भारत में काम कर रहे स्कैमर्स ने भारतीय कानूनों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों (enforcement agencies) के चंगुल से बचने का एक रास्ता खोज लिया है। ये साइबर अपराधी (cybercriminals) अपने संचालन के आधार के रूप में अफ्रीका में अल्पज्ञात मार्शल द्वीप समूह (Marshall Islands) और साहेल क्षेत्र जैसे विदेशी क्षेत्रों का उपयोग कर रहे हैं, जहां वे घर वापस धोखाधड़ी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए वीपीएन परमिट (VPN permits) किराए पर लेते हैं।
गुजरात में विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों (law enforcement agencies) द्वारा साइबर धोखाधड़ी (Fraudsters operating) की जांच में एक हैरान करने वाले मामले का खुलासा हुआ है। दिल्ली एनसीआर, पश्चिम बंगाल, झारखंड और राजस्थान जैसे स्थानों से काम कर रहे जालसाज पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए ऑस्ट्रेलिया के पास मार्शल द्वीप समूह और अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में स्थित सर्वर से वीपीएन सेवाएं प्राप्त कर रहे हैं। स्थानीय पुलिस अक्सर इन कम ज्ञात क्षेत्रों में किराए के वीपीएन (VPNs) को सुरक्षित करने के लिए इन कार्यों के पीछे मास्टरमाइंड को खोजने में असफल होटी है।
इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (Indian Computer Emergency Response Team) ने 28 अप्रैल, 2022 को नियम जारी किए, जिसमें वीपीएन प्रदाताओं को पांच साल तक अपने ग्राहकों का रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता थी। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि कई वीपीएन प्रदाताओं ने अफ्रीका में साहेल क्षेत्र में स्थानांतरित होने का विकल्प चुना है।
जामनगर साइबर क्राइम पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “मूवी रेटिंग घोटाले की जांच के दौरान, हमने पाया कि जालसाज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artificial intelligence) का उपयोग करके कृत्रिम रूप से फिल्म की रेटिंग बढ़ा रहे थे। इसे पूरा करने के लिए, उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के पास मार्शल आइलैंड्स से किराए पर वीपीएन हासिल किया।”
एक अन्य अधिकारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत के विभिन्न हिस्सों से फ़िशिंग, रैनसमवेयर, कार्ड धोखाधड़ी और सेक्स्टॉर्शन मामलों में शामिल घोटालेबाज विदेशों में किराए के वीपीएन पर भी काम कर रहे थे।
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