंद्र सरकार में गुजरात कैडर के 18 आईएएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर तैनात है जिनमें से चार पी एम ओ में 4 वित्त मंत्रालय में और दो गृह मंत्रालय में ।
पिछले साल गुजरात के 1986 बैच के आईएएस अधिकारी पी डी वाघेला को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में पदस्थ किया गया। अन्य महत्वपूर्ण पदों में सीईआरसी प्रमुख के तौर पर पीके पुजारी और एफएसएसएआई प्रमुख रीता तेवतिया भी गुजरात कैडर की है। अक्टूबर 2020 तक यानी कि 6 साल में मोदी ने पीएमओ में गुजरात की कोर टीम बना ली।
प्रधानमंत्री के निजी सचिव के तौर पर हार्दिक शाह की नियुक्ति ने कई लोगों को चौका दिया था, शाह को 2017 में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली लाया गया था , शाह की पृष्ठभूमि गुजरात पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी )में एक सहायक अभियंता की है । बेशक 2015 में वह आईएएस बने और 2020 में प्रधानमंत्री के निजी सचिव बनने वाले सबसे कम उम्र के अधिकारी में राजीव टोपनो की तरह शुमार हो गए, राजीव भी पीएमओ में तैनात गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी थे।
यही हाल जी. जी. मुर्मू के मामले में देखने को मिला उन्हें सरकारी आडिट बॉडी , नियंत्रक और महालेखा परीक्षक सीएजी का प्रमुख नियुक्त किया गया इसके पहले मुर्मू को 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुछेद 370 को निरस्त करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जम्मू कश्मीर का उप राज्यपाल बनाया गया था।
इसी तरह एक अन्य चर्चित नाम संजय भावसार का है, मूल रूप से गुजरात प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजय भावसार को केंद्र सरकार ने ओएसडी बनाकर 2016 में आईएएस के तौर पर पदोन्नति दी गई थी। इसी तरह जगदीश ठक्कर को दिल्ली लाकर भारत सरकार में उप सचिव का दर्जा दिया गया।
गुजरात कैडर के 1972 बैच के अधिकारी पीके मिश्रा जिन्होंने गुजरात में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के तौर पर मोदी के अधीन काम किया था अब पीएमके प्रधान सचिव हैं यहां तक की एके शर्मा जिन्हें हाल ही में यूपी में एमएलसी और भाजपा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है वह भी मोदी के पसंदीदा गुजरात कैडर के अधिकारियों में से एक है, 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को कुछ समय के लिए सीबीआई का अंतिम प्रमुख बनाया गया था।
करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में संजय बारू ने कहा,यदि आप पिछले 30 वर्षों में प्रधानमंत्री कार्यालय की संरचना को देखते हैं तो व्यापक बदलाव आया है , यह पहले एक महानगरीय संस्थान, सेंट स्टीफंस कालेज संस्थान जैसा लगता था, जो सामान्य तौर से भारत और इंडिया के बीच एक चुनौती पैदा करता था , लेकिन अब ऐसा नहीं है, मोदी सरकार में नीति आयोग में भी उस वर्ग का एकमात्र प्रतिनिधि है। नौकरशाही पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक मोदी का नौकरशाही के प्रति झुकाव निश्चित रूप से बढा है खासतौर से गुजरात कैडर के अधिकारियों के साथ और कोई नई कहानी भी नहीं है।
इस मसले में 90 के मध्य दशक का पंजाब का किस्सा दिलचस्प है, बेअंत सिंह की हत्या के बाद हरचरण सिंह बारड ने पदभार संभाला लेकिन एक अतिरिक्त संवैधानिक शक्ति के केंद्र के रूप में उनकी पत्नी बेटी और बेटे स्थापित हो गए।
1996 में पंजाब कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ओपी शर्मा को एच डी देवगौड़ा सरकार ने नागालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया था लेकिन अंदर की कहानी यह है कि बराड ने शर्मा को अपने गृह राज्य और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के अहम किरदार केपीएस गिल के बाद डीजीपी बनाने से मना कर दिया था और बदले में अपने खास सुबे सिंह को डीजीपी बनाकर पुरस्कृत किया।
संयुक्त मध्यप्रदेश में स्वर्गीय अजीत जोगी ने तब सुर्खियां बटोरी थी जब उन पर अर्जुन सिंह की रहम नजर पड़ी थी, माना जाता है कि इसमें तात्कालिक प्रधानमंत्री राजीव गांधी का भी स्पष्ट आशीर्वाद था।
जोगी तब इंदौर के कलेक्टर थे, जब अर्जुन सिंह ने उन्हें प्रशासनिक सेवा से हटाकर राज्यसभा के लिए भेजा था नौकरशाही के लिए यह मामला कूलिंग पीरियड से हटकर था यह तब हुआ था जब जोगी के खिलाफ कथित भूमि अधिग्रहण के एक करोड़ के मामले में पुलिस जांच चल रही थी, उस समय एक करोड़ बड़ी धनराशि होती थी।
हरियाणा में ऐसा कहा जाता है की आईएएस की प्रतिष्ठा और अधिकार में गिरावट मुख्यमंत्री देवीलाल के कार्यकाल के दौरान ही शुरू हो गई थी, वह (देवीलाल)जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि मेरे बेटे ओम प्रकाश चौटाला के बजाय क्या मुझे भजनलाल के बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए, ने कथित तौर पर जातिवाद तथा समूह वाद को बढ़ावा दिया जाहिर है कि इसको दूसरी बार बदल दिया गया था।
पश्चिम बंगाल में मंत्रियों और अधिकारियों के बीच इतनी दुश्मनी देखी गई है कि 1960 के दशक के अंत में बांग्ला कॉन्ग्रेस के साथ संयुक्त मोर्चा गठबंधन शासन के दौरान वरिष्ठ माकपा मंत्री हरे कृष्ण कोनार ने नौकरशाह को गटर वर्मिंन के रूप में वर्णित किया था। पश्चिम बंगाल के अनीश मजूमदार, एन कृष्णमूर्ति, रतन सेन गुप्ता और टीसी दत्त को तत्कालीन ज्योति बसु सरकार के दौरान मुख्य सचिव बनाया गया था। यह पद उन्हें कम्युनिस्ट समर्थक तथा सख्त रुख ना अपनाने के एवज में दिया गया था। राज्य में अधिकारियो और सहानुभूति रखने वालों का एक अनूठा कैडर भी था जिसे स्टीट कैडर कहा जाता था। इस तरह के मसले दूसरे राज्यों में भी मौजूद हो सकते हैं और शायद अभी भी मौजूद हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में अक्सर सबसे वरिष्ठ अधिकारी बहुत ही सामान्य के मुद्दों पर मुख्य सचिव बनने से चूक गए। यहां तक कि ज्योति बसु शासन के दौरान फॉरवर्ड ब्लॉक के मंत्रियों का भी अक्सर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के साथ आमना सामना होता रहता था।
वर्तमान एनडीए सरकार के संदर्भ में एक बार फिर से ऐसे मौके आए हैं जब प्रधानमंत्री मोदी ने नौकरशाही पर कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की। बाबू सब कुछ करेगे … वह खाद के गोदाम और रासायनिक गोदाम संचालित करेंगे हवाई जहाज भी उडाएंगे । हमने कौन सी बड़ी शक्ति बनाई है?
2020 में केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों को निर्देशित किया था कि वह 50 -55 साल की उम्र सीमा वाले तथा 30 साल की सेवा पूरी करने वाले अधिकारियों का लेखा जोखा तैयार करे, जिसका उद्देश्य तथाकथित भ्रष्ट अधिकारियों से छुटकारा पाना था।
जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्ट या असक्षम समझे जाने वाले लगभग 400 अधिकारियों को निर्धारित समय से पहले ही जबरदस्ती बाहर का रास्ता ,जबरन रिटायर कर दिखाया जा चुका है। यह तथाकथित डैमोकल्स की तलवार अन्य संवर्गों के अधिकारियों के भाग्य पर भी लटकी हुई है।
2019 में 50 भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों को अनिवार्य तौर से सेवानिवृत्त कर दिया गया था ,इसी तरह केंद्रीय सचिवालय सेवा संवर्ग के 280 से अधिक अधिकारियों ने अपनी नौकरी खो दी। इसी तरह 2014 से 19 के बीच मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 23 वरीष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आयोजन का सामना करना पड़ा । दशको से बाबू ने हर चीज का सबसे बेहतर आनंद लिया है उन्हें बुरे फैसलों का शायद ही कोई परिणाम भुगतना पड़ा हो यहां तक की जीएसटी के नियमों उप नियमों के लिए भी आसानी से राजनीतिक शासकों को दोषी ठहराया गया लेकिन हालात बदल गए हैं, भारत के मजबूत कुलीन वर्ग के लिए मुश्किल का दौर शुरू हो गया है।
भारतीय बाबूशाही का बदलता चेहरा: राजनीतिक वफादारी के किस्से
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