मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैन समुदाय (Jain Community) की उस याचिका (Petition) को खारिज कर दिया है, जिसमें मांसाहारी खाद्य पदार्थ (non-veg food )के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। इसके साथ ही अदालत ने सवाल किया कि क्या इस तरह के कदम से मांसाहारी भोजन करने वालों के अधिकारों का हनन नहीं होगा। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति माधव जामदार ने पूछा “आप दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण (encroaching) क्यों करना चाहते हैं?” वे सोमवार को तीन जैन धार्मिक ट्रस्टों और एक व्यवसायी ज्योतिंद्र शाह की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। इसमें मांसाहारी भोजन के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वे शांति और गोपनीयता से जीने के अपने अधिकार का घोर उल्लंघन कर (they are in utter violation of their right to life, to live in peace and privacy) रहे हैं।
प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट पर नॉन-वेज फूट के विज्ञापनों पर रोक के लिए केंद्र और राज्य को नियम/दिशानिर्देश/आदेश बनाने और जारी करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका तीन जैन ट्रस्टों और एक व्यवसायी ने दाखिल की थी। ये हैं- श्री ट्रस्टी आत्मा कमल लब्धिसूरीश्वरजी जैन ज्ञानमंदिर ट्रस्ट, सेठ मोतीशा धार्मिक एवं चैरिटेबल ट्रस्ट, श्री वर्धमान परिवार और व्यवसायी ज्योतिंद्र शाह। इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा: “क्या यह हमारे अधिकार क्षेत्र में है? … यह एक विधायी कार्य (legislative function) है और हाई कोर्ट राज्य का अंग होने के नाते यह नहीं कह सकता कि कौन-सा कानून बनना (the HC being an organ of the State cannot say what legislation must be passed) चाहिए। यह विधायकों को तय (legislators to decide) करना है। हम केवल तभी हस्तक्षेप करेंगे जब किसी व्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन होगा।”
याचिकाकर्ताओं के वकील गुंजन शाह ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता से कहा, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि न खाएं और न ही बेचें, लेकिन नॉन-वेज को बढ़ावा न दें। क्या यह अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता) के तहत गारंटीकृत नहीं (Is this not guaranteed under Article 19 (freedomsहै?” शाह ने आगे कहा, “आप दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण क्यों करना चाहते हैं? विज्ञापन मेरे घर में भी आ दिख रहे हैं और मेरी निजता का अतिक्रमण कर रहे हैं।” इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “कानून का ज्ञान नहीं रखने वाला एक सामान्य व्यक्ति कहेगा कि ‘टीवी बंद करो’। हम आम लोग नहीं हैं। हम कानून के बिंदु को देखेंगे। आप जो कह रहे हैं वह कानून होने पर ही मिलना है। लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है।”
इस पर शाह ने कहा कि अनुच्छेद 51 (ए) (जी) के तहत सभी जीवित प्राणियों के लिए दया करना नागरिकों का कर्तव्य है। शाह ने कहा कि उन्होंने अधिकारियों को आवेदन दिया था और कुछ आदेश पारित किए गए थे। उन्होंने उन्हें चुनौती देने के लिए याचिका में संशोधन करने के लिए अदालत की अनुमति मांगी। न्यायाधीशों ने इनकार कर दिया, लेकिन उन्हें एक नई याचिका दायर करने की अनुमति दे दी।
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