अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में चार नए ट्रस्टी नियुक्त किए गए हैं। सोमवार को ये नियुक्तियां यूनिवर्सिटी के चांसलर और राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने की। बता दें कि लगभग ढाई महीने पहले विद्यापीठ के 24 ट्रस्टियों में से आठ ने यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में राज्यपाल की नियुक्ति के विरोध में इस्तीफा दे दिया था।
शिक्षाविद और लेखक मनसुख सल्ला को महादेव देसाई समाज सेवा पुरस्कार 2022 दिए जाने के समारोह के बाद सोमवार को चांसलर आचार्य देवव्रत की अध्यक्षता में विद्यापीठ के न्यासी बोर्ड (board of trustees) की बैठक में यह निर्णय लिया गया। चार नए ट्रस्टियों में उद्योगपति गफूरभाई बिलखिया, समाजसेवी राजश्री बिड़ला, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त दिलीप ठाकर और भारतीय शिक्षक शिक्षा संस्थान (IITE) गांधीनगर के कुलपति हर्षद पटेल हैं।
नए ट्रस्टियों में वापी में बसे गांधीवादी गफूर बिलखिया को व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में उनके काम के लिए 2020 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। इसी तरह राजश्री बिड़ला को 2011 में सामाजिक कार्य के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। वह गुजरात खादी बोर्ड और गांधी स्मृति और दर्शन समिति, राजघाट नई दिल्ली की पूर्व सदस्य हैं। दोनों जगह वह तीन-तीन साल तक रहीं।
राजश्री बिड़ला इस समय आदित्य बिड़ला सेंटर फॉर कम्युनिटी इनिशिएटिव्स एंड रूरल डेवलपमेंट की प्रमुख हैं, जो विकास परियोजनाओं के लिए समूह की सर्वोच्च संस्था है। वह दशकों से कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) क्षेत्र में काम कर रही हैं।
गुजरात विद्यापीठ के अधिकारियों द्वारा केंद्र द्वारा धन जारी न करने का हवाला देते हुए बार-बार धन की कमी के दावों को ध्यान में रखते हुए नए ट्रस्टियों की नियुक्ति भी की जाती है।
सरकारी बयान में चांसलर आचार्य देवव्रत की ओर से कहा गया है, “कोई भी व्यक्ति जन्म से गांधीवादी नहीं होता है। गांधीजी के मूल्यों के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाला व्यक्ति गांधीवादी बन जाता है। ” उन्होंने विद्यापीठ के विकास में योगदान के लिए विद्यापीठ से “छुट्टी लेने” वाले ट्रस्टियों के प्रति आभार जताया है।
बता दें कि हर्षद पटेल 1 अप्रैल 2022 से गुजरात विद्यापीठ में प्रबंधन बोर्ड के चांसलर द्वारा नामित (nominated) सदस्य भी थे। विद्यापीठ के 24 ट्रस्टियों में से आठ ने विश्वविद्यालय के 68वें वार्षिक दीक्षांत समारोह से कुछ घंटे पहले 17 अक्टूबर 2022 को इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने देवव्रत को चांसलर बनाने के विरोध में इस्तीफा दिया था। उन्होंने प्रस्ताव को अस्वीकार करके राज्यपाल से “लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने” की अपील की थी।
सूत्रों के मुताबिक, इस्तीफा देने वालों में से चार ट्रस्टियों- डॉ. सुदर्शन अयंगर, मंडाबेन पारिख, माइकल मझगांवकर और कपिल शाह- का तीन साल का कार्यकाल इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद ही समाप्त हो गया था।
डॉ मंदाबन पारिख ने बताया, “हालांकि 4 अक्टूबर 2022 को हुई बैठक के बाद हमें 17 अक्टूबर, 2022 को और तीन साल का विस्तार दिया गया था।”
वार्षिक दीक्षांत समारोह से बमुश्किल एक दिन पहले इस्तीफा देने वाले आठ ट्रस्टियों में डॉ. सुदर्शन अयंगर, डॉ. अनामिक शाह, मंदाबेन पारिख, उत्तमभाई परमार, चैतन्य भट्ट, नीताबेन हार्डिकर, माइकल मझगांवकर और कपिल शाह शामिल थे।
आठ न्यासियों के इस्तीफे के बाद विद्यापीठ ने घोषणा की थी कि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था। चर्चा के बाद उसी दिन बहुमत से एक प्रस्ताव पारित किया गया था कि इन आठ के इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
साथ ही इस मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने और उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन बात नहीं बनी।
गुजरात विद्यापीठ के नियमों के अनुसार, इसमें कुल 25 ट्रस्टी होते हैं, जिनमें पांच आजीवन ट्रस्टी सदस्य हैं। हालांकि, वर्तमान में नरसिंहभाई हाथिला के रूप में केवल एक आजीवन सदस्य हैं।
शिक्षकों और विद्यापीठ के कर्मचारियों में से ट्रस्टियों की नियुक्ति दो वर्ष के लिए, जबकि बाहर के ट्रस्टियों की नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए की जाती है।
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