आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) ने रविवार को भारत में घटती प्रजनन दर पर चिंता जताते हुए दंपतियों से कम से कम तीन बच्चे पैदा करने का आग्रह किया। नागपुर में आयोजित कथाले कुल सम्मेलन में भागवत ने कहा कि जनसंख्या दर 2.1 से नीचे जाने पर समाज समाप्त होने की ओर बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि यह समाज और संस्कृति की निरंतरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
अपने संबोधन में भागवत ने मराठी में कहा, “लोकसंख्या शास्त्र कहता है कि जब प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो समाज स्वयं समाप्त होने लगता है। उसे कोई नष्ट नहीं करता, वह खुद ही नष्ट हो जाता है। यह स्तर 2.1 से नीचे नहीं जाना चाहिए। समाजशास्त्र कहता है कि दो से अधिक, कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए।”
भारत में कुल प्रजनन दर (टीएफआर), जो किसी महिला द्वारा अपने प्रजनन काल (15-49 वर्ष) में जन्मे बच्चों की औसत संख्या को दर्शाती है, 1992-93 में 3.4 से घटकर 2019-21 में 2 तक पहुंच गई है।
टीएफआर का 2.1 का स्तर जनसंख्या प्रतिस्थापन दर माना जाता है, जो सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक पीढ़ी अपनी संख्या को बनाए रखे। भागवत ने इस मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि यदि प्रजनन दर लंबे समय तक प्रतिस्थापन स्तर से नीचे रहती है, तो यह जनसंख्या में गिरावट का कारण बन सकती है।
उन्होंने परिवार की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “परिवार समाज की आधारभूत इकाई है। यह संस्कृति और मूल्यों को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने का साधन है। यह न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रासंगिक है।”
पुनर्सीमांकन और क्षेत्रीय चिंताएँ
भागवत की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दक्षिणी राज्यों ने अपनी घटती जनसंख्या वृद्धि दर के कारण राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की है। 2026 में संभावित पुनर्सीमांकन प्रक्रिया, जो जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों की सीमा तय करेगी, उन राज्यों के लिए चुनौती बन सकती है जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता पाई है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन जैसे नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी है। नायडू ने हाल ही में अधिक बच्चों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लागू करने की बात कही और स्थानीय चुनावों में दो-बाल नियम को खत्म कर दिया। स्टालिन ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि अब नवविवाहितों को आशीर्वाद में ’16 बच्चों’ का लक्ष्य दिया जाना चाहिए ताकि कम जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक पत्र ऑर्गेनाइज़र ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है। जुलाई में प्रकाशित एक संपादकीय में, संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में कम प्रजनन दर के कारण उन्हें संसदीय सीटों में नुकसान हो सकता है, जबकि उच्च जनसंख्या वृद्धि दर वाले उत्तरी राज्यों को लाभ हो सकता है। उन्होंने क्षेत्रीय असंतुलन को रोकने के लिए एक समान जनसंख्या नीति की आवश्यकता पर जोर दिया।
ऐतिहासिक संदर्भ और जनसंख्या नीति
भागवत की यह टिप्पणी उनके 2022 के विजयादशमी भाषण से मेल खाती है, जिसमें उन्होंने समान जनसंख्या नियंत्रण नीति की वकालत की थी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि जनसंख्या असंतुलन के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा था, “जब 50 साल पहले जनसंख्या असंतुलन हुआ था, तो हमने इसके गंभीर परिणाम झेले। आज भी, ईस्ट तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो जैसे नए देश बने हैं। जब जनसंख्या में असंतुलन होता है, तो देश विभाजित हो जाते हैं।”
जनसंख्या और प्रजनन दर पर यह बहस न केवल जनसांख्यिकीय चिंताओं बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक आयामों को भी छूती है। विभिन्न क्षेत्रीय चुनौतियों और दृष्टिकोणों के साथ, भारत के जनसांख्यिकीय भविष्य को लेकर जनसंख्या नीति पर यह चर्चा महत्वपूर्ण बनी हुई है।
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