गुजरात के कच्छ में मुंद्रा बंदरगाह से जब्त की गई 30,000 किलोग्राम हेरोइन भारतीय में खपाने के लिए नहीं थी। इतना ही नहीं, गौतम अडानी का नाम का नाम भी इसमें राजनीतिक वितंडा खड़ा करने के मकसद से बेवजह घसीटा जा रहा है, जो वास्तव में जांच को नुकसान ही पहुंचा सकता है। यह जानकारी जांच टीमों के सूत्रों ने वाइब्स ऑफ इंडिया को दी है। बता दें कि यह बंदरगाह अडाणी समूह के पास है।
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, माना जा रहा है कि इसमें एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग गिरोह शामिल था और दो कंटेनरों में भरी हेरोइन की अंतिम मंजिल अमेरिका थी।
जिस बंदरगाह से हेरोइन को जब्त किया गया है, यानी अदाणी समूह के स्वामित्व वाले मुंद्रा बंदरगाह की कोई भूमिका नहीं है। फिर भी यह सब और दुर्भावनापूर्ण तरीके से राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है। नाराज अधिकारियों ने कहा कि इन सबके के बीच भारतीय डीआरआई और सीमा शुल्क विभाग की टीमों की सराहना करना भुला दिया गया है, जिन्होंने इस तरह की सनसनीखेज बरामदगी को अंजाम दिया है।
इस ड्रग तस्करी रैकेट में शामिल एकमात्र गुजराती, जो इसका अगुआ भी हो सकता है, वह अमित नाम का शख्स है। वह एक कार्गो ऑपरेटर है, जिसके अहमदाबाद और कच्छ में कार्यालय हैं। उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। डीआरआई के सूत्रों ने बताया कि मुंद्रा से बरामद माल को विजयवाड़ा ले जाने का इरादा भी बिल्कुल नहीं था।
मुंद्रा से हेरोइन सड़के मार्ग से दिल्ली या मुंबई पहुंचती, जहां से उसे अमेरिका भेजा जाता और इसका कुछ हिस्सा यूरोपीय बाजारों के लिए एम्स्टर्डम भी भेजा जाता। भारत में आतंकवादी संगठन शायद कुछ मामूली अनुपात के लिए अनुरोध कर सकते थे, लेकिन प्रारंभिक जानकारी कहती है कि पूरा स्टॉक भारत के लिए नहीं था।
हेरोइन ले जाने के लिए ट्रक की व्यवस्था राजस्थान की एक एजेंसी जयदीप लॉजिस्टिक्स ने की थी। लेकिन माल यहीं रह गया है। चेन्नई के उसी दंपती के लिए बहुत बड़ी मात्रा वाली एक खेप पहले भी आ चुकी है, जिसे यह ट्रक ले जा रहा है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसने गुजरात नहीं छोड़ा है।
सूत्रों का कहना है कि ट्रक अभी भी लापता है। जांचकर्ताओं ने कहा कि शायद गुजरात में हेरोइन का पुराना स्टॉक है, जो अभी तक राज्य से बाहर नहीं गया है। वाइब्स ऑफ इंडिया ट्रक की नंबर प्लेट की पुष्टि कर सकता है, जो इस तरह है- RJ:01:GB 8238।
डीआरआई के एक अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “भारत हेरोइन की इतनी बड़ी खेप का प्रबंधन करने की स्थिति में नहीं है। आखिर 2.7 बिलियन डॉलर यानी 21,900 करोड़ बड़ी राशि है।” उन्होंने कहा, “यही हाल के कंटेनरों का है। अतीत में कम से कम दो और कंटेनर निकल चुके हैं जो कुल मिलाकर लगभग दोगुना हो जाएगा। यह एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय कार्टेल के बिना संभव नहीं है।”
कहीं शामिल नहीं हैं गौतम अडाणी
डीआरआई और सीमा शुल्क अधिकारियों ने कहा कि इस हेरोइन को राजनीतिक रंग देना बहुत ही सरल है और इससे ड्रग कार्टेल को ही फायदा होगा।
एक सेवारत डीआरआई अधिकारी ने वीओआइ को बताया कि वह उन वरिष्ठ राजनेताओं को देखकर बिल्कुल हैरान थे, जिनका वह सम्मान करते थे, जैसे- पी चिदंबरम। उन्होंने कहा- वह इस मुद्दे को राजनीतिक बना रहे हैं और गौतम अडाणी को इसमें घसीट रहे हैं। उन्होंने कहा, “कांग्रेस के शासन में भी कई प्रतिबंधित और सोने की तस्करी के संचालन का भंडाफोड़ किया गया था, लेकिन एक भी व्यक्ति का नाम नहीं लिया गया था। इसमें गुजरात भी शामिल है, जहां सौराष्ट्र के कच्छ और सलाया से प्रतिबंधित सामग्री की जब्ती रूटीन की बात थी। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, न कि राजनीतिक हिसाब बराबर करने का। ”
एक सीमा शुल्क अधिकारी, जो वर्तमान में राजस्थान में सेवारत हैं, ने वीओआइ को बताया कि जिस ट्रक को मुंद्रा से ड्रग्स ले जाना था, उसका स्वामित्व राजस्थान की एक कंपनी जयदीप लॉजिस्टिक्स के पास है। सीमा शुल्क अधिकारी ने कहा कि वह भाजपा की कई नीतियों के विरोधी हैं। “फि भी क्या किसी ने राजस्थान में किसी व्यक्ति विशेष या सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार का नाम लिया है? क्योंकि यह सबसे मूर्खतापूर्ण काम है। ”
अधिकारी ने कहा, “राजनीतिक साजिश के तहत की जा रही ऐसी बातें जांच को नुकसान पहुंचा सकती हैं।” उन्होंने कहा, “मुंद्रा बंदरगाह के मालिक गौतम अडाणी को हेरोइन के इस मामले में घसीटना अपरिपक्व और राजनीति से प्रेरित है, क्योंकि भारत में सीमा शुल्क नियमों के अनुसार बंदरगाह के मालिक केवल कार्गो के संरक्षक हैं।”
सीमा शुल्क अधिकारी ने कहा कि इस मामले में मुंद्रा बंदरगाह या अदाणी को कंटेनरों को खोलने या यह साबित करने का कोई अधिकार ही नहीं है। अधिकारी ने समझाया, “जब्त की गई 3 टन हेरोइन की जानकारी छिपाई गई थी। अगर इस माल को छोड़ दिया जाता और अगर कोई आगे नहीं आता, तो अदाणी के स्वामित्व वाले बंदरगाह अधिकारियों को सरकारी एजेंसियों को सूचित करना पड़ता। फिर केवल सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में ही इसे खोला जा सकता था और फिर उसे नीलाम किया जा सकता था। ” उन्होंने दोहराया, “पोर्ट ऑपरेटर के पास कंटेनर की सामग्री को जानने का कोई तरीका नहीं था।”
एक अन्य अधिकारी ने कहा, “हम गौतम अडाणी की भूमिका के बारे में बहुत-सी भ्रामक खबरें पढ़ रहे हैं, हालांकि मेरा भाजपा से कोई राजनीतिक जुड़ाव नहीं है, लेकिन इस जब्ती में अडाणी का नाम लेना कानूनी और नैतिक रूप से गलत है।”
कई बार कच्छ में रह चुके एक सेवारत डीआरआई अधिकारी ने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा, “मैंने अडाणी का प्रेस नोट देखा। एक भी तथ्य ऐसा नहीं है जिस पर संदेह किया जा सके। मुझे मुंद्रा बंदरगाह मालिकों के खिलाफ कोई मामला नहीं दिखता। जब वह कहते हैं कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है, तो बिल्कुल सही कहते हैं।”
मुद्दे के तौर पर, रणनीति और मानव संसाधन के तौर पर दिवालिया कांग्रेस ने गौतम अडाणी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है, तो इसकी वजह साफ है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीब हैं। ऐसे में वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि यह राजनीतिक शिगूफा न केवल जांच को नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि भारत में ड्रग कार्टेल को पैंतरेबाजी दिखाने के लिए सहारा भी बन सकता है।
ब्रसेल्स, बेल्जियम में विश्व सीमा शुल्क संगठन (डब्ल्यूसीओ) के अधिकारियों ने वाइब्स ऑफ इंडिया को बताया कि डब्ल्यूसीओ प्रमुख कुनियो मिकिरिया को भी यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि बंदरगाहों को किसी भी कंटेनर को खोलने या संचालित करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
डीआरआई के पूर्व महानिदेशक बीवी कुमार ने भी ऐसी ही बात कही है, जिनकी पुस्तक डीआरआई एंड डॉन्स: द अनटोल्ड स्टोरीज इसी तरह के विभिन्न मामलों का विवरण देने वाला दस्तावेज है। वीओआइ के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “यह (हेरोइन तस्करी) एक बहु-स्तरीय ऑपरेशन होगा, जिसमें बहुत सारे लोग सामने होंगे। इन लोगों को तो ऑपरेशन का भी अंदाजा नहीं हो सकता है। अगर इनमें से कोई भी सरकारी गवाह के रूप में सामने आने की हिम्मत करता है तो वे मारे भी जा सकते हैं। ड्रग कार्टेल की ताकत इतनी है।”
कुमार ने न केवल डीआरआई बल्कि कुछ केंद्रीय एजेंसियों का भी नेतृत्व कर रखा है। वह एक सुपर जासूस के रूप में जाने जाते थे। वह इस बात से सहमत थे कि अडाणी का नाम अनावश्यक रूप से इस मामले में घसीटा जा रहा। उन्होंने कहा, “जांच पूरी होने तक ऐसा करना सही नहीं है।”
उन्होंने कहा, “एक बंदरगाह के मालिक का किसी भी खेप पर नियंत्रण का कोई अधिकार नहीं है। वह केवल संरक्षक हैं। और अपने 35 साल के इतिहास में मैंने देखा है कि सार्वजनिक और निजी बंदरगाहों का उपयोग ड्रग लैंडिंग और ट्रांजिट के लिए समान रूप से किया जाता है। ”
उन्होंने याद किया कि कैसे महाराष्ट्र में मुंबई के बाहरी इलाके में सरकारी स्वामित्व वाली न्हावा शेवा में मादक पदार्थों की एक बड़ी खेप पकड़ी गई थी। उन्होंने एक भू-राजनीतिक साजिश को भी रेखांकित किया। कहा, “यह पाकिस्तान द्वारा जानबूझकर की गई चाल लगती है। हेरोइन के धंधे में वे अफगानिस्तान की मदद करते हैं। कंटेनरों को जानबूझकर ईरान भेजा गया और फिर वहां से भारत भेज दिया गया। इसलिए कि ईरान और भारत के बीच व्यापार संबंध बढ़िया हैं।”
सेवारत डीआरआई अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन में सीधे तौर पर शामिल था, क्योंकि “वह अफगानिस्तान की मदद करने के लिए उत्सुक है जो एक गंभीर आर्थिक स्थिति में है।”
इससे आहत होते जासूस
आयुक्त-रैंक के एक सीमा शुल्क अधिकारी ने वीओआइ को बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी हेरोइन तस्करी का पर्दाफाश करने के बावजूद डीआरआई और सीमा शुल्क टीम की नहीं सुनी गई।
आयुक्त-रैंक के एक सीमा शुल्क अधिकारी ने वीओआइ को बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी हेरोइन तस्करी का पर्दाफाश करने के बावजूद डीआरआई और सीमा शुल्क टीम की नहीं सुनी गई।
उन्होंने कहा, “यह केवल भारत में ही हो सकता है। हम अंतरराष्ट्रीय गिरोह को उजागर करने में अपना जीवन दांव पर लगा देते हैं। हम अदृश्य लोग हैं, जो बहुत ही दृश्यमान कार्य कर रहे हैं। फिर भी हमारी बात नहीं सुनी जाती है।”
बी.वी.कुमार, जो कभी इलस्ट्रेटेड वीकली के कवर पेज पर थे, सहमत थे कि यह एक वाजिब शिकायत है।
जांचकर्ता क्या जानते हैं
हेरोइन की आपूर्ति भारत के लिए नहीं थी। दुनिया में नशीली दवाओं के उपयोग में भारत का हिस्सा 6 प्रतिशत है। ऐसे में यह जब्ती ऐसी चीज है जिसे भारत बर्दाश्त नहीं कर सकता। एक किलो हेरोइन की बाजार कीमत 4 करोड़ रुपये होती है। यहां हम बात कर रहे हैं 30,000 करोड़ की। साथ ही 250,000 करोड़ हेरोइन की शुरुआती खेप की। पहली खेप जून में निकली, लेकिन उसके लिए पोर्ट ऑपरेटर को दोष नहीं दिया जा सकता। यह सीमा शुल्क विभाग है, जो जिम्मेदार है। कानून के तहत अदाणी का मुंद्रा बंदरगाह केवल संरक्षक है और उसे पता नहीं है कि कंटेनरों के अंदर क्या है।
माना जाता है कि अब तक गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को ड्रग कार्टेल द्वारा छह स्तरीय ऑपरेशन की अग्रिम पंक्ति माना जाता है। इसके बारे में माना जाता है कि यह विदेशों से संचालित होता है। दुनिया की सबसे बड़ी हेरोइन खेप का ऑर्डर देने के लिए इस्तेमाल किए गए दंपती- सुधाकर और दुर्गा वैशाली- को 410 डॉलर से अधिक का भुगतान नहीं किया गया था। इनका इस्तेमाल चेन्नई के रवि वर्मा नामक एक व्यक्ति ने किया, जिसके आयात निर्यात लाइसेंस का इस्तेमाल दंपती के नाम पर टैल्कम पाउडर और टैल्कम स्टोन की आड़ में हेरोइन आयात करने के लिए किया गया है। राजस्थान की जयदीप लॉजिस्टिक्स भी इस अभियान का प्रमुख हिस्सा हो सकती है।
अधिकारियों का मानना है कि इसमें पाकिस्तान ने सक्रिय भूमिका निभाई है। सिर्फ गुमराह करने के लिए ईरान के रास्ते यह खेप भारत भेजी गई है।
इस हेरोइन के मुनाफे का इस्तेमाल तालिबान की गंभीर अर्थव्यवस्था में उबारने में हो सकता था। बता दें कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद ही अफगानिस्तान से कंटेनर भेजे गए थे।