गुजरात सरकार द्वारा शुरू किए गए एक बचाव सुविधा नीति के अंतर्गत संरक्षित किए गए
तेंदुओं को आराम और स्वास्थ्य लाभ मिलता है, लेकिन गुजरात सरकार के इस पहल से उन्हें अपने जंगली तरीकों के एक पहलू को छोड़ना पड़ता है, जैसे कि, अब वो अपने जोड़ों के साथ डेट पर नही जा सकते हैं।
प्रदेश में तेजी से बढ़ रही तेंदुओं की आबादी ने जूनागढ़ के सक्करबाग केंद्र में बड़ी बिल्ली ब्रह्मचर्य की इस नीति को बढ़ावा दी है। दरअसल, बचाए गए तेंदुओं को सहयात्री आवास नहीं दिया जाता है। इस सुविधा में अब 52 बंदी तेंदुए हैं, जिनमें 24 नर और 28 मादा हैं। जबकि इसमें कुल मिलाकर केवल 60 जानवरों के लिए जगह है। “जंगल से पकड़े गए तेंदुओं को बचाव केंद्र में प्रजनन करने की अनुमति नहीं है। नर और मादा को अलग-अलग रखा जाता है,” -गुजरात वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की।
हर बार जब सक्करबाग बचाव केंद्र की क्षमता अधिक हो जाती है, तो तेंदुओं को पास के बचाव केंद्र में स्थानांतरित कर दिया जाता है। पिछले दो वर्षों में, 108 तेंदुओं को सक्करबाग से जामनगर में ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (GZRRC) में स्थानांतरित किया गया है। आरआईएल के कॉर्पोरेट मामलों के निदेशक परिमल नाथवानी ने कहा, “हम गुजरात सरकार के साथ हमारे समझौता ज्ञापन के अनुरूप सक्करबाग से जीजेडआरआरसी में तेंदुए प्राप्त करते हैं।”
नथवानी ने कहा, “हम बचाए गए तेंदुओं की देखभाल करते हैं जो तुरंत जंगल में छोड़ने के लायक नहीं हैं, हमारा उद्देश्य घायल और बीमार तेंदुओं और उनके अनाथ शावकों की सेवा करना है।”
गिर-सोमनाथ जिले के देवलिया रेंज में एक अन्य वन विभाग की सुविधा में पहले से ही लगभग 40 तेंदुए हैं। गुजरात की आधिकारिक वन्यजीव जनगणना से पता चलता है कि तेंदुओं की आबादी 2021 में बढ़कर 3,200 हो गई, जो 2016 में 1,395 थी।
नर और मादा तेंदुए की आबादी को अलग करने का निर्णय 6 अगस्त 2014 को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) द्वारा जारी अधिसूचना पर आधारित है। अधिसूचना में कहा गया है, “तेंदुए और अन्य प्रजननशील प्रजातियों में अन्य बातों के साथ-साथ संरक्षण मूल्य नहीं है।”
गुजरात इकोलॉजिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जीईईआर) फाउंडेशन के पूर्व निदेशक आर डी काम्बोज ने कहा, “तेंदुए गन्ने के खेतों और झाड़ियों सहित किसी भी प्राकृतिक जगह में संभोग और प्रजनन कर सकते हैं।”