कोविड से मौत पर मुआवजे को लेकर गुजरात सरकार को सुप्रीम फटकार - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

कोविड से मौत पर मुआवजे को लेकर गुजरात सरकार को सुप्रीम फटकार

| Updated: November 23, 2021 15:26

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने को लेकर जांच समिति बनाने पर गुजरात सरकार को फटकार लगाई है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने सोमवार को मामले की सुनवाई करते हुए  केंद्र सरकार से ऐसे मौतों के लिए मुआवजा वितरण के संबंध में विभिन्न राज्य सरकारों से डेटा लाकर रिकॉर्ड पर रखने के लिए भी कहा है। इसके साथ ही केंद्र को शिकायत निवारण समितियों के गठन के बारे में भी जानकारी देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला महत्वपूर्ण है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अगले सोमवार को होने वाली सुनवाई तक सारी जानकारी उपलब्ध करा देने का आश्वासन दिया है।

गौरतलब है कि 4 अक्टूबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा अनुशंसित कोरोना पीड़ितों के परिजनों के लिए 50,000 रुपये के मुआवजे को मंजूरी दी थी। इस पर याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले ही घोषित किए जा रहे कोविड मृत्यु प्रमाणपत्र मानदंड के बावजूद गुजरात सरकार ने प्रमाणपत्रों के संबंध में नया तरीका बना दिया है। दरअसल शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोविड-19 के आरटी-पीसीआर टेस्ट  के रिपोर्ट और उसके बाद  30 दिनों के भीतर होने वाली मौतें के प्रमाणपत्र के आधार पर मुआवजा दिया जाए। इसके अलावा दर-दर की ठोकरें खाने वालों के लिए अन्य किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। लेकिन फर्जीवाड़ा रोकने के मकसद से गुजरात सरकार ने इस पर एक समिति बना दी। सोमवार की सुनवाई में शीर्ष अदालत  ने इसे कदम को मुआवजा वितरण में नौकरशाही की तरफ से अड़ंगेबाजी करार दिया।

न्यायमूर्ति शाह ने कहा, “इसका मसौदा किसने तैयार किया? इसे किसने मंजूरी दी? यह किसके दिमाग की उपज है? यह देरी करने का एक नौकरशाही प्रयास लगता है।” बेंच ने उस आदेश पर नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया को बोझिल बना देगा,  जिसे राज्य में उच्चतम स्तर पर मंजूरी दी गई। मेहता ने जांच समिति के गठन के प्रस्ताव को इस आधार पर उचित ठहराया कि झूठे दावेदारों का सफाया करना जरूरी है। पीठ ने पूछा कि सिर्फ कुछ फर्जी दावों के कारण असली लोगों को राहत क्यों नहीं दी जानी चाहिए। मेहता ने आखिरकार स्वीकार किया कि गुजरात सरकार का प्रयास नाराजगी को जन्म देता है। साथ ही अदालत को आश्वासन दिया कि वह अनुग्रह राशि को मंजूरी देने की प्रक्रिया को खत्म करने के लिए राज्य के साथ काम करेंगे। उन्होंने कहा कि एक नया प्रस्ताव जारी किया जाएगा।

?” न्यायमूर्ति शाह ने पूछा, “हमने आपको कभी भी जांच समिति बनाने के लिए नहीं कहा। हम इसमें किसी संशोधन  को स्वीकार नहीं कर सकते। जांच समिति से प्रमाण पत्र प्राप्त करने में एक साल लगेगा। यह कहता है, ‘अस्पताल प्रमाण पत्र के साथ आओ।’ कौन सा अस्पताल सर्टिफिकेट दे रहा है? न्यायमूर्ति शाह ने कहा, “कम से कम 10,000 लोगों को मुआवजा मिलना चाहिए। क्या किसी ने इसे अभी तक प्राप्त किया है? अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगली बार हम कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्यों को लोकपाल के रूप में नियुक्त करेंगे, जैसे हमने 2001 के गुजरात भूकंप के दौरान मुआवजे के वितरण के लिए किया था।”

 

Your email address will not be published. Required fields are marked *