वडोदरा: ऋण मेले के दौरान टारगेट पूरा करने का दबाव वड़ोदरा में बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) के लिए महंगा सौदा साबित हुआ है। उसे एक ग्राहक को ब्याज के साथ लगभग 14 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया है।
यह आदेश वड़ोदरा जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग- अतिरिक्त ( District Consumer Disputes Redressal Commission-additional ) के सदस्य धवल सोनी ने दिया है। उन्होंने “अनुचित व्यापार व्यवहार” (unfair trade practice) के नियमों के अनुसार कार्य नहीं करने के लिए बैंक को जिम्मेदार ठहराया है।
बैंक ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता अजय शाह को दिए गए लोन के रूप में नौ करोड़ रुपये दिखाए थे। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि यह पैसा केवल यह दिखाने के लिए था कि उन्होंने टारगेट हासिल कर लिया है। वड़ोदरा के व्यवसायी शाह ने जून 2017 में बीओबी के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि बैंक ने दो महीने से अधिक समय तक गलत तरीके से ईएमआई और ब्याज (interest) वसूला। शिकायत में कहा गया कि शाह ने मुंबई में 15 करोड़ रुपये से अधिक का एक फ्लैट बुक किया था और बीओबी ने पहले 8.34 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी दी थी। इसमें से 1.60 करोड़ रुपये उनके लोन अकाउंट में डाल दिए गए थे।
शाह ने फिर से बैंक से संपर्क किया, क्योंकि वह लोन अमाउंट बढ़ाना चाहते थे। बैंक अधिकारियों ने 20 मार्च, 2017 को 11.22 करोड़ रुपये मंजूर करने पर रजामंदी दे दी। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि बैंक अधिकारियों ने अप्रैल 2017 में उनके पहले के लोन अकाउंट को बिना बताए बंद कर दिया और एक नया लोन अकाउंट चालू कर दिया। जबकि उन्होंने तब तक अकाउंट में पैसे डालने के लिए भी नहीं कहा था। उन्होंने कहा कि बैंक ने दिखाया कि वास्तव में बिना डिमांड ड्राफ्ट जारी किए उनके लोन अकाउंट में 9.61 करोड़ रुपये जमा किए गए।
जब उन्होंने बैंक अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि ऐसा ऋण मेले (loan mela) के दौरान टारगेट हासिल करने के नाम पर अच्छा प्रदर्शन दिखाने के लिए किया गया। शाह ने आगे दावा किया कि बैंक अधिकारियों ने उनसे कहा कि जब तक पैसा वास्तव में नहीं दे दिया जाता, तब तक उन्हें ईएमआई या कोई ब्याज नहीं देना होगा।
26 मई, 2017 को बीओबी ने उनके खाते में 9.61 करोड़ रुपये जमा किए। शाह ने फोरम में तर्क दिया कि बैंक के नियमों के अनुसार, ईएमआई लोन मिलने के एक महीने बाद शुरू होता है। लेकिन लोन वास्तव में मई में मिला और बैंक ने उनसे ब्याज राशि पर जुर्माना के साथ अप्रैल और मई के लिए कुल 15.47 लाख रुपये का शुल्क ले लिया। शाह ने बैंक के कंज्यूमर सेल को लिखा और इस मुद्दे को उठाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
आखिरकार उन्होंने यह पक्का करने के लिए 17.13 लाख रुपये का भुगतान कर दिया कि पैसे की वसूली के लिए उपभोक्ता फोरम में मामला दायर करने से पहले उन्हें डिफॉल्टर घोषित नहीं किया जाए। हालांकि, बीओबी ने शाह के दावों का खंडन किया। कहा कि उसने नियमों के अनुसार लोन मंजूर किए और दिए भी।
उपभोक्ता फोरम ने पाया कि बैंक ने लोन देते समय अपने स्थापित नियमों के खिलाफ जाकर लोन को समय से पहले देने का पत्र जारी कर दिया। फोरम ने यह भी कहा कि लोन मेले में अच्छा प्रदर्शन दिखाने के लिए बैंक द्वारा स्वीकृति पत्र (sanction letter) के नियमों के खिलाफ पैसा वितरित किया गया था। यह अनुचित व्यापार व्यवहार (unfair trade practice) के बराबर है।
यह कहते हुए कि मंजूरी पत्र ((sanction letter) ) के अनुसार शाह जून 2017 से ईएमआई का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार थे, फोरम ने बीओबी को सितंबर 2017 से उस दिन तक 8.35% वार्षिक ब्याज के साथ 13.93 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया, जिस दिन वास्तव में भुगतान किया गया था। बैंक को मानसिक परेशानी देने के लिए शाह को 25,000 रुपये और कानूनी खर्च के लिए 25,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया गया है।
Also Read: राज्यसभा में बीजेपी सांसद ने की जेजे एक्ट में बदलाव की मांग