अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन (एएमए) ने ‘क्या पानी में सरहद होती है’ नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की स्क्रीनिंग और उस पर चर्चा का आयोजन किया। यह कार्यक्रम एएमए सेमिनार हॉल, अतिरा कैंपस, वस्त्रपुर, अहमदाबाद में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार एवं शांति कार्यकर्ता जतिन देसाई और मत्स्य पालन समुदाय के नेता वेलजीभाई मसानी इसके मुख्य वक्ता थे।
एएमए पीआर कमेटी की सदस्य और फिल्म प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट कोर्स की कोर्स डायरेक्टर मालती मेहता ने सभा को संबोधित किया और प्रमुख वक्ताओं को मंच पर आमंत्रित किया। देसाई ने वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) के महत्व को समझाया और कहा, “फिल्म मछुआरों और उनके परिवारों की स्थिति पर केंद्रित है, खासकर जब वे पड़ोसी देश के तटरक्षक द्वारा पकड़े जाते हैं। देश के राजनीतिक एजेंडे के बीच फंसे निर्दोष मछुआरों की दुर्दशा और दुविधा एक उपेक्षित मुद्दा है।”
वेलजीभाई मसानी ने मछुआरों से संबंधित होने और समुदाय के पुरुषों और महिलाओं के दुखद जीवन के बीच रहने के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि भारतीय और पाकिस्तानी मछुआरे तो भाईचारे को साझा करते हैं, लेकिन वे अब सरकारों के एजेंडे से खो गए हैं या भ्रष्ट हो गए हैं। उनके संक्षिप्त संबोधन के बाद एएमए ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई।
क्या पानी में सरहद होती है
‘क्या पानी में सरहद होती है’ सौराष्ट्र के मछुआरों के जीवन को दिखाने वाली एक आकर्षक, दिल को छू लेने वाली और समस्या से प्रेरित डॉक्यूमेंट्री है। फिल्म का उद्देश्य मछली पकड़ने वाले समुदाय पर दो देशों के बीच समुद्री जल के बंटवारे के प्रभाव को दिखाना है। यदि भारतीय मछुआरों का एक समूह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा का पार कर जाता है, तो पाकिस्तानी तटरक्षक उन्हें पकड़कर कराची जेल ले जाते हैं।
चर्चा लंबी और जानकारीपूर्ण थी। आयोजन के दौरान कुछ उल्लेखनीय तथ्य सामने आए। वहां से पत्रों को आने में तीन महीने लगते हैं, तो शवों को चार महीने, और एक जीवित व्यक्ति को अपने वतन वापस आने में कुछ साल लग सकते हैं। यह डॉक्यूमेंट्री मछुआरों के सीमा पार यात्रा करने के कारणों और उनकी वापसी में देरी को दिखाती है।
चर्चा के दौरान जतिन देसाई ने इस मुद्दे का आदर्श समाधान- नो अरेस्ट पॉलिसी- के रूप में बताया। वक्ताओं ने सरकार और नौकरशाही की बाधा और ऐसे मानवीय मुद्दे के प्रति उनकी असंवेदनशीलता जैसे अन्य विषयों पर प्रकाश डाला। देसाई ने जोर देकर कहा कि भारत सरकार को सक्रिय होना चाहिए, अन्यथा मछुआरा समुदाय इसी तरह से परेशान रहेगा।