कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा के बीच दिल्ली के इन घटनाक्रमों से वाकिफ एक सूत्र ने वाइब्स ऑफ इंडिया (वीओआई) से कहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का उद्देश्य एक तीर से कई निशाने लगाना है।
उसके मुताबिक, इन कारणों से हो रहा फेरबदल-
- मुख्य फोकस ज्यादा से जातियों और क्षेत्रों को समायोजित करने पर होगा। इसमें आगामी चुनावों को ध्यान में रखा जाएगा।
- इनमें से कम से कम छह मंत्री ओबीसी, दलित और ब्राह्मण होंगे। मंत्रिमंडल में कम से कम दो क्षत्रियों को समायोजित किया जाएगा।
- उत्तर प्रदेश और गुजरात चुनाव प्रधानमंत्री के लिए निजी लड़ाई होने जा रहे हैं और इन चुनावों के महत्व को देखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे।
- मंत्रिमंडल में उत्तर प्रदेश और कर्नाटक को ज्यादा जगह मिल सकती है। इसमें गुजरात की तरफ से भी कुछ चौंकाने वाला हो सकता है। इसका उद्देश्य पीएम के गृह प्रदेश में भाजपा में असंतोष खत्म करना होगा।
- कम से कम चार नए चेहरों को शामिल किया जाएगा। इनकी छवि साफ और ईमानदार होगी और जिनकी स्वीकार्यता भी होगी। यह कोविड काल में कुप्रबंधन के कारण पीएम मोदी की कैबिनेट की खराब छवि को सुधारने के लिए किया जाएगा। कम से कम दो वर्तमान केंद्रीय मंत्रियों को उनके गृह राज्यों में वापस भेजा जाएगा। दोनों उत्तर भारत के होंगे।
भले ही चर्चा है कि पीएम मोदी 7 जुलाई या 17 जुलाई को कैबिनेट में फेरबदल करेंगे, लेकिन कई बार कहा जाता है कि वह इस संबंध में झूठी जानकारियां भी बाहर निकालते हैं। बतौर मुख्यमंत्री, गुजरात में भी उनकी यही रणनीति रहती रही है। उनके करीबी लोग कुछ नाम बाहर लाते थे, फिर तुरंत उनके बारे में फीडबैक आना शुरू हो जाता था। इसके बाद सीएम मोदी सभी फीडबैक का आकलन कर नेताओं की स्वीकृति और उनकी नियुक्ति का विश्लेषण करते थे और असल नामों की घोषणा करते थे। जाति का गणित पीएम मोदी से बेहतर कोई नहीं जानता। कम से कम चार बार इस कोशिश के शानदार परिणाम मिले हैं। ज्यादातर बार जिन नामों पर सबसे ज्यादा चर्चा होती है, उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिलती। यही मोदी स्टाइल है, जिसे उन्होंने गुजरात में सफल सिद्ध किया।
तो हमारे पास बस एक चर्चा है। केवल एक चीज जो हम जानते हैं, वह यह कि संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई से और जैन धार्मिक अनुष्ठान चतुर्मास 20 जुलाई से है। ऐसे में संसद का कामकाज सुचारू रूप से चलाने के लिए 17 से पहले फेरबदल हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, कैबिनेट में क्षेत्रीय उपस्थिति को बदलना, बदलते क्षेत्रीय समीकरण और क्षेत्रीय नेताओं का बढ़ता दबदबा यकीनन पीएम मोदी के दिमाग में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है। महाराष्ट्र का मामला सबसे महत्वपूर्ण बनकर सामने आ सकता है। ममता बनर्जी को व्यस्त रखने के नए तरीके भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश और वहां होने वाले चुनावों से ज्यादा कुछ मायने नहीं रखता है। कैबिनेट फेरबदल में देरी इसलिए है, क्योंकि पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश और गुजरात को लेकर कुछ और फीडबैक मांगे हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जहां 2022 की पहली छमाही में है तो गुजरात में दिसंबर 2021 में। इन दोनों राज्यों के चुनाव उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
इस फेरबदल के बाद पीएम मोदी के शासनकाल में कैबिनेट का आकार अब तक का सबसे बड़ा हो जाएगा। रिक्तियों के हिसाब से पीएम मोदी इस समय 28 नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह देखना बाकी है कि क्या पीएम मोदी इस स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं या भारी-भरकम मंत्रिमंडल नहीं रखने की अपनी व्यक्तिगत पसंद को तवज्जो देते हैं। नियमों के मुताबिक, प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल में 81 मंत्री रख सकते हैं। इस समय उनके पास 53 कैबिनेट मंत्री हैं। अधिक नए मंत्रियों का मतलब अधिक स्थानीय-क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व हो सकता है, ताकि उन क्षत्रपों को रोका जा सके जो भाजपा के विरोध में हैं। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे कुछ ऐसे राज्य हैं, जिन्हें पीएम मोदी अधिक प्रतिनिधित्व देने के इच्छुक हैं।
ये बन सकते हैं मंत्री-
मंत्री बनने के इच्छुक उम्मीदवारों और भाजपा नेताओं की संख्या बहुत अधिक है। लेकिन, यहां ऐसे लोगों और उनके राज्यों की पहली सूची है, जिनके शामिल होने की सबसे अधिक संभावना है-
- सर्वानंद सोनोवाल (असम)
- अनुप्रिया पटेल (उत्तर प्रदेश)
- वरुण गांधी (उत्तर प्रदेश)
- रामकृष्ण कठेरिया (उत्तर प्रदेश)
- अनिल जैन (उत्तर प्रदेश)
- रीता बहुगुणा जोशी (उत्तर प्रदेश)
- जफर इस्लाम (उत्तर प्रदेश)
- पीसी गद्दीगौदर या शिवकुमार उदासी : कर्नाटक
- शोभा करंदलाजे या प्रताप सिम्हा या राजीव चंद्रशेखर: कर्नाटक
- नारायणस्वामी या उमेश जाधव: कर्नाटक
- बैजयंत पांडा (ओडिशा)
- अश्विनी वैष्णव (ओडिशा)
- ज्योतिरादित्य सिंधिया (मध्य प्रदेश)
- भूपेंद्र यादव (राजस्थान)
- नारायण राणे (महाराष्ट्र)
- डॉ. प्रीतम मुंडे (महाराष्ट्र)
- पशुपति पारस (बिहार) (सहयोगी: लोजपा)
- राजीव रंजन (बिहार), (सहयोगी: जनता दल यूनाइटेड)
- आरसीपी सिंह (बिहार), (सहयोगी जनता दल यूनाइटेड)
- सुनीता दुग्गल (हरियाणा)
- सी आर पाटिल (गुजरात)
- डॉ. किरीट सोलंकी (गुजरात)
वाइब्स ऑफ इंडिया को पश्चिम बंगाल से मंत्री बनने वालों के नामों की जानकारी नहीं मिली है। राज्य से वीओआई को जो एकमात्र नाम मिला है, वह है-दिनेश त्रिवेदी का था। लेकिन दिल्ली के सूत्रों ने दावा किया कि अभी उनके नाम पर मुहर लगनी बाकी है।
कुछ अन्य दिलचस्प नामों की भी चर्चाएं चल रही हैं, जो इस तरह हैं-
- स्वतंत्र देव सिंह (उत्तर प्रदेश), यूपी भाजपा अध्यक्ष
- भूपेंद्र यादव (राजस्थान), भाजपा प्रभारी, गुजरात
- सुशील मोदी (बिहार), पूर्व डिप्टी सीएम, बिहार।
सूत्रों के मुताबिक, इस फेरबदल में “जाति और राजनीतिक निहितार्थ को ईमानदारी और अनुभव से अधिक महत्व दिया जा सकता है।” सूत्र का यह भी कहना है कि ने पीएम मोदी एक महान राजनेता हैं जो हर चीज पर पैनी नजर रखते हैं। यह कैबिनेट फेरबदल में अवश्य दिखाई देगा। इस बीच, कमजोर प्रदर्शन के आधार दो केंद्रीय मंत्रियों को मौजूदा कैबिनेट से हटाए जाने की भी चर्चा है। इनमें गुजरात के एक मंत्री भी शामिल हैं। साथ ही उत्तर के एक राज्य के राज्यपाल को बदलने की भी चर्चा है।