हर किसी के जहन में अपने बचपन में खेले गए खेलों की यादें जरूर होंगी। बचपन में स्वभावतः बच्चे कई खेलों को इन्जॉय करते हैं उनमें से एक है ‘लंगड़ी’ खेल। वैसे यह खेल पूरे भारत में लगभग हर राज्य में खेला जाता है, लेकिन गुजरात के संदर्भ में यह लगभग एक सदी पहले पूर्ववर्ती बड़ौदा राज्य में खेले जाने वाले प्रमुख खेलों में से एक था। लंगड़ी ने आधुनिक खेल क्षेत्र, विशेष रूप से स्कूल के खेल के मैदानों में अपनी प्रासंगिकता खो दी। लेकिन, पारंपरिक खेलों की सूची से बाहर हो गया यह खेल अब वापसी कर रहा है।
वडोदरा में गुजरात क्रीड़ा मंडल (जीकेएम) में लंगड़ी (langdi) खेल में बच्चों को प्रशिक्षित करने वाले एक पूर्व एथलीट योगेश मुले ने न केवल खेल को पुनर्जीवित करने के लिए, बल्कि खेल के राष्ट्रीय मानचित्र के शीर्ष पर गुजरात को बरकरार करने के लिए एक मिशन की शुरुआत की है। मुले बड़ौदा जिला लंगडी एसोसिएशन (बीडीएलए) के संयुक्त सचिव हैं। मुले 18 साल से कम उम्र के बच्चों को कोचिंग दे रहे हैं और नेशनल में खेलने के लिए गुजरात की टीमों को ले जाते हैं। “एक समय था जब वड़ोदरा लंगड़ी खिलाड़ियों (langdi players) का केंद्र हुआ करता था क्योंकि महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ (Maharaja Sayajirao Gaekwad) ने इसे राज्य के खेल टूर्नामेंटों में शामिल किया था,” मुले ने कहा, जिनके प्रयासों के परिणामस्वरूप गुजरात ने पिछले कुछ महीनों में सब-जूनियर के साथ-साथ वरिष्ठ राष्ट्रीय टूर्नामेंट में तीन कांस्य पदक जीते।
जीकेएम में बच्चों और अन्य खिलाड़ियों को लंगड़ी खेलने के लिए प्रोत्साहित करने वाले मुले ने कहा, “लंगड़ी को आमतौर पर एक मनोरंजक खेल माना जाता है। इससे लोग इसके लिए प्रोफेशनल प्रशिक्षण पर भी सवाल उठाते हैं। लेकिन खेल के भौतिक और संज्ञानात्मक पहलू इसे सभी शारीरिक खेलों की जननी बनाते हैं। यह सहनशक्ति, संतुलन और एकाग्रता में सुधार करता है, अंगों को मजबूत बनाता है और फुटवर्क को अधिक प्रभावी बनाता है।”
राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीतने वाली गुजरात लंगडी टीम के 18 वर्षीय सदस्य श्लोक पावले ने कहा, “मैंने लंगड़ी मज़े के लिए खेली, लेकिन अब इसके फ़ायदों का एहसास हुआ है। मेरा स्टैमिना बहुत बढ़ गया है और मेरे पैर मज़बूत हैं।”
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