नई दिल्ली। मीडिया में महिलाओं के नेटवर्क, इंडिया (NWMI) ने एक अध्ययन किया है कि भारत के टीवी समाचार में पुरुष की प्रधानता और उनकी विषैली मर्दानगी किस हद तक दिखाई जाती है। बता दें कि NWMI मीडिया व्यवसायों में महिलाओं के लिए एक मंच है। इसके स्वयंसेवकों के एक समूह ने सितंबर 2021 में एक सप्ताह के लिए 12 भाषाओं के 31 टीवी चैनलों पर 185 समाचार और टॉक शो का अध्ययन किया।
अध्ययन में पाया गया है कि न्यूज एंकरों का रवैया इस बात पर निर्भर करता है कि वे समाचार बुलेटिन पढ़ रहे हैं या टॉक शो की एंकरिंग कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, “हालांकि सभी समाचारों के नमूने में 50% से अधिक में आक्रामकता देखी गई, यह संख्या टॉक शो में बढ़कर 85% तक हो गई।”
“… वैसे समाचार आम तौर पर अपेक्षाकृत सीधे तरीके से प्रस्तुत किए जाते थे, जिनमें बहुत कम या कोई देखने योग्य प्रभाव नहीं होता था। लेकिन टॉक शो में चर्चा में शामिल होने वाले, एंकर, मेजबान और अतिथि प्रदर्शन में लगे होते हैं, जिन्हें आक्रामक रूप से मर्दाना कहा जा सकता था।” अध्ययन में कहा गया है कि कई मेहमानों वाले पैनल तो और भी अधिक मर्दाना व्यवहार को सामने लाते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह मर्दाना आक्रामकता केवल पुरुष एंकरों द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जाता है, बल्कि भले ही कुछ हद तक हो लेकिन महिला एंकर भी अक्सर समान व्यवहार ही करती हैं। “कई मानकों पर पुरुष एंकरों द्वारा संचालित पैनल ने महिला एंकरों द्वारा संचालित की तुलना में अधिक आक्रामक मर्दाना व्यवहार दिखाया। यानी पुरुष एंकरों वाले पैनल के सदस्यों ने महिला वाले (12.07%) की तुलना में एक-दूसरे को अधिक बार (54.55%) आपस में चुनौती दी। महिला-संचालित पैनल (15.52%) की तुलना में पुरुष-संचालित पैनल (48.75%) में वक्ताओं द्वारा एक-दूसरे पर अधिक चिल्लाना भी देखा गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, “ऊंची आवाज में बोलकर आक्रामकता (76.76%) दिखाने का लहजा सबसे आम अभिव्यक्ति का पाया गया। इसी तरह ध्वनि और दृश्य प्रभाव जैसे सहायक तत्वों की मदद से आक्रामकता (60%) भी अक्सर दिखाए गए।”
अध्ययन करने वालों को मौखिक और आक्रामकता और क्रोध, प्रभुत्व, लिंगवाद और सकारात्मक व्यवहार के अन्य संकेतों को देखने के लिए कहा गया था।
रिपोर्ट में विभिन्न भाषाओं में कुछ अंतरों का उल्लेख किया गया है:
“इस अध्ययन के लिए मॉनिटर किए गए टीवी समाचार चैनलों की संख्या के मामले में अंग्रेजी मीडिया ने 19% नमूनों की भागीदारी की, इस तरह भाषाओं की सूची में अंग्रेजी सबसे ऊपर थी। अंग्रेजी मीडिया में ‘आक्रामकता’ को ‘अत्यधिक’ पाया गया, सबसे अधिक बार चेतावनी देते हुए पाया, जिससे ऐसे चैनलों में व्यवधान वाली घटनाएं 24.72% पाई गईं। गुजराती मीडिया केवल 10% होने के बावजूद तीसरी सबसे अधिक निगरानी की जाने वाली भाषा (15.93%) रही।
अस्थिर और व्यवधान वाले ‘प्रभुत्व’ के मामले में हिंदी टीवी समाचार चैनल सबसे आगे रहे, जहां ऐसी कुल घटनाओं की संख्या का 34.86% रहा। इसके बाद 22.93% के साथ अंग्रेजी का स्थान रहा। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि हिंदी मीडिया ने नमूने में भागीदारी केवल 10% ही की। दूसरी सबसे अधिक निगरानी वाली भाषा (14%) बंगाली रही, जिसमें प्रभुत्व के कम तत्व दिखाई दिए, जिसमें ‘अत्यधिक उपस्थिति’ की हिस्सेदारी 6.4% थी।
संख्या के लिहाज से तमिल प्रोग्रामिंग का केवल 5% था, लेकिन इसमें ‘सेक्सिज्म’ वाले तत्व के लिहाज से ‘अत्यधिक मौजूद’ का अधिकतम हिस्सा (38.70%) था।
रिपोर्ट में विस्तृत मामलों की स्थिति को देखते हुए अध्ययन कर्ताओं का मानना है कि टीवी समाचार सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने कुछ सिफारिशों भी दी हैं। इनमें एक है पेशेवर माहौल को अधिकतम बनाए रखना। फिर टॉक शो को प्रारूपित करना, जैसे कि एंकर, ध्वनि प्रभाव, ग्राफिक्स आदि। सथ ही पक्षपाती और सनसनीखेज राय रखने से परहेज करना। इन बातों के लिए पत्रकारों और एंकरों को प्रशिक्षित करना। साथ ही दूसरे हितधारकों के साथ संस्थानों को भी जवाबदेह बनाना।