कैप्टन अमरिंदर सिंह को यूं तो 18 सितंबर को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा, लेकिन उनके लिए उलटी गिनती 5 अगस्त से ही शुरू हो गई थी। यही वह दिन था, जब प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने अमरिंदर के सलाहकार के रूप में अपने इस्तीफे की घोषणा की थी।
विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि पीके के पास तीन सर्वेक्षण थे। इनसे पता चला कि अमरिंदर मुख्यमंत्री के रूप में बेहद अलोकप्रिय हो गए थे। इस “सर्वेक्षण की वास्तविकता” पर पीके और गांधी परिवार के बीच भी चर्चा हुई थी, जब वह उनसे मिले थे। सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी ने इस बैठक के बाद कैप्टन को बदलने का मन बना लिया था।
कांग्रेस में किशोर के आलोचकों का कहना है कि वह ‘माहौल’ यानी हवा बनाने में माहिर थे, लेकिन वह यह भी स्वीकार करते हैं कि जमीनी हकीकत यह थी कि कैप्टन अलोकप्रिय हो चुके थे।
यह सच है कि पीके कांग्रेस में शामिल होने के इच्छुक थे। लेकिन उन्होंने गांधी परिवार को बताया कि जब तक कुछ महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए जाते, तब तक उनके शामिल होने का कोई मतलब नहीं होगा। इन चालों में से एक, अब ऐसा प्रतीत होता है, कैप्टन को पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना था। इसलिए जब कैप्टन ने पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी, तो उन्हें पता होना चाहिए कि इसमें पीके शामिल थे।