राज्यसभा में भाजपा सदस्य विवेक ठाकुर ने 2021 में किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) में किए गए संशोधन की समीक्षा करने की मांग की है। यह संशोधन अपराधों को वर्गीकृत (classifies) करता है, जिसके लिए अधिकतम कैद की सजा सात साल से अधिक है। इसमें कम से कम की सजा नहीं बताई गई है या “गंभीर अपराध” के रूप में सात साल से कम है।
ठाकुर ने सोमवार को शून्यकाल में इस मसले को उठाते हुए दावा किया कि इस संशोधन के बाद ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां किशोर जघन्य (heinous) अपराध करने के बावजूद सजा से बच रहे हैं। इसलिए कि संशोधन के बाद जघन्य प्रकृति (henious nature) के कुछ अपराध गंभीर अपराधों (serious offences) के दायरे में आ गए हैं। इसलिए उन्होंने संशोधन की समीक्षा करनी की मांग की।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2012 में निर्भया गैंगरेप मामले के बाद किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) सहित कानूनों में संशोधन करके इसे और अधिक कठोर बना दिया गया। उन्होंने कहा कि किए गए संशोधनों के तहत अगर 16-18 साल की उम्र का कोई किशोर “जघन्य” (heinous) के रूप में वर्गीकृत (categorised) अपराध करता है तो उस पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक फैसले में कहा था कि जेजे अधिनियम (JJ Act)-2015 उन अपराधों से नहीं निपटता है जहां अधिकतम सजा सात साल से अधिक कैद की है। लेकिन कोई न्यूनतम सजा भी नहीं है, या न्यूनतम सजा सात साल से कम है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इन अपराधों को गंभीर अपराधों के रूप में माना जाना चाहिए। तब सरकार ने 2021 में जेजे एक्ट में संशोधन किया।
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