तिरुवनतपुरमः अडाणी समूह के लिए केरल से अच्छी खबर नहीं है। वहां की सरकार ने केरल सरकार ने यह जानने के लिए चार सदस्यीय विशेषज्ञ (expert) समिति बना दी है, जो यह देखेगी कि क्या अडाणी समूह के विझिंजम इंटरनेशनल सीपोर्ट लिमिटेड (VISL) के निर्माण से कोई तटीय(coastal) भूमि को नुकसान यानी उसका कटाव (erosion) हुआ है।
विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति क्षेत्र में मछुआरों के आंदोलन के कारण की गई है। यह आंदोलन 80वें दिन में पहुंच रहा है। आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया है कि निर्माण के कारण समुद्र का कटाव हुआ है। इससे आजीविका (livelihood) और आवास का नुकसान हुआ है। कैथोलिक चर्च के भी विरोध कर देने निर्माण कार्य ठप हो गया है।
6 अक्टूबर को जारी सरकारी आदेश में समिति से कहा गया है कि अगर निर्माण क्षेत्र में कोई तटीय कटाव हुआ हो, तो उसे रोकने और ठीक करने के ठोस उपाय बताए। समिति को रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले स्थानीय लोगों के प्रतिनिधियों की बातें सुनने के लिए भी कहा गया है।
राज्य सरकार का अब तक यही मानना था कि बंदरगाह के निर्माण से कोई तटीय कटाव नहीं हुआ है। इसलिए उसने मछुआरों की काम को रोकने की मांग को खारिज कर दिया था।
इससे पहले सरकार ने कहा था कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और एमओईएफ (MoEF) और सीसी (CC) के आदेशों के अनुसार, बंदरगाह के दोनों ओर 20 किलोमीटर की दूरी पर तटरेखा परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मापदंडों (environmental parameters) की लगातार निगरानी की जा रही है। इसका नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT), नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज (NCESS) और एलएंडटी इंफ्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड जैसे विशेषज्ञ संस्थानों द्वारा विश्लेषण भी किया जा रहा है। वैसे उक्त विशेषज्ञ समिति या तटरेखा निगरानी सेल (Shoreline Monitoring Cell) द्वारा अब तक ऐसा कोई अवलोकन (observation) नहीं किया गया है, जिससे पता चले कि विझिंजम में बंदरगाह के निर्माण से वलियाथुर और शांघुमुगम जैसे स्थानों पर उत्तर में कोई तटीय कटाव हुआ है।
हालांकि, सरकार ने मछुआरों के इस आरोप के बाद एक और विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने का फैसला किया कि विझिंजम बंदरगाह के निर्माण से आसपास के इलाकों में तटीय कटाव हुआ है। इसके लिए चर्चा के दौरान स्थानीय लोगों के प्रतिनिधियों द्वारा कैबिनेट उप समिति के समक्ष भी अनुरोध किया गया था।
सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए आंदोलन के संयोजक (convener) और चर्चों के संगठन के नेता फादर यूजीन एच परेरा ने कहा कि वे परियोजना के खिलाफ विरोध जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, “हमें वादा किया गया था कि हमारे प्रतिनिधि को समिति में शामिल किया जाएगा। अब सरकार ने अनुकूल (favourable) रिपोर्ट बनाने के मकसद से अडानी समूह की मिलीभगत से समिति का गठन कर दिया है। हमें विश्वास में नहीं लिया गया है। परियोजना के कारण समुद्र के कटाव के प्रभाव का पता लगाने के लिए मछुआरों के समुदाय ने एक समानांतर अध्ययन भी सौंपा है। हम आने वाले दिनों में भी अपना आंदोलन जारी रखेंगे।’
बहरहाल, समिति की अध्यक्षता पुणे के सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन के पूर्व अतिरिक्त निदेशक एम कुदाले करेंगे। अन्य सदस्य केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज के वीसी डॉ रिजी जॉन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस-बैंगलोर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ तेजल कानिटकर और कांडला पोर्ट ट्रस्ट के पूर्व मुख्य अभियंता (former chief engineer) डॉ पीके चंद्रमोहन हैं।
बता दें कि अगस्त 2015 में अडानी समूह के साथ यह समझौता केरल में उस समय की कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने किया था। समूह ने दिसंबर 2019 तक 1,000 दिनों में बंदरगाह को चालू करने का वादा किया था, जो नहीं हो सका। अब चल रहे विरोध आंदोलन से प्रोजेक्ट में और देरी होगी।
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