गठीला शरीर ,छोटा कद , रौबदार मूछ और उससे वजनदार आवाज। गले में साफी। यह पढ़ते ही जेहन में एक तस्वीर उभरती है और वह है अतीक अहमद की। पूर्वांचल में यह नाम लेते से आम आदमी तो छोड़िये पुलिस भी डरती थी। अतीक वह नाम , जो पूर्वांचल का बाहुबली भी है ,माफिया भी है , और सियासत का अहम केंद्र भी। जिस अतीक पर 196 मामले दर्ज है वही अतीक 5 बार उत्तरप्रदेश विधानसभा का सदस्य और लोकसभा का सांसद भी रहा।
अतीक का दौर चार दशक तक उत्तर प्रदेश के लिए खासा भयभीत करने वाला रहा., काल का चक्र ऐसा घूमा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को माफिया को मिट्टी में मिलाने का दावा सदन के अंतर करना पड़ा। अतीक के गुजरात की सबसे सुरक्षित जेल साबरमती में रहने के बावजूद राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह की प्रयागराज में दिन दहाड़े सुरक्षाकर्मियों के साथ हत्या हो जाती है। यह अतीक का जलवा कहलाता है।
कड़ी सुरक्षा और सैकड़ो गाड़ियों के कफीले के बीच अतीक गुजरात से उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर चुके है। इनकाउंटर का डर इस माफिया को सता रहा था ,इसलिए उच्चतम न्यायालय तक गुहार लगायी। मंगलवार को अतीक को इलाहबाद की अदालत में पेश किया किया जायेगा , जहा अपहरण के मामले में फैसला सुनाया जाना है। मीडिया अतीक के पीछे पीछे चल रही है।
अतीक अहमद से भाई बनने का सफर भारतीय कानून व्यवस्था और राजनीति का वो स्याह पन्ना है, जिससे भारतीय लोकतंत्र का एक पूरा अध्याय कलंकित है। हम आपको बताएँगे अतीक के अतीत की पूरी कहानी।
अतीक का जन्म आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में 10 अगस्त 1962 को हुआ। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर बड़े परिवार का किसी तरह जीवनयापन करते थे ,घर की माली हालत अच्छी नहीं थी। पिता अतीक को पढ़ाना चाहते थे लेकिन किताबों में उसका मन नहीं लगता था।
महज 17 साल की उम्र में ही अतीक हत्या का आरोपी बन गया ,80 के दशक की शुरुआत का वह दौर था जब इलाहबाद का शहरीकरण हो रहा रहा। ग्रामीण इलाके शहर में आने को आतुर थे , जमीन का भाव बढ़ रहा था। जमीन विवाद में अतीक ने पहली हत्या को अंजाम दिया। इसके बाद अतीक तेजी से अपराध की दुनिया में अपनी शाख बनाने लगा ।
21-22 की उम्र आते-आते अतीक इलाहाबाद के चकिया का बड़ा गुंडा बन चूका था लेकिन, यह उसके लिए पर्याप्त नहीं था ,क्योंकि उस समय इलाहाबाद के में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था। अतीक को अपना सिक्का पूरे इलाहबाद में चलाना था लेकिन चांद बाबा उसके रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा थे। यही वह दौर है जब आज के उत्तरप्रदेश के तमाम बाहुबली अपनी जगह बनाने के जहोजहद में लगे थे।
पुलिस और नेता, दोनों चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। ये अतीक के लिए मौका था, चांद बाबा के खात्मे के लिए उसे खाकी और खादी दोनों का साथ मिल गया। उसमे वह कुछ हद तक कामयाब भी रहा। इलाहाबाद का आधा हिस्सा उसका हो चुका था। इसके बाद अतीक इस कदर बेलगाम हो गया कि पुलिस के लिए ही नासूर बन गया।
1986 में पुलिस ने एक दिन अतीक को उठा लिया और थाने नहीं ले गई। शोर मच गया कि पुलिस अतीक का एनकाउंटर कर देगी। घरवाले अतीक को बचाने के लिए कांग्रेस के एक सांसद की शरण में पहुंचे और दिल्ली से वाया लखनऊ होते हुए इलाहाबाद फोन पहुंचा, पुलिस को मजबूरन अतीक को छोड़ना पड़ा। इस घटना के बाद अतीक को यह बात समझ में आ गई कि अपराध की दुनिया में बादशाहत बनाने के लिए सियासत का सादा लिबास ओढ़ना होगा।
वीपी सिंह के भाई और इलाहबाद के जज की कार को उड़ा दिया गया था , उसके बाद उत्तरप्रदेश पुलिस अपराधियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गयी थी। अतीक को तब भी अपने एनकाउन्टर का डर सताया था। तो एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर उसने सरेंडर कर दिया और बाहर अपने लोगों के जरिए वह यह बात फैलाने में सफल हो गया कि पुलिसिया कहर की वजह से अतीक बर्बाद हो गया। इससे लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई। एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया।
लेकिन चांदबाबा का हिसाब अभी भी बाकी था। 1989 में चाँद बाबा ने इलाहाबाद पश्चिम से विधानसभा का चुनाव लड़ने का एलान किया तो अतीक निर्दलीय उनके सामने मैदान में आ गया। यहां उसका सीधा मुकाबला चांद बाबा से हुआ , कांटा को कांटा निकालता है कि तर्ज पर अतीक ने लोगों की सहानुभूति का फायदा उठाया और विधायक बन गया।
अतीक के विधायक बनते ही चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया और चांद बाबा की भी हत्या हो गई। जाहिर है आरोप अतीक पर लगा। अब उसके खौफ का साया इलाहाबाद से निकलकर पूरे पूर्वांचल तक फैलने लगा। इसके बाद 1991 और 1993 में भी अतीक इलाहाबाद पश्चिम से निर्दलीय विधायक बना। इस दौरान समाजवादी पार्टी से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं।
साल 1995 में बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम आया और इनाम में 1996 में सपा टिकट मिला और जीत भी मिली। चार बार विधायक बनने के बाद अतीक अब संसद में बैठने का सपना देखने लगा। इसी दौरान अतीक तेदु पत्ता ठेका ,रेलवे ठेकेदारों से रंगदारी और जमीन के व्यवसाय में शामिल हो चुका है।
अतीक का कार्यालय मददगारों का आसरा बन गया। दोनों हाथों से अतीक ने जरूरतमदों की मदद की यह उसकी साख को बढ़ाता गया। अतीक के कार्यालय से तत्काल न्याय मिलता था ,सरकारी मुलाजिम भी मदद और न्याय की दरकार में दरबार भरने लगे थे। तमाम विभागों में उसके अपने शुभचिंतक थे , जिन्हे वह उपकृत करता था।
साल 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं मिली। 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से अतीक पांचवीं बार विधायक बना, पर संसद जाने की बेकरारी उसे चैन से बैठने नहीं दे रही थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद सपा के टिकट पर इलाहाबाद की फूलपुर सीट से चुनाव जीत गया। इससे इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली हो गई, जिससे वह अपने छोटे भाई अशरफ को चुनाव लड़ाने की तैयारी करने लगा।
इधर अशरफ के खिलाफ बसपा ने राजू पाल को टिकट दे दिया और वह 4 हजार वोटों से जीत भी गया। ये हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई और एक महीने में ही राजू पाल के ऑफिस के पास बमबारी और फायरिंग हुई। इस हमले में राजू पाल बच गए। दिसंबर 2004 में फिर उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई, लेकिन किस्मत ने फिर उनका साथ दे दिया। 25 जनवरी 2005 में तीसरी बार राजू पर हमला हुआ और इस बार किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। 19 गोलियों से छलनी हो चुका राजू का शरीर जब अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
वर्ष 2007 में मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी और सपा ने भी अतीक को पार्टी से निकालकर अपना पल्ला झाड़ लिया। यही अतीक के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल उसके भाई अशरफ को चुनाव में हरा चुकी थी और मायावती ने अतीक को मोस्ट वॉन्टेड घोषित करके ऑपरेशन अतीक शुरू कर दिया।
1986 से 2007 के दौरान के एक दर्जन से ज्यादा मामले अतीक पर गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए और उसके सिर पर 20 हजार का इनाम रख दिया गया।
उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई, बिल्डिंगें गिरा दी गईं। इसके बाद उसे दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया।
समय बीतता गया और अगले विधानसभा चुनाव का वक्त आ गया। साल 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उसने अपना दल से पर्चा भरा और इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल की अर्जी दी। उसके आतंक का आलम ये था कि हाईकोर्ट के 10 जजों ने एक-एक करके केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक को बेल दे दी।
इस बार पूजा पाल के सामने अतीक खुद मैदान में थे, लेकिन जीत नहीं पाए। हालांकि, राज्य में एक बार फिर सपा की सरकार बन गई। यह अतीक के लिए मन की मुराद पूरा होने जैसा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे सुल्तानपुर से टिकट मिला लेकिन सपा में ही विरोध हो गया तो उसे श्रावस्ती शिफ्ट कर दिया गया। लेकिन भाजपा से हार मिली
इस बीच मुलायम सिंह परिवार में आपसी खींचतान शुरू हो चुकी थी, जो आगे चलकर अतीक के लिए मुसीबत का सबब बनने वाली थी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 2016 में सपा के उम्मीदवारों की जो लिस्ट निकली उसमें अतीक का नाम कानपुर कैंट से उम्मीदवार के रूप मेंथा। 22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा। आलम ये था कि जिधर से काफिला गुजरता, जाम लग जाता। तब तक अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे और उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में अतीक के लिए कोई जगह नहीं। अतीक पार्टी से बाहर कर दिए गए। कॉलेज में तोड़फोड़ करने और अधिकारियों को धमकाने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए पुलिस को फटकार लगाई और अतीक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
चुनाव से एक महीने पहले फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार कर लिया गया। सारे मामलों में उसकी जमानत रद्द हो गई और तब से अतीक जेल में ही है। कानून के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहे अतीक के ताबूत में आखिरी कील योगी सरकार के रूप मेंआई। योगी के सीएम बनते ही अतीक के खिलाफ कई मामलों की जांच शुरू हो गई। इसके बाद से लेकर अब तक अतीक की सैकड़ों करोड़ रुपए से ज्यादा की गैर कानूनी संपत्तियों पर बुलडोजर चल चुका है।
अतीक का पूरा परिवार फिलहाल जेल में है। मदद की दरकार में कुछ समय पहले अतीक की पत्नी उसी बसपा में शामिल होकर इलाहबाद से महापौर का चुनाव लड़ने की फिराख में थी जिस बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी राजू पाल की हत्या का अतीक पर आरोप है। मायावती ने अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी से निकालने से साफ़ इंकार कर दिया है। शाइस्ता परवीन उमेश पाल हत्याकांड में फरार है। शाइस्ता परवीन के पिता उत्तरप्रदेश पुलिस में सिपाही थे। अतीक के समर्थको को उम्मीद है कि” भाई ” इस दौर से भी बाहर आ जायेंगे और विरोधियों को गाड़ी पलटने का इंतजार।
गुजरात में भी अतीक का था जलवा
जब उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता अतीक अहमद को गुजरात जेल में स्थानांतरित किया गया, तो उसके समर्थक बड़ी संख्या में गुजरात आ गए। उनकी पार्टी के कुछ लोग उसके संपर्क में थे लेकिन उत्तर प्रदेश के उनके गैंग के लोग भी अहमदाबाद में किराए पर मकान लेने लगे। 100 से अधिक अतीक के सेवक शहर के विभिन्न इलाकों में रहने लगे । हालांकि, आईबी भी उन सगीरतों के पते और पहचान का पता लगाने में भी विफल रही। इनमें से करीब 11 एक-एक कर गुजरात से लापता हो गए हैं। इन्हें ढूंढना भी मुश्किल होता जा रहा है।
एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत, आरोपी नहीं नेता
जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें यूपी की जेल से अहमदाबाद की जेल में शिफ्ट करने का आदेश मिला. इस समय गुजरात पुलिस की एक विशेष टीम उसे लेने यूपी पहुंची। उन्हें हवाई मार्ग से अहमदाबाद लाया गया। यूपी पुलिस के साथ गुजरात पुलिस की एक विशेष टीम जब अतीक को लेकर अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरी तो एयरपोर्ट पर करीब 2 हजार लोग उसे देखने पहुंचे. एयरपोर्ट पर ऐसा नजारा था कि जैसे कोई आरोपी नहीं बल्कि कोई बड़ा नेता या कलाकार आया हो. पुलिस दंग रह गई कि अतीक अहमद के गले में इतने फूलों की माला थी कि वह पुलिस बल के साथ आया कोई नेता लग रहा था। एयरपोर्ट के बाहर उन्हें 70 मालाएं पहनाई गईं और उसके ज़िंदाबाद के नारे भी लगाए गए.
अतीक को साबरमती जेल में तकलीफ ना हो इसलिए साथी गए जेल
ऐसा कहा जाता है कि कुछ शागिर्द सामान्य अपराध कर के साबरमती जेल चले गए । अतीक की देखभाल के लिए शागिर्द जमानत नहीं ले रहे थे और जेल में रहने आ गए थे. हालांकि, जेल प्रशासन भी उन्हें पहचान नहीं सका। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुख्यात भी अतीक के संपर्क में थे।
अतीक की मदद करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी
साबरमती जेल में अतीक के मददगारों में एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की चर्चा हो रही है। हालांकि इसे लेकर कई तरह के तर्क दिए जा रहे हैं, लेकिन जब यह वरिष्ठ अधिकारी अच्छी जगह पोस्टिंग की कतार में हैं। यह बात सरकार तक पहुंच गई है कि अतीक की उसने मदद की। अब देखना यह होगा कि क्या इस अधिकारी को भविष्य में किसी अच्छी जगह पोस्टिंग मिलती है या नहीं।
राजस्थान, एमपी, यूपी से बढ़ीं कारें, पीएम से भी बड़ा काफिला
यूपी पुलिस ट्रांसफर वारंट के आधार पर बाहुबली नेता और यूपी के अपराधी अतीक अहमद को साबरमती सेंट्रल जेल गुजरात से यूपी ले गयी . रविवार शाम को जब वे अहमदाबाद से निकले तो उनके काफिले में इक्का-दुक्का वाहन थे. जैसे-जैसे वे यूपी की ओर बढ़ते गए, वाहनों का काफिला बढ़ता गया। गुजरात की सीमा पार कर राजस्थान में प्रवेश करते समय उनके काफिले में पुलिस और निजी कारें भी शामिल थीं। बाद में, जैसे ही काफिले ने मप्र में प्रवेश किया, उनके बेड़े में और वाहन जुड़ गए। पुलिस लगातार स्कार्ट कर रही है लेकिन निजी वाहन भी बढ़ रहे थे । इस तरह झांसी पहुंचते-पहुंचते इन वाहनों की संख्या 100 से अधिक हो गई। पीएम के काफिले से बड़ा अतीक अहमद का काफिला देख सड़क पर मौजूद लोग सहम गए. इतने बड़े काफिले में आखिर कौन जा रहा है में कौन जा रहा है?
अतीक अहमद से पूछताछ करने के लिए साबरमती सेंट्रल जेल पहुंची यूपी पुलिस