मेहसाणा के एक सिपाही को कुछ संदिग्ध नंबर नहीं मिलते तो शायद आज तक कभी पकड़े नहीं जाते आतंकी, आप यकीन नहीं कर रहे होंगे लेकिन ये 24 कैरेट सोने जितना सच है| 26 जुलाई, 2008 की शाम को सिलसिलेवार 22 बम विस्फोटों में 56 लोग मारे गए, 240 गंभीर रूप से घायल हुए और 2 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा।
देश और दुनिया में दहशत फैलाने वाली इस आतंकी घटना की चपेट में आने वाला गुजरात अकेला राज्य नहीं था बल्कि इससे पहले दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र भी इससे प्रभावित हुए थे। 5 राज्यों और राजधानी दिल्ली में पुलिस धमाके के गुनहगार की तलाश कर रही थी|
शुरुआत में, अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को एक छोटा सा भी सबूत नहीं मिल रहा था जो क्राइम ब्रांच को आतंकवादियों तक ले जा सके। क्राइम ब्रांच की 10 से ज्यादा जांच टीम दिन-रात काम कर रही थी।
तब तक क्राइम ब्रांच के अफसर आशीष भाटिया खुद क्राइम ब्रांच में रात भर रुकते थे। सभी टीमें काम कर रही थीं। हालांकि कोई लिंक नहीं मिली|
इस बीच आशीष भाटिया ने मेहसाणा पुलिस के सिपाही और डीजल मैकेनिक से एक पुलिस कांस्टेबल दिलीप ठाकोर को चुना, क्योंकि वह साइबर में पारंगत थे और सीडीआर यानी कॉल डिटेल में महारत रखते थे। पुलिस कांस्टेबल दिलीप ठाकोर ने वाइब्स ऑफ इंडिया को बताया कि यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, मानो यह भूसे के ढेर से सुई निकालने जैसा हो।
जब दिलीप ठाकोर ने शुरुआत की तो टावर से सैकड़ों नंबर और हजारों नंबर मिले। लेकिन दिलीप ठाकोर ने सैकड़ों में से कुछ संदिग्ध नंबर ढूंढकर अफसर हिमांशु शुक्ला को दिए। हिमाशु शुक्ला ने इन नंबरों पर काम करना शुरू किया और वे नंबर तीन से चार राज्यों के थे और तदनुसार अलग-अलग टीमों को भेजा गया था। उसके बाद एक के बाद एक सभी आतंकवादी पकडे गये | फिलहाल दिलीप ठाकोर अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में पीएसआई के पद पर कार्यरत हैं।
महीनों से क्राइम ब्रांच की टीम सिर्फ मूंगफली खा रही थी
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट नेटवर्क को तोड़ना क्राइम ब्रांच के अधिकारियों और टीम का सपना लग रहा था| टीम के सभी लोग रात भर काम कर रहे थे। अगर वे सुबह अलग जगह पर होते तो रात में अलग जगह पर मौजूद रहते और उनके लिए घंटों आतंकियों पर नजर रखना बहुत मुश्किल हो जाता था क्योंकि उनके पास खाने का भी समय नहीं होता था और कहि बार सब मूंगफली खा कर पूरा पूरा दिन निकल दिया करते थे|