तृणमूल कांग्रेस ने क्षेत्रीय तिप्राहा जातीय प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (टीआईपीआरए) के साथ आम सहमति नहीं बन पाने के कारण आगामी त्रिपुरा नगरपालिका चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है।
प्रद्योत किशोर देबबर्मा के नेतृत्व वाले टीआईपीआरए ने आदिवासियों के लिए अलग राज्य के लिए समर्थन सुनिश्चित करने का लिखित आश्वासन के बिना तृणमूल के साथ चुनावी समझौता करने से इनकार कर दिया है।
अगरतला नगरपालिका का चुनाव 25 नवंबर को होने वाला है। इसमें पश्चिम बंगाल के बाहर शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में तृणमूल के उम्मीदवारों को उतारने का पहला उदाहरण है। ममता बनर्जी की पार्टी सभी 51 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
पिछले चार महीनों में तृणमूल कांग्रेस- जिसने हाल ही में भाजपा को हराते हुए पश्चिम बंगाल में सत्ता में वापसी की है- को दो छोटे राज्यों- पूर्वोत्तर में त्रिपुरा और पश्चिमी तट पर गोवा में- प्रवेश करते देखा गया है। ऐसा अपनी पहचान बंगाल से बाहर भी बढ़ाने के तहत है।
गोवा में जहां अगले तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं। त्रिपुरा में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों को “महत्वपूर्ण” बताते हुए तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि यह चुनाव राज्य में पार्टी के लिए “अग्नपरीक्षा” जैसा होगा।
त्रिपुरा राज्य चुनाव आयोग द्वारा 27 अक्टूबर को जारी अधिसूचना के अनुसार, 20 शहरी स्थानीय निकाय – अगरतला नगर निगम, धर्मनगर, कैलाशहर, कुमारघाट, अंबासा, खोवाई, तेलियामुरा, रानीरबाजार, मोहनपुर, 13 बिशालगढ़, मेलाघर उदयपुर की नगर परिषद, संतिरबाजार, बेलोनिया और पनीसागर, कमालपुर, जिरानिया, सोनमुरा, अमरपुर और सबरूम की नगर पंचायतों में 25 नवंबर को मतदान होगा।
तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी त्रिपुरा के प्रभारी हैं, जबकि पूर्व सांसद और हाल में ही तृणमूल में शामिल होने वाली सुष्मिता देव हफ्तों से राज्य में डेरा डाले हुए हैं। पार्टी ने राज्य में चुनावी तैयारियों की निगरानी के लिए पश्चिम बंगाल के महासचिव कुणाल घोष के अलावा मंत्री ब्रत्य बसु और मोलॉय घटक जैसे वरिष्ठ नेताओं को त्रिपुरा भेजा है। देव ने कहा, “हम यहां पूरा जोर लगा रहे हैं। त्रिपुरा सांप्रदायिक और राजनीतिक हिंसा के दौर से गुजर रहा है। यहां कानून व्यवस्था नहीं है। यह चुनाव हमारे लिए हमारे अगले राजनीतिक कदमों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने आरोप लगाया कि अगरतला नगरपालिका चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करते समय पार्टी के उम्मीदवारों को प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
‘भाजपा से नाराज है जनता’
आदिवासी निकाय चुनाव में टीआईपीआरए की जीत के दो महीने बाद ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक ने कोलकाता में देबबर्मा से मुलाकात की और राजनीतिक बातचीत शुरू की थी। देबबर्मा ने जोर देकर कहा कि तृणमूल को संसद में अपनी अलग टीआईपीआरए भूमि की मांग का समर्थन करना चाहिए और लिखित में इसका आश्वासन देना चाहिए।
तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि तब से गठबंधन की बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई है। उन्होंने कहा, ‘हमने त्रिपुरा में अकेले लड़ने का फैसला किया है। राज्य के मुख्यमंत्री भाजपा के बिप्लब देब से लोगों में निराशा और मोहभंग है। हमें बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। देव ने कहा, “कांग्रेस, सीपीएम और भाजपा के नेता और कार्यकर्ता हमसे जुड़ रहे हैं। कोई देख सकता है कि हमने अगरतला नगर निगम की सभी सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। ” उन्होंने कहा, “हमारे उम्मीदवार भाजपा के आतंक के खिलाफ खड़े हुए। हमारे पास टीआईपीआरए के खिलाफ कुछ भी नहीं है। वे अलग राज्य के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, हम भाजपा को हटाने के लिए लड़ रहे हैं। त्रिपुरा में अभी तक किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन की कोई बात नहीं हुई है। ”