केरल के कोट्टायम स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय ने यहां इंटरनेशनल एंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी केंद्र (आईआईयूसीएनएन) के निदेशक नंदकुमार को एक पीएचडी अभ्यर्थी के खिलाफ कथित तौर पर जातिसूचक टिप्पणी करने के मामले में शनिवार को पद से हटा दिया है.
विश्वविद्यालय में दलित पीएचडी अभ्यर्थी दीपा पी. मोहनन ने आरोप लगाया था कि उनके पीएचडी संबंधी अध्ययन में देर हो रही है, क्योंकि विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारी जाति आधारित भेदभाव करते हैं. इसके खिलाफ मोहनन ने बीते 29 अक्टूबर को भूख हड़ताल शुरू कर दी थी.
विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर नंदकुमार को हटा दिया गया है. इससे पहले उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने कहा था कि विश्वविद्यालय के अधिकारी छात्रा के साथ हैं, मुद्दे को उसके नजरिये से देखा गया है और उनकी परेशानी का समाधान किया गया है.
मंत्री ने कहा था, ‘कुलपति ने दीपा को भरोसा दिलाया है कि वह बिना किसी सामाजिक या तकनीकी अड़चन के अपना शोध पूरा कर सकेंगी. उन्हें सभी आवश्यक संसाधन एवं सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी. कुलपति स्वयं उनके गाइड की तरह काम करेंगे.’
36 वर्षीय छात्रा ने अपनी पीएचडी पूरी करने के लिए संसाधनों तक पहुंच देने, रिसर्च गाइड बदलने और नंदकुमार को हटाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की थी.
दीपा मोहनन ने दावा किया था कि बीते दस वर्षों से संस्थान के निदेशक की गतिविधियों के कारण उनका अध्ययन प्रभावित हुआ है. उनका दावा था कि ऐसा कथित तौर पर इसलिए किया गया क्योंकि वह दलित हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दीपा ने लैब सहित सभी तरह की शोध सुविधाएं मुहैया कराने की भी मांग की है, जिनसे दलित होने की वजह से उन्हें महरूम रखा गया था.
स्टेट हायर एजुकेशन मंत्री प्रोफेसर आर. बिंदू ने कहा, ‘कुलपति साबू थॉमस ने आईआईयूसीएनएन के प्रमुख के रूप में पद्भार संभाला है. मैंने दीपा को आश्वासन दिया है कि उनकी पीएचडी पूरी करने के लिए जरूरी सभी सुविधाएं उन्हें मुहैया कराई जाएंगी. कुलपति उनके गाइड का दायित्व भी निभाएंगे.’
बिंदू ने दीपा से अपनी भूख हड़ताल समाप्त करने का भी आग्रह किया.
हालांकि, दीपा ने नंदकुमार के खिलाफ की गई कार्रवाई को छलावा बताते हुए कहा कि जब तक कि उन्हें (नंदकुमार कलारिकल) बर्खास्त नहीं किया जाता, वह अपनी भूख हड़ताल जारी रखेंगी.
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने उनके खिलाफ किसी तरह की कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है.
रिपोर्ट के मुताबिक,यह मामला पांच साल पहले उस समय सामने आया था, जब दीपा ने शिकायत की थी कि नंदकुमार उन्हें दलित होने की वजह से उनके लिए नैनोसाइंस लैब को खोलने का विरोध किया था. इसके बाद दो सदस्यीय समिति ने इन आरोपों की जांच की और प्रोफेसर के खिलाफ रिपोर्ट पेश की.
उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट के आधार पर उन्हें विभाग के निदेशक पद से हटा दिया गया और हाईकोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा. हालांकि, विश्वविद्यालय ने 2017 में उन्हें निदेशक के पद पर बहाल कर दिया. यह अवैध था. हाईकोर्ट और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग ने मेरी मांग के पक्ष में आदेश जारी किया था, लेकिन विश्वविद्यालय ने उन्हें अभी तक लागू नहीं किया है.’
यह बताते हुए कि 2011 में विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के बाद से जातिगत भेदभाव की वजह से उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया है.
दीपा ने कहा, ‘मैं इन दिनों ट्रॉमा से जूझ रही हूं और मैं समझ सकती हूं कि रोहित वेमुला ने आत्महत्या क्यों की, लेकिन न्याय लिए बिना मैं पीछे नहीं हटूंगी. मुझे यह लड़ाई उन लोगों के लिए जीतनी है, जो इंसाफ के लिए इस तरह की लड़ाइयां हार चुके हैं.’
इस संबंध में विपक्षी नेता वीडी सतीशन ने कहा कि जातिगत भेदभाव के विरोध में एक महिला द्वारा भूख हड़ताल करना केरल का अपमान है.
मालूम हो कि मेडिकेल माइक्रोबायोलॉजी में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद दीपा ने 2011 में संस्थान में दाखिला लिया था. उनका आरोप है कि तभी से नंदकुमार उनकी पढ़ाई में हर तरह की बाधा उत्पन्न कर रहे हैं, जिनमें प्रयोगशाला का इस्तेमाल करने से रोकना, लैब में रसायनों और पॉलीमर के इस्तेमाल से रोकना, कार्यस्थल पर उन्हें बैठने से रोकना, उनका वजीफा रोकना आदि शामिल थे.
आरोप है कि एक बार नंदकुमार ने उन्हें अकेले संस्थान की लैब के भीतर बंद कर दिया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि वह कई मामलों में दीपा के प्रति सख्त और अपमानजनक रहे हैं.