अधिक उम्र और उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं 93 वर्षीय प्रोफेसर को अपने निश्चय से डिगा नहीं पा रही हैं। वह छात्रों को फिजिक्स पढ़ाने के लिए प्रतिदिन 60 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करती हैं। नाम है- प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा। फिजिक्स उनका जुनून है, और पढ़ाते रहना ही है जीवन का उद्देश्य।
घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने के बाद बैसाखी के सहारे खुद को सहारा देने वाली वह यहां सेंचुरियन यूनिवर्सिटी में फेलोशिप के साथ कक्षाएं लेती हैं। ऐसा वह पिछले छह साल से कर रही हैं। वह सात दशकों से भौतिकी पढ़ा रही हैं और युवाओं को प्रेरित कर रही हैं।
वह कहती हैं, ”मेरी मां वनजक्षम्मा 104 साल तक जीवित रहीं। स्वास्थ्य हमारे दिमाग में और धन दिल में है। हमें हमेशा अपने दिमाग और दिल को स्वस्थ रखना चाहिए। मैं अपनी तुलना अल्बर्ट आइंस्टीन से नहीं कर सकती, लेकिन मेरा मानना है कि मैं यहां एक उद्देश्य के लिए हूं- अपनी आखिरी सांस तक पढ़ाने के लिए।”
प्रोफेसर संथम्मा के अनुशासन, समर्पण और कड़ी मेहनत ने उनके साथियों और छात्रों को चकित कर दिया है। बी.एससी ऑप्टोमेट्री प्रथम वर्ष की छात्रा हसीना अपने प्रोफेसर के लिए व्रत करती है। वह कहती है, “मैं कभी भी प्रोफेसर संथम्मा की कक्षा को मिस नहीं करना चाहती। मैं हमेशा उनकी कक्षा का बेसब्री से इंतजार करती हूं। वह क्लास के लिए कभी देर नहीं करती हैं। वह अनुशासन, समर्पण और प्रतिबद्धता में हमारे लिए आदर्श हैं। वह अपने विषय के लिए चलती-फिरती विश्वकोश (encyclopedia) हैं।”
टीचिंग उनका सिर्फ पैशन नहीं है। एक परोपकारी होने के नाते, उन्होंने अपना घर विवेकानंद मेडिकल ट्रस्ट को दान कर, खुद किराए के मकान में रह रही हैं।
मछलीपट्टनम में 8 मार्च, 1929 को जन्मी संथम्मा जब पांच महीने की थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। उसका पालन-पोषण मामा ने किया। 1945 में उन्होंने महाराजा विक्रम देव वर्मा से फिजिक्स के लिए गोल्ड मेडल प्राप्त किया। वह तब एवीएन कॉलेज, विशाखापत्तनम, फिर मद्रास में इंटरमीडिएट की छात्रा थीं।
एक दिन में कम से कम 6 क्लास ले सकती हैः
उन्होंने फिजिक्स पढ़ने के अपने जुनून का पालन किया और इस विषय में बी.एससी ऑनर्स किया। उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय से माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी में डी.एससी (पीएचडी के बराबर) पूरा किया। बाद में 1956 में फिजिक्स के लेक्चरर के रूप में कॉलेज ऑफ साइंस, आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हुईं।
लेक्चरर से लेकर प्रोफेसर, अन्वेषक (Investigator) और पाठक तक प्रो. संथम्मा ने सब किया है। उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जैसे केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में जांच प्रभारी के रूप में भी काम किया है।
प्रोफेसर संथम्मा 1989 में 60 वर्ष की आयु में रिटायर हुईं। हालांकि, रिटायरमेंट उनके लिए सिर्फ एक शब्दजाल था। उन्होंने अपना ध्यान अनुसंधान पर लगाया और एक मानद शिक्षक (honorary lecturer) के रूप में फिर से आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हो गईं। वहां छह साल तक काम किया।
उसकी दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू होती है, जब वह दिन के क्लास के लिए नोट्स बनाना शुरू करती है। प्रोफेसर कहती हैं, “मैं एक दिन में कम से कम छह क्लासेस ले सकती हूं। समय और एनर्जी पढ़ाने में दो दो महत्वपूर्ण चीजें होती हैं। मैं इसे हमेशा अपने दिमाग में रखती हूं। मैं प्रतिदिन कम से कम 60 किलोमीटर विजाग से विजयनगरम की यात्रा करती हूं।” वह कई सम्मेलनों में भाग लेने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और स्पेन सहित कई देशों में जा चुकी हैं।
परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी और आणविक स्पेक्ट्रोस्कोपी के उनके विश्लेषण ने उन्हें 2016 में वयोवृद्ध वैज्ञानिकों की कक्षा में कई पुरस्कार और गोल्ड मेडल दिलाया। वह गर्व से कहती हैं, “आंध्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और विजयनगरम में सेंचुरियन विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रोफेसर जीएसएन राजू मेरे छात्र थे।”
प्रोफेसर की पुराणों, वेदों और उपनिषदों में भी रुचि है। उन्होंने भगवद गीता के श्लोकों के अंग्रेजी वर्जन “भगवद गीता – द डिवाइन डायरेक्टिव” नामक एक पुस्तक भी लिखी है। वह कहती हैं, “मेरे पति चिलुकुरी सुब्रह्मण्य शास्त्री का कुछ साल पहले निधन हो गया। वह तेलुगु के प्रोफेसर थे। उन्होंने मुझे उपनिषदों से परिचित कराया। मैं जल्द ही उन विषयों पर एक किताब लिखने के लिए उनका अध्ययन कर रही हूं, जो युवा पीढ़ी के लिए उपयोगी हो सकती हैं।”
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