रेलवे देश को जोड़ती है | उत्तर से दक्षिण ,पूर्व से पश्चिम | यह पुरानी बात है , और इसे पुराना बना रहे हैं रेलवे के ही एक अधिकारी | कला के माध्यम से | नाम है ,पुरुषोत्तम कुमार |जी हा | उन्होंने इसके लिए सहारा लिया है पेंटिंग का | पुरुषोत्तम कुमार की पहल के चलते ही कोसांबा रेलवे स्टेशन को बिहार की मशहूर मधुबनी पेंटिंग द्वारा सजाया गया है | वडोदरा रेल मंडल में मंडल वाणिज्य प्रबंधक पुरुषोत्तम कुमार ने “वाइब्स आफ इंडिया ” से बात करते हुए कहा की रेलवे और कला दोनों एक जैसे ही हैं | दोनों देश को जोड़ते है इसलिए मेरी कोशिश है दूसरे राज्यों की कला दूसरे राज्यों तक फैले | लोग जाने | पसंद करें , और अच्छा लगे तो सीखें भी | मधुबनी पेंटिंग द्वारा जो कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, इसी तरह कच्छ की पिछवाल पेंटिंग , मठ पेंटिंग भी प्रसिद्ध है |यहा मधुवनी पेंटिंग कराया और अगर कभी मौका मिला तो वहां ( बिहार में) यंहा की कला को फैलाएंगे | वह इसे ” कल्चरल इंटरलिंकिंग ” के तौर पर देखते हैं | कोसंबा जैसा छोटा स्टेशन चुने जाने का कारण बताते हुए कुमार ने कहा की हमारे डिवीजन के जो बड़े स्टेशन हैं वंहा पर सौदर्यीकरण के लिए पहले से काफी कुछ किया जा रहा है | इसलिए मैंने छोटे स्टेशन को चुना | दार्शनिक अंदाज में कुमार कहते हैं “आखिर छोटे को भी बेहतर होना चाहिये | ” कुमार मूल रूप से मधुबनी के ही रहने
क्या है पेंटिंग में
सूरत जिला अंतर्गत कोसंबा रेलवे स्टेशन में बनायी गयी बिहार की प्रसिध्द मधुबनी पेंटिंग में एक व्यापक सन्देश है | इसमें किसान ,रेल और महिला सशक्तिकरण को सामूहिक तौर से दर्शाया गया है | वडोदरा रेलमंडल के मंडल वाणिज्य प्रबंधक पुरुषोत्तम कुमार के मुताबिक कोविड में जब देश परेशान था तब हमने प्रधानमंत्री की पहल पर किसान विशेष मालगाड़ी चलायी थी , जिसमे यंहा से दिल्ली केला भेजा गया था | इसलिए इसमें उसे समाहित किया है , महिला शक्ति को दर्शाया है और रेलवे तो है ही |
सौंदर्यीकरण के साथ कलाकारों का भी हुआ सम्मान
आईआईटी धनबाद और आईएसएल के छात्र रह चुके वडोदरा रेल मंडल के मंडल वाणिज्य प्रबंधक पुरुषोत्तम कुमार के अंदर का कला प्रेमी ही इस सौंदर्यीकरण का मूल है , वह इसे ईमानदारी से स्वीकार भी करते हैं , कुमार के मुताबिक कलाकारों का एक समूह कोरोना में बाकी लोगों की तरह काम खो चूका था , कोरोना के बाद भी उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था , इसलिए हमने सोचा की कलाकारों के सम्मान का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता , लेकिन यह प्रयोग सफल रहा ,अब इसे आगे भी बढ़ाने की उनकी योजना है | महाप्रबंधक कुमार के मुताबिक पेंटिंग बनाने में लगभग 200 कलाकारों ने अपना योगदान दिया , ख़ुशी की बात यह है की उनमे भी ज्यादातर महिलाएं थी |
क्या है मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी चित्रकला अथवा मिथिला पेंटिंग मिथिला क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है।
मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। इसमें चटख रंगों का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काला। कुछ हल्के रंगों से भी चित्र में निखार लाया जाता है, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। ये रंग मुलत; प्राकृतिक विधि से ही तैयार किये जाते हैं |
परम्परा के मुताबिक राम -सीता विवाह के दौरान मिथिला की महिलाओं ने इसी पेंटिंग से सजावट की थी |