मुंबई: भारतीय रुपया सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.73 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जो जून 4 के बाद की सबसे बड़ी एक-दिवसीय गिरावट (0.2%) है। कारोबारी सत्र के दौरान रुपया 84.73 तक गिरा और फिर 84.70 पर बंद हुआ, जो शुक्रवार के बंद भाव से 14 पैसे कमजोर था।
यह गिरावट नॉन-डिलीवेरेबल फॉरवर्ड (NDF) बाजार में डॉलर की मजबूत मांग और दूसरी तिमाही के कमजोर विकास आंकड़ों के कारण हुई। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप ने रुपये को और अधिक गिरने से बचाया।
रुपये की इस गिरावट में वैश्विक कारणों की भी बड़ी भूमिका है। डॉलर में मजबूती अमेरिका के राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप की हालिया चेतावनियों के बाद आई है, जिसमें उन्होंने BRICS देशों को डॉलर के विकल्प की योजना बनाने पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। इन भूराजनीतिक तनावों और चीन द्वारा युआन का अवमूल्यन करने की संभावित प्रतिक्रिया ने बाजार में अनिश्चितता बढ़ा दी है।
“अब केवल आर्थिक कारक ही रुपये के मूल्य को निर्धारित नहीं कर रहे हैं; बल्कि भूराजनीति और अमेरिका के नए प्रशासन की व्यापार नीति भी बड़ा प्रभाव डाल रही है,” डीबीएस बैंक के ट्रेजरी प्रमुख अशिष वैद्य ने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “ट्रंप की BRICS देशों को दी गई चेतावनी और उनके टैरिफ थ्रेट का रुपये पर और प्रभाव पड़ सकता है।”
व्यापारियों का मानना है कि निकट भविष्य में रुपया 84.50 से 84.95 के बीच कारोबार करेगा, हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में सुधार से और जोखिम बढ़ सकते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू शेयर बाजार की सकारात्मक प्रवृत्तियां रुपये को थोड़ा सहारा दे सकती हैं।
वैद्य ने कहा, “रुपये का स्तर कहां स्थिर होगा, यह कहना मुश्किल है। 85 तक पहुंचना अब ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन असली सवाल यह है कि यह कितना और गिरेगा। भारत के लिए यह दोहरी चुनौती है – एक मजबूत डॉलर और अमेरिका में सरकारी खर्च में कटौती की संभावना, जिससे अन्य मुद्राओं पर भी दबाव बन सकता है। एक बार जब अमेरिका का नया प्रशासन अपने नीतिगत फैसले लेगा, तो बाजार को दिशा मिलने की संभावना है।”
भूराजनीतिक अनिश्चितता, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और घरेलू आर्थिक चुनौतियों के चलते रुपया दबाव में है। ऐसे में व्यापारी और नीति-निर्माता आने वाले समय में संभावित घटनाक्रमों पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।
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