मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने के लिए सोमवार से अभियान शुरू हो गया। चुनाव आयोग के अनुसार, मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का काम मतदाताओं की पहचान स्थापित करने और मतदाता सूची में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के उद्देश्य से किया जा रहा है। पिछले साल संसद से पारित हुआ चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, वोटर आईडी के साथ आधार कार्ड को लिंक करने के लिए अधिकृत करता है। इसका उद्देश्य दो मतदाताओं की डुप्लिकेट प्रविष्टियों को बाहर करना है। हालांकि, संशोधित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 की उप-धारा 23 (6) में यह आदेश दिया गया है कि किसी भी वैध मतदाता को बाहर नहीं किया जा सकता है। खासकर तब, जब वे आधार प्रस्तुत करने में असमर्थता के लिए “पर्याप्त कारण” बताते हैं और इसके बजाय वैकल्पिक दस्तावेज दे सकते हैं।
आधार को मतदाता सूची से जोड़ना एक दशक पुराना विचार है। इसे 2015 में राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम द्वारा व्यवहार में लाया गया था। इसे उसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया था। शीर्ष अदालत वर्तमान में कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला द्वारा संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। कई विपक्षी दलों, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) और पिछले साल चुनावों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करने वाले पूर्व नौकरशारहों और विशेषज्ञों के समूह ने लिंकिंग का विरोध किया है।
उन्होंने अनिवार्य रूप से व्यक्तिगत सत्यापन के बजाय आधार को आधार बनाकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कम से कम 30 लाख नामों को हटाने का हवाला दिया है। 2019 में प्रतिष्ठित लोगों ने एक बयान जारी कहा था: “आधार संख्या को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना प्रभावी रूप से एक ऐसा कदम होगा, जिसमें महत्वपूर्ण सरकारी धन खर्च होगा और मतदाताओं की वास्तविकता का निर्धारण करने में कोई लाभ नहीं होगा। इसके विपरीत, गैर-नागरिकों के पास कई आधार आईडी मिले हैं। स्पष्ट रूप से गलत नामांकन के कई मामलों को ध्यान में रखते हुए, नकली को छोड़ दें, आधार को मतदाता सूची से जोड़ने से भारतीय चुनावी प्रणाली कमजोर और दूषित हो जाएगी। यह भारतीय चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करेगा और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाएगा।”
डेटा लीक के संबंध में कई शिकायतों का हवाला देते हुए आईएफएफ ने संशोधनों के पारित होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था: “हाल ही में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक- 2021 को दिसंबर में विवादास्पद रूप से पारित किया गया, जो आधार को मतदाता सूची से जोड़ने की अनुमति देता है। यह मतदाता रूपरेखा और लक्ष्यीकरण के माध्यम से चुनाव में हेराफेरी की संभावना, मतदान के रुझान और विकल्पों की भविष्यवाणी करना, असुविधाजनक मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाना और संभावित मतदाताओं को थोक संदेश भेजने को बढ़ावा देने वाला है। सरकारी वेबसाइटों के पर साइबर सुरक्षा खतरों का बढ़ना दरअसल डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल देता है।
पिछले हफ्ते ही एक बयान में चुनाव आयोग ने कहा था: “इस बात पर जोर दिया गया है कि आवेदकों की आधार संख्या को जोड़ते समय, आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम- 2016 की धारा 37 के तहत प्रावधान, 2016 का पालन करना चाहिए। इसे किसी भी सूरत में सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। यदि मतदाताओं की जानकारी सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए (होना) आवश्यक है, तो आधार विवरण को हटा दिया जाना चाहिए या छिपा देना चाहिए।”
मतदाता का नाम केवल उस स्थान पर मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा, जहां वह सामान्य रूप से निवास नहीं करता है। बयान में कहा गया है, ” इसे बता देने के लिए नेशनल वोटर सर्विस पोर्टल सहित कई ईसी वेबसाइटों पर ऑनलाइन या ऑफलाइन एक नया फॉर्म 6बी उपलब्ध है। मतदाता के लिए ओटीपी के साथ अपने आवेदन को प्रमाणित करना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि चुनाव आयोग मानता है कि आधार डेटाबेस में जनसांख्यिकीय विवरण भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, प्रमाणीकरण का विकल्प बना रहता है। इस डेटा को इकट्ठा करने के लिए अधिकारी घरों का दौरा करेंगे और शिविर भी लगाएंगे। 4 जुलाई को मुख्य चुनाव अधिकारियों को चुनाव आयोग के पत्र के पैरा 5.2 में कहा गया है कि अगर किसी मतदाता के पास आधार नहीं है, तो उसे 11 वैकल्पिक दस्तावेज में से कोई भी जमा करने के लिए कहा जा सकता है, जो फॉर्म 6बी में हैं। इनमें पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस और स्थायी खाता संख्या (पैन) शामिल हैं।
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