अहमदाबाद धमाका 2008 के 14 साल बाद हुए फैसले से दर्दनाक यादे एक बार फिर से ताजा हो गयी है. अहमदाबाद धमाका 2008 का नाम सुनते ही कई लोग अब भी कांप उठते हैं . विस्फोट में मारे गए लोगों के लिए कफन लेकर सिविल अस्पताल पहुंचे सिर्फ तीन दोस्तों की सिविल अस्पताल में हुए विस्फोट में मौत हो गई.
वे जो कफन लाए थे उसे उन्हें ही ओढ़ना पड़ा. उनके साथ सिविलअस्पताल में सेवा देने पहुंचे असरवर यूथ सर्कल के अध्यक्ष संजय पटेल को आज भी सुन नहीं सकते. बम विस्फोट के कारण कण उनके दाहिने कान में घुस गए.उस दिन को याद करते हुए भरे गले से संजयभाई पटेल ने कहा, “उस घटना के बाद आज भी उन्हें दिवाली को फटाखे फूटने से डर लगता है. वे घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं।”
मदद के बदले मिली मौत
उन्होंने आगे कहा कि जैसे ही सिविल अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर के पास बम विस्फोट की सूचना मिली,वह दोस्तों के साथ मौके पर पहुंचे और तीन दोस्त जसवंतभाई रणछोड़भाई पटेल, जयेश भागवतभाई दवे और जयकिशन चंदूभाई पटेल भी मदद के लिए के लिए दौड़ पड़े.
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उन तीनों ने मुझे ट्रॉमा सेंटर में मृतकों के कफ़न के लिए 200 मीटर कफ़न का ताका दिया और बाहर निकल गए। तभी ट्रॉमा सेंटर के बाहर एक और बम फटा, जिससे वे तीनों घायल हो गए और तीनों की मौत हो गई। तीनों मकर राशि के थे। मृतकों को ढकने के लिए लाए गए कफन को खुद से ढंकना पड़ा.
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ऐसी कई दर्दनाक कहानियां है , जो फैसले से ताजी हो गयी. लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि उसके बाद से कोई धमाका नहीं हुआ और अहमदाबाद धमाका 2008 के आरोपियों को सजा भी मिल गयी.