उन लोगों पर विश्वास न करें जो दावा करते हैं कि अहमदाबाद, वडोदरा, राजकोट और सूरत में ठेले पर मांसाहारी खाद्य बेचने वालों को सड़कों से हटा दिया गया है। वैसे कई अन्य मिथकों की तरह यह गुजरात की ताजा खबर है।
ये तस्वीरें अहमदाबाद की बुधवार रात की हैं। गुजरात की इन सड़कों पर नॉन वेजिटेरियन और फास्ट फूड खूब मिल रहे हैं। वाइब्स ऑफ इंडिया इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि गुजरात की इन सड़कों से मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हटाने का फैसला लिया जा सकता था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर एक छोटी-सी प्रतिक्रिया ने गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गुजरात राज्य भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल को बैकफुट पर ला दिया। उन्हें सार्वजनिक रूप से जोर देकर यह कहना पड़ा कि गुजरात में लोगों को मर्जी से कुछ खाने का अधिकार है।
बता दें कि फिलहाल यह अभियान मांसाहार नहीं, बल्कि अतिक्रमण के खिलाफ है। गुजरात में कम से कम चार फाइव-स्टार होटलों ने वाइब्स ऑफ इंडिया से पुष्टि की है कि मांसाहारी व्यंजनों का आनंद के लिए आने वाले ज्यादातर लोग विशिष्ट गुजराती ही हैं।
आम धारणा के विपरीत, पंजाब की तुलना में गुजरात में मांसाहार की खपत अधिक है। गुजरात में नॉन-वेज की खपत अनुपात पंजाब के 33.23 फीसदी की तुलना में 39.5 है, जो दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। ऐसे में सवाल उठता है कि कि अगर इतने बड़े पैमाने पर नॉन-वेज का सेवन करने वाले लोग हैं, तो वे कहां हैं? और वे इसके बारे में मुखर क्यों नहीं हैं? इस संबंध में टीम वीओआइ ने जमीनी हकीकत को समझने के लिए शहर के कुछ शीर्ष कैफे और रेस्तरां का सर्वेक्षण किया।
हर्षल पटेल सबवे (आईआईएम रोड) के प्रबंधक हैं। वह 10 वर्षों से खाद्य श्रृंखला चला रहे हैं और दोनों तरह के भोजन के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग मानसिकताओं और धारणाओं से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं। पटेल के अनुसार, संयुक्त रूप से ऑर्डर लेने कभी भी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अनुपात (मांसाहारी और शाकाहारी भोजन का) 50-50 है, हमें किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।
मिर्च मसाला के प्रबंधक खुमान सिंह के अनुसार, “नॉनवेज और वेज मेन्यू, दोनों की समान मांग है। बहुत कम ही शाकाहारी ग्राहक वेज फूड को नॉन-वेज फूड के साथ पकाए जाने को लेकर सवाल उठाते हैं। सच्चाई यह है कि ग्राहक मिलेजुले होते हैं। वैसे जैन और दूसरे शाकाहारी लोगों ने इसमें विभाजन के लिए लोगों को समझाने की कोशिश की है। ही कारण है कि यहां वेजेटेरियन अधिक हैं। जो लोग मांसाहारी खाते हैं वे दूसरों को भी यही महसूस कराते हैं कि हम नहीं खाते हैं। जो नहीं बताना चाहते हैं कि वे नॉन-वेज खाते हैं, वे नहीं बताते। और जो खाते हैं वे तो खायेंगे ही, इसमें प्रचार का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने समझाया कि जैन और अन्य शुद्ध-शाकाहारी लोगों को यह महसूस कराने के लिए कि वे इसे नहीं खाते हैं, बहुत सारे लोग रेस्तरां में जाकर मांसाहारी खाते हैं, ताकि वे समाज में फिट हो सकें।
सिंह ने कहा, “यह अंतर नहीं होना चाहिए। आज ऐसा इसलिए है, क्योंकि जो लोग नहीं खाते हैं वे मांसाहारियों को दोषी महसूस कराते हैं।” मिर्च मसाला दरअसल बाल्टी चिकन, चिकन देसी शैली आदि के लिए जाना जाता है।
द अपर क्रस्ट कैफे के प्रबंधक प्रमोद पंत कहते हैं, “यहां का अनुपात शाकाहारी भोजन के लिए 60% और मांसाहारी खपत के लिए 40% है। अपर क्रस्ट एक ब्रांड है, इसलिए हमें उन लोगों को खुद को समझाने की आवश्यकता नहीं है जो मांसाहारी भोजन का आनंद नहीं लेते। अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में लोग मांसाहारी स्ट्रीट फूड के बारे में जागरूक नहीं हैं, इसलिए उन्हें इसके बारे में पता होना चाहिए। कई समाजों में जैन और पटेल लोग दिखाते हैं कि वे खाते नहीं हैं, लेकिन जब वे बाहर जाते हैं तो मैंने उन्हें मांसाहारी खाते हुए सुना और देखा है। इसे बदलना चाहिए।” पंत ने यह भी समझाया कि यह स्थिति उस परिवार की तरह है जो गोवा की यात्रा पर जाता है तो वहां माता-पिता अपने बच्चों को शराब का सेवन करने की अनुमति दे सकते हैं, भले ही वे अपने घरों में शराब का सेवन न करें। इस पाखंड को बदलने की जरूरत है।
गौरतलब है कि यहां लोकप्रिय कैफे शुरू में मांसाहारी परोसने वाले उपक्रम के रूप में शुरू हुए थे। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि इन सब कैफे ने कारोबार मंदा रहने पर अपने मेनू को शाकाहारी में बदल लिया। टर्काइज विला के प्रबंधक संजय छेत्री के अनुसार, “यहां के अधिकांश जैन लोग और युवा मांसाहारी खाते हैं, लेकिन गुप्त रूप से। वे दिखावा नहीं करते हैं या किसी को यह भी नहीं बताते हैं कि वे खा रहे हैं या ऐसे भोजन का आनंद ले रहे हैं। लेकिन हमें इसके लिए नगर निगम से विशेष अनुमति लेनी होगी, ताकि कोई आपत्ति या विवाद न हो। ऐसे उदाहरण भी हैं जब बच्चे मांसाहारी खा रहे हैं और उनके माता-पिता पहुंच जाते हैं। तब वे भाग खड़े होते हैं या किसी कोने में छिप जाते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बहुत सारी आवासीय सोसायटी नॉन-वेज खाने को लेकर बेहद सख्त हैं। वे लोगों को जज करेंगी और अपने पास फटकने भी नहीं देगी।