नसरीन बानो (50) तब दस्तावेजों को बाहों में मजबूती से बांध लेती हैं, जब उनका भतीजा असलम नागोरी (26) अपने साथ हुए हादसे के बारे में मीडिया को बता रहा होता है। नसरीन अपने हाथ पड़े दस्तावेजों का महत्व जानती हैं। असलम की दुर्घटना के बाद इन्हें जुटाने में एक साल से अधिक का समय लग चुका है। अब यही दस्तावेज भतीजे को न्याय दिलाने का इकलौता जरिया है, जो अब व्हीलचेयर से बंधा और बेरोजगार है।
वह कहती हैं, “जिस दिन दुर्घटना हुई, दानी लिमडा थाने के अधिकारियों ने यह कहते हुए शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया कि ऐसी दुर्घटनाओं किसी की गलती से नहीं होती। ऐसे में शिकायत दर्ज कराने के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ा।" असलम 25 साल का था, जब वह पालड़ी के पास एक निर्माण स्थल पर एक मचान से 20 फीट नीचे गिर गया था। 19 सितंबर, 2020 की सुबह हरिओम टेक्सटाइल्स के लिए काम करते हुए असलम, जो हेल्पर के रूप में आमतौर पर 300 रुपये की दैनिक मजदूरी कमाता था, को मचान के पास कहीं नहीं होना चाहिए था। नसरीन ने कहा, “वहां उसे ठेकेदार ने बिना किसी सुरक्षा उपाय के काम पर लगा दिया था। इससे वह पहले सीमेंट की चादर वाली छत पर गिरा, जो भारी निर्माण मशीनों के साथ टूट कर जमीन पर गिर गया। गिरने से उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। वह तब से चलने में असमर्थ है। ” नसरीन ने आरोप लगाया कि उसके परिवार को दुर्घटना के कुछ घंटों बाद सूचित किया गया था। उन्होंने कहा, “हमें उसे सिविल अस्पताल ले जाना था, लेकिन ठेकेदार ने हमें उसे एक निजी अस्पताल ले जाने के लिए कहा। हम उसके इलाज के लिए अब तक 1.6 लाख रुपये से अधिक का खर्च कर चुके हैं। ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर ने हमें दानी लिमडा थाने को देने के लिए एक पत्र दिया। पहले तो वहां किसी ने उस पत्र का स्वीकार नहीं किया। इसमें दुर्घटना का पूरा विवरण था, जिसमें बताया गया था कि यह सब कैसे हुआ। ”
मुआवजे और अस्पताल के बिल के लिए ठेकेदार के साथ कानूनी लड़ाई में उलझे असलम को काम मिलने की चिंता सता रही है। असलम ने कहा, “एक साल हो गया है और मुझे कोई काम नहीं मिला है। हमने अपनी सारी बचत खत्म कर दी है। परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। इनमें सबसे छोटा 8 महीने का है। मैं चाहता हूं कि मुआवजा दिया जाए। दुर्घटना ठेकेदार की गलती से ही हुई थी। ” मामला लेबर कोर्ट में चल रहा है।
एनजीओ आजीविका ब्यूरो द्वारा नरोल में स्थित एक बड़े कारखाने में कार्यरत 95 श्रमिकों के सर्वेक्षण में ठेका मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने में अनियमितता का पता चला है। इससे पता चला कि नियोक्ता दरअसल मजदूरों के सामने आने वाले नियमित खतरों की जवाबदेही लेने से बचते हैं और वे अधिकतम श्रम में हेरफेर कर अधिक से अधिक लाभ के लिए चिंतित थे। रिपोर्ट में कहा गया है, “सुरक्षा समिति जैसे तंत्र जिसमें खतरों की पहचान, सुरक्षा नीति आदि बनाने में मजदूरों के प्रतिनिधित्व की बात है, ठेके वाले या आकस्मिक रूप से लगे श्रमिकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं होता।”
भानु प्रताप सिंह (29) ऐसी लंबी अदालती सुनवाई से थक चुके हैं, जो हमेशा आखिरी घंटे में टल जाती है। उत्तर प्रदेश के प्रवासी भानु ने जगदीश उद्योग फेज-4 के पास एक कारखाने में काम करते हुए अपनी बाईं हथेली की सभी उंगलियां खो दीं। उनके पास दस्ताने थे। इसके अलावा मशीन चलाने के लिए अन्य सुरक्षा उपाय नहीं थे। उन्होंने कहा, “मैं अचानक होश खो बैठा और मुझे अस्पताल ले जाया गया। जब मैं उठा, तो मेरी सारी उंगलियां चली गई थीं। ” घटना के वक्त भानु 21 साल के थे। तब से वह बेरोजगार हैम। पुलिस में शिकायत दर्ज कराए 8 साल हो चुके हैं, जो बाद में अदालत में पहुंच गई। सात साल से सुनवाई चल रही है। उन्होंने कहा, “कोई भी रोजगार देने के लिए तैयार नहीं है। ठेकेदार सुनवाई के लिए नहीं आता है। दूसरी ओर, मुझे हर सुनवाई के लिए यूपी से आना पड़ता है। में बेरोजगार हूं। सिर्फ किराया का ही बोझ उठाना कठिन हो गया है। ”
आगे के इलाज के लिए भानु को 1.5 से 2 लाख रुपये की जरूरत होगी, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि उनका बायां हाथ काफी हद तक काम नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा, “मैं मुआवजे के लिए लड़ रहा हूं, क्योंकि दुर्घटना मेरे ठेकेदार और कंपनी के प्रबंधक की लापरवाही के कारण हुई है।”
भानु के मामले को देखने वाले वकील रंजीत कोरी ने कहा कि लेबर कोर्ट में समय लगता है, लेकिन 99% संभावना है कि भानु को वांछित मुआवजा मिल जाए और उनके प्रबंधकों को कानून की कार्रवाई का सामना करना पड़े। कोरी ने कहा, “वह बहुत धैर्यवान है और लड़ने के लिए तैयार है। वह थक गया है, लेकिन वह जानता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है और न्याय की तलाश जारी है। ” कोरी ने कहा कि वह उन सभी मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवर की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने भानु की तरह ही हालात का सामना किया है।
आजीविका ब्यूरो द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसमें शामिल 95 श्रमिकों में से 83% बिना किसी सामाजिक सुरक्षा कवर वाले थे। केवल 17% श्रमिकों ने पीएफ और ईएसआई के लिए कटौती की सूचना दी। कोरी ने कहा कि अब कोई सामाजिक सुरक्षा कवर नहीं हुआ करता। अधिकांश श्रमिकों को अनुबंध के आधार पर या बिना किसी लिखित समझौते के मौखिक शर्तों पर आकस्मिक रूप से काम पर रखा जाता है। उन्होंने कहा कि अदालत में पहली लड़ाई यही साबित करने की होती है कि कर्मचारी ने वास्तव में किसी ठेकेदार या कंपनी के लिए काम किया है।