अहमदाबाद में 2008 के सीरियल ब्लास्ट मामले में फैसला आ गया है। 14 साल बाद आये फैसले में अदालत ने 78 में से 49 आरोपियों को यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम)) के तहत दोषी पाया। कोर्ट ने सभी दोषियों को कल सुबह साढ़े दस बजे सजा सुनाने का फैसला किया है। अदालत ने मामले में संदेह के आधार पर कुल 28 आरोपियों को बरी कर दिया।
दोषियों को कल (9 फरवरी) सुबह 10.30 बजे कोर्ट में पेश किया जाएगा। सभी को धारा 302 और 120 के तहत दोषी ठहराया गया है। आरोपी आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मौजूद थे। जांच में मदद करने वाले आरोपी को छोड़ दिया गया है। धारा 302 में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।
आरक्षक से लेकर उच्चाधिकारियों तक ने दिन रात मेहनत की
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में जांच दल का हिस्सा रहे सेक्टर-1 जेसीपी आरवी असारी ने कहा कि आशीष भाटिया और अभय चुडासमा के नेतृत्व और मार्गदर्शन में जांच टीमों ने कड़ी मेहनत की, जिनके पास बहुत मजबूत नेटवर्क है। आरक्षक से लेकर उच्चाधिकारियों तक ने दिन-रात मेहनत की। जिसके कारण आज ऐतिहासिक फैसला मिला है। न्याय प्रक्रिया लंबी है। जांच में शुरू से ही सबसे छोटी कड़ी जोड़ी गई है जो आज सफल रही है।
धमाकों में 56 लोगों की गयी थी जान ,200 से अधिक हुए थे घायल
26 जुलाई, 2008 को 70 मिनट के भीतर अहमदाबाद शहर में हुए 21 बम विस्फोटों में कम से कम 56 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हो गए थे।अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में पुलिस ने दावा किया था कि आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (आईएम), कट्टरपंथियों का एक गुट है। इन धमाकों में प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) शामिल था।
एक आरोपी बना सरकारी गवाह
उनमें से एक के सरकारी गवाह बनने के बाद आरोपियों की संख्या घटकर 77 हो गई। एक वरिष्ठ सरकारी वकील ने कहा कि बाद में चार और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनका मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। अभियोजन पक्ष द्वारा 1,100 से अधिक गवाहों का परीक्षण किया गया। आरोपियों पर हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप हैं, और उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।
इन धाराओं में हुयी आरोपियों को सजा
49 आरोपियों को आईपीसी की धारा 302, 307, 326, 427, 435, 465, 468, 471, 212, 121 (ए), 124 (ए), 153 ए (1), 201, 120 बी34, 109 के तहत दोषी ठहराया गया था. गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 10, 13, 16 (1) (ए) (बी), 18, 19, 20 23, 38, 39, 40 के तहत दोषी पाया गया है.
कोर्ट के बाहर रही कड़ी सुरक्षा
फैसले के पहले विशेष अदालत के बाहर पुलिस का कड़ा घेरा बनाया गया था.मुकदमे के बाद पहली बार, अन्य वकीलों और पक्षों को अदालत कक्ष में प्रवेश करने से रोक दिया गया है.पार्किंग में कारों सहित वाहनों की जांच की गई.कोर्ट परिसर में 1 डीसीपी, 2 एसीपी और 100 पुलिसकर्मी मौजूद थे.कोर्ट में सिर्फ केस के वकीलों को ही दाखिल किया जा रहा है.अहमदाबाद शहर में संवेदनशील इलाकों में पुलिस लगातार गश्त कर रही है.
82 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया
26 जुलाई, 2008 को शहर में 20 क्षेत्रों में 21 बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 56 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हुए थे. बम ब्लास्ट के मामले में अहमदाबाद में 20 और सूरत में 15 एफआईआर दर्ज की गई थी. प्रारंभिक जांच में मामले में कुल 99 आतंकियों को नामजद किया गया था.इनमें से 82 आतंकियों को गिरफ्तार किया गया, जबकि आठ आरोपी अभी भी फरार हैं.
इस मामले में 1,163 गवाहों की हुयी गवाही
विस्फोट मामले में जेल में बंद आरोपी को 1 फरवरी को फैसला सुनाया गया था.विस्फोट मामले में फैसला आने के बाद कन्राज पुलिस ने सत्र न्यायालय में निरीक्षण किया.विस्फोट के आरोपियों को सरबमती जेल की बैरक में भी रखा गया था.जेल की सुरक्षा पर नगर पुलिस की नजर थी. इसके अलावा आईबी अधिकारियों ने जेल और कोर्ट परिसर में भी जांच की.मामले में साजिश और विस्फोट के आरोपी अयाज सैयद ने ताज के गवाह के तौर पर अदालत में गवाही दी. इस मामले में 1,163 गवाहों की गवाही ली जा चुकी है. जबकि 1,237 गवाहों को सरकार ने छोड़ दिया है.
7 राज्य की जेलों में हैं आरोपी
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले के 77 आरोपी देश के सात राज्यों की विभिन्न जेलों में बंद हैं.अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल में 49, मध्य प्रदेश की भोपाल जेल में 10, महाराष्ट्र की मुंबई की तलोजा जेल में 4, कर्नाटक की बेंगलुरु जेल में 5, केरल जेल में 6, जयपुर जेल में 2 और दिल्ली जेल में 1 आरोपी हैं.
जेल से भागने की कर चुके हैं कोशिश
विशेष अदालत ने शुरू में उच्च सुरक्षा वाली साबरमती सेंट्रल जेल के अंदर से मामले की सुनवाई की और बाद में ज्यादातर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कार्यवाही की गई. जब मुकदमा चल रहा था, तब कुछ कैदियों ने 2013 में जेल में 213 फीट लंबी सुरंग खोदकर कथित तौर पर भागने की कोशिश की थी. इस जेल तोड़ने के प्रयास का मुकदमा अभी भी लंबित है।
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