अहमदाबाद की विश्व धरोहर को तिल-तिल कर मरते देखना - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

अहमदाबाद की विश्व धरोहर को तिल-तिल कर मरते देखना

| Updated: September 9, 2021 09:39

हाल ही में जब देश ने गुजरात के धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल यानी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल करने का जश्न मनाया, तो इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि हमने संयुक्त राष्ट्र के विरासत टैग को हासिल करने वाले गुजरात के इस शोकेस को अहमदाबाद शहर में ही भुला दिया।

और कैसे? यह जानने के लिए वाइब्स ऑफ इंडिया ने इस ढहती धरोहर की सैर की:

जब सुल्तान अहमद शाह ने 1411 में अहमदाबाद की स्थापना की थी, तो उन्होंने शहर को विदेशी इमारतों, कलात्मक मस्जिदों, वस्त्रों का व्यापार केंद्र, विश्व स्तरीय वास्तुकला और पोल संस्कृति का केंद्र बनाया।

ठीक 610 साल बाद अब यह निश्चित रूप से कब्र में तब्दील हो जाएगा, ताकि वह मलबे में मिल जाए।

इसलिए पुराने शहर में 1860 के दशक में बने बादशाह नो हाजिरो या राजा के मकबरे में प्रवेश करने से पहले ही आप लाक्षणिक और शाब्दिक रूप से कुछ गलत हुआ महसूस सकते हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का परिसर अब दोपहिया वाहनों, ठेले, रिक्शा और इससे भी बदतर, कचरा जमा करने के लिए पार्किंग स्थल बन गया है। बादशाह के कलात्मक मकबरे के प्रवेश द्वार पर कुछ बकरियां मासूमियत से खड़ी थीं।

आगे जो आता है, वह और भी बुरा है। अहमद शाह की रानियां यह देखकर चौंक जाएंगी कि उनका मकबरा कैसे एक तरह के भंडारगृह में बदल गया है। मानेक चौक के पास रानी नी हाजिरो की सीढ़ियों पर खड़ी एक साइकिल परिसर में टहलते हुए आपका स्वागत करती है।

डोरियों पर लटके कपड़े, अधूरे सजावटी सामान और उसका कच्चा माल चारों ओर बिखरा हुआ था। एक टूटी हुई लोहे की अलमारी कलात्मक मीनार को ढक रही थी। आप बेघर परिवारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्मारकों का अतिक्रमण करते हुए पाते हैं।

बादशाह नो हाजिरो के बाहर 50 से अधिक वर्षों से काम कर रहे एक स्थानीय विक्रेता ने कहा, “सबको वाह-वाही चाहिए। कोई करता कुछ नहीं। चाहे वह अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) का विरासत विभाग हो या सुन्नी वक्फ बोर्ड; हमारे जीवित स्मारकों के लिए कोई कुछ नहीं करता है। वे अपनी लग्जरी कारों, ब्रांडेड घड़ियों में इन जगहों पर जाते हैं, मदद के लिए बड़े-बड़े दावे करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। हम देखते हैं कि हमारी विरासत हर दिन मर रही है।”

यहां तक कि जब 8 जुलाई, 2017 को 600 साल पुराने शहर को विरासत का टैग दिया गया था, तब भी यूनेस्को के अपने विशेषज्ञों को संदेह था, क्योंकि शहर में प्राचीन गढ़ों, मस्जिदों और मकबरों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस योजना ही नहीं थी।

उदासीनता के संकेत

यह 2019 की बात है, जब शहर को हेरिटेज टैग खोने के गंभीर खतरे का सामना करना पड़ा था। तब एक सर्वे में पाया गया कि 30% संपत्तियों या तो निपट चुकी थीं या असुरक्षित थीं। स्थानीय स्तर पर संरक्षण उपायों की देखरेख करने वाली एक स्वतंत्र संस्था, विरासत संरक्षण समिति (एचसीसी) द्वारा इसे लाल झंडी दिखा दिया गया था।

उन्होंने यहां जो पाया, उसके लिए देखें बॉक्स (सिकुड़ती विरासत)। एएमसी के विरासत विभाग की निगरानी वाली 489 संपत्तियों में से 38 इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया था, 11 स्पॉट अब खाली प्लॉट हैं, 50 मामलों में आधुनिक संरचनाओं के लिए विरासत भवनों को मिला दिया गया था और 34 मामलों में भवन खराब स्थिति में थे।

प्रारंभिक चेतावनी

चेतावनी पहले भी आई थी। विरासत भवनों को गिराने का मुद्दा पहली बार 2015 में गुजरात हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) में उठाया गया था। इसमें दावा किया गया था कि मरम्मत के बहाने लगभग 700 घरों को गिरा दिया गया और 400 से अधिक घरों को व्यावसायिक उपयोग में बदल दिया गया था।

अदालत ने तब आदेश दिया था कि, “एएमसी को शहर के समृद्ध घरेलू वास्तुकला को बिगड़ने से बचाने के लिए सख्त कदम उठाने  चाहिए।” वास्तव में 2013 से एएमसी के हेरिटेज शाखा में मरम्मत के लिए 60 से अधिक आवेदन पड़े हैं। यह पुराने शहर में किए जा रहे विध्वंसों की संख्या की तुलना में केवल एक अंशभर है।

सिकुड़ती विरासत:

ग्रेड20012017विवरण
ग्रेड-1 (बिरले)45840उच्च महत्व की संरचनाएं
ग्रेड II (ए)1,22299अगले भाग पर एक समान अभिव्यक्ति वाली इमारतें।
ग्रेडII (बी)10, 822550मध्यम या उच्च स्तर की अभिव्यक्ति वाली इमारतें और विभिन्न अवधियों से संबंधित संरचनाएं .
ग्रेड IIIउपलब्ध नहीं1,595कम या बिना अलंकरण वाली इमारतें और अग्रभाग का मध्यम संशोधन।
कुल12,5022,284 
    

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल जिनका टैग रद्द किया गया है:

1. लिवरपूल मैरीटाइम मर्केंटाइल सिटी — इंग्लैंड

2. अरेबियन ओरिक्स सैंक्चुअरी — ओमान

3. ड्रेसडेन एल्बे वैली – जर्मनी

एक किलोमीटर या इससे भी अधिक चलकर हम मांडवी नी पोल तक पहुंचे। वहां हमें 100 साल पुरानी एक हवेली मिल। उस पर ग्रेड-II का टैग लगा हुआ था (देखें बॉक्स)। वेतनभोगी कर्मचारी अतुल पारिख ने कुछ साल पहले 22 कमरों वाली हवेली का जीर्णोद्धार किया था।

उन्होंने कहा, “धरोहर वाले भवन पुराने होने के कारण नवीनीकरण की मांग करते हैं। वहां पानी का रिसाव हो रहा था, दीवारें गिर रही थीं और सफाई के भी मसले थे। जब मैं इसका नवीनीकरण करना चाहता था, तो मुझे नहीं पता था कि किससे संपर्क करना है। एक बार जब मैंने एएमसी के विरासत विभाग का पता किया, तो मैं वहां 15 दिनों से अधिक समय तक जाता रहा। मरम्मत के लिए पैसे की तो बात ही छोड़िए, उन्होंने मेरी एक भी नहीं सुनी। आखिर यह मेरा घर है, उसे मरम्मत की जरूरत थी और अंत में खुद आगे बढ़कर इसकी मरम्मत कराई।”

Link: https://www.youtube.com/watch?v=MpsEIibUMmQ

पारिख को अपने पुश्तैनी घर से प्यार है। यहां तक कि जब उनके परिवार के अन्य सदस्य सिंधु भवन के पॉश इलाकों में रहने के लिए चले गए, तब भी उन्होंने हवेली की रक्षा करना चुना, जहां वह  पत्नी के साथ रहते हैं। उन्होंने हवेली के नवीनीकरण के लिए 18 लाख रुपये खर्च किए। वह कहते हैं, “हमें सरकार से एक पैसा भी नहीं मिला है, बस हेरिटेज टैग मिलने के लिए बधाई।”

ढाल-नी-पोल-ग्रेड II/बी हेरिटेज टैग की 70 साल पुरानी हवेली कभी तीन मंजिली इमारत थी। उसमें आठ कमरे थे। अब इसमें दो मंजिलें बची हैं। गुजरात में 2001 में आए भूकंप में एक मंजिल गिर गई थी।

Link: https://youtu.be/Nn-DQpJD5pc

यहां पति के साथ रहने वाली शिवांगीबेन ने कहा, “ऊपरी मंजिल का एकमात्र अवशेष एक सीढ़ी के दो चरण हैं। हमने इसे स्मृति के रूप में सहेज कर रखा है। हम इसे ठीक नहीं कर सके, क्योंकि हमें सरकार से केवल दस हजार रुपये मिले, जबकि सिर्फ कबाड़ को साफ करने की लागत 50 हजार रुपये तक बढ़ गई। हम घर के नवीनीकरण के लिए और अधिक पैसा कैसे खर्च कर सकते हैं? विरासत विभाग ने लोगों को पैसे की भरपाई करने का आश्वासन दिया, लेकिन हमें कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।” वे महीनों से अपने पुश्तैनी घर को बेचना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोई खरीदार नहीं मिल रहा।

मरम्मत की लागत

यहां तक कि अगर स्थानीय निवासी अपने ढहते विरासत स्थलों को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं, तो यह एक बुरा सपना बन जाता है। अहमदाबाद हेरिटेज के लिए बड़े पैमाने पर काम करने वाले मधीश पारिख कहते हैं, “स्थानीय लोगों के पास संपत्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक धन नहीं है। प्रोटोकॉल चाहता है कि वे बनाए रखने के लिए आवेदन करें, पैसे का भुगतान करें और बाद में लागत की प्रतिपूर्ति के लिए एएमसी के साथ फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) बांड के लिए आवेदन करें। ट्रांसफर ऑफ डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) सर्टिफिकेट वाले लोगों को शुरुआती चरण में 20% और बहाली के बाद 80% रिफंड मिलता है। यह दुष्चक्र अहमदाबाद की विरासत को बचाए रखने में एक बड़ी बाधा है।”

विरासत का व्यवसायीकरण

आंगन में हिंचको, लकड़ी की झालियां, बारीक नक्काशी और 200 साल का इतिहास। खड़िया की हवेली में मेहता परिवार की चार पीढ़ियां रहती हैं। एक दवा कंपनी के सेवानिवृत्त कार्यकारी जगदीप मेहता ने अहमदाबाद के विरासत विभाग और फ्रांसीसी सरकार की मदद से 2004 में अपने पैतृक स्थान- ग्रेड II / बी- का नवीनीकरण किया। हालांकि उनके लिए अपने दो मंजिला 12-कमरे के घर को नवीन करना एक आसान काम था। हालांकि उसी तरह के नवीनीकरण में आज काफी समय लग सकता है।

जगदीप ने कहा, “अगर निगम उसी तरह से काम करता है जिस तरह से वह अभी कर रहा है, तो अहमदाबाद अपनी विरासत खो सकता है। चारदीवारी के लापरवाह व्यावसायीकरण के परिणामस्वरूप स्टोररूम और दुकानों की कीमतों में वृद्धि हुई है। हमारे पड़ोस में कई घर या तो स्टोररूम में तब्दील हो गए हैं या गिर गए हैं। ”

विरासत संपत्ति पर पारिवारिक विवाद

अहमदाबाद वर्ल्ड हेरिटेज सिटी ट्रस्ट के निदेशक आशीष ट्रंबाडिया का मानना है कि शहर अभी भी जीर्णोद्धार के लिए नया है और चूंकि यह ऊष्मायन की अवधि से गुजर रहा है, ऐसे मुद्दे सामने आएंगे ही।

उनका कहना है कि एक और पेचीदा मुद्दा विरासत की संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवादों का है। “एक विरासत संपत्ति के उपखंड के बारे में बच्चों के बीच विवाद हैं। जब तक समस्या का समाधान नहीं हो जाता तब तक जीर्णोद्धार पर रोक लगा दी गई है। ऐसी इमारतों की संख्या बढ़ रही है और वे अंततः जीर्णोद्धार से चूक जाती हैं।”

दिमाग बदलें, इमारतें खिल उठेंगी

कोलकाता के एक बंगाली देबाशीष नायक ने 1996 में अहमदाबाद में कदम रखा। वह तब से शहर की विरासत के लिए काम कर रहे हैं। अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) की विरासत संरक्षण समिति के वास्तुकार और संरक्षक का मानना है कि ज्यादातर लोग उनके पास जो कुछ भी है, उसे महत्व नहीं देते हैं।

पुराने शहर में 12,000 से अधिक इमारतें हैं और हमारी विरासत का मुद्दा बहुआयामी है। सामाजिक प्रवास, विरासत के बारे में जागरूकता, जीर्णोद्धार आदि पर विचार करने की आवश्यकता है। विरासत की समीक्षा हर पांच साल में होती है और विरासत स्थलों को पुनर्जीवित करने के लिए सिस्टम को अपने पैरों पर होना चाहिए। हमें लोगों के दिमाग को बदलने की जरूरत है, इमारतें जिसकी झलक हैं।”

अहमदाबाद के विरासत टैग को खोने से ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अमदावाद अपनी धरोहर खो रहा है। लेकिन, कोई सुन भी रहा है?

Your email address will not be published. Required fields are marked *