सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने देश भर के हाई कोर्टों में जजों की बड़ी संख्या में रिक्त पदों को भरने के लिए 10 महिलाओं समेत 68 नामों की सिफारिश की है। यह पहला मौका है जब कॉलेजियम ने एक साथ इतने नामों को मंजूरी दी है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) एनवी रमण की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कॉलेजियम की 25 अगस्त और एक सितंबर को बैठक हुई थी। इसमें उन्होंने 112 संभावितों की सूची में से ये नाम चुने। बताया जाता है कि कॉलेजियम ने ताजा दौर में विचार करने के लिए 16 नामों के बारे में अधिक जानकारी मांगी।
न्याय विभाग के अनुसार, एक सितंबर को 25 हाई कोर्ट में 1,098 की स्वीकृत पदों के मुकाबले 465 रिक्तियां थीं- स्थायी न्यायाधीशों की 281 और 184 अतिरिक्त न्यायाधीशों की। इनमें से इलाहाबाद हाई कोर्ट में 68, पंजाब और हरियाणा में 40 और कलकत्ता में 36 रिक्तियां हैं।
सुप्रीम कोर्ट के लिए एक बार में नौ जजों के नामों को मंजूरी देने के एक पखवाड़े बाद सीजेआइ की अध्यक्षता में एक और कॉलेजियम ने 68 नामों की सिफारिश की है। बता दें कि शीर्ष अदालत के लिए जजों को पांच सदस्यीय कॉलेजियम चुनता है। इस तरह सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में तीन महिलाओं समेत नौ नामों को मंजूरी मिलने के बाद उन सबने 31 अगस्त को शपथ ली।
हाई कोर्ट के लिए नामों को मंजूरी देने वाले कॉलेजियम में सीजेआइ के अलावा जस्टिस यूयू ललित और एएम खानविलकर शामिल थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए16 नामों की सिफारिश की गई थी, तो केरल के लिए 8, कलकत्ता और राजस्थान के लिए 6-6, गुवाहाटी और झारखंड के लिए 5-5, पंजाब, हरियाणा और मद्रास के लिए 4-4, छत्तीसगढ़ के लिए 2 और मध्य प्रदेश के लिए एक।
हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए अनुशंसित लोगों में से 40 वकील हैं तो बाकी न्यायिक अधिकारी हैं।
इन नामों में पहले से चिह्नित मिजोरम की मार्ली वानकुंग भी हैं। वह राज्य की न्यायिक अधिकारी हैं। उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट में पदोन्नत करने की सिफारिश की गई है।
कॉलेजियम ने 17 अगस्त को तेलंगाना उच्च न्यायालय के लिए सात नामों को मंजूरी दी थी। कॉलेजियम ने राजस्थान, कलकत्ता, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक हाई कोर्टों के न्यायाधीशों के रूप में नौ वकीलों को पदोन्नत करने की अपनी पिछली सिफारिश को दोहराने का भी फैसला किया।
अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों में रिक्तियों के बारे में चिंता जताते हुए कहा था कि वे “संकट में” हैं। कहा, “हाई कोर्टों में लगभग 40% रिक्तियां हैं, इससे कई बड़े हाई कोर्ट को स्वीकृत पदों के मुकाबले आधी से भी कम क्षमता में काम करना पड़ रहा है।”
तब केंद्र ने कहा था कि इसमें कॉलेजियम द्वारा नामों की सिफारिश करने में देरी भी एक कारण है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कॉलेजियम सर्वसम्मति से अपनी सिफारिशों को दोहराता है तो केंद्र को भी तीन-चार सप्ताह के भीतर इन नामों को मंजूरी दे देनी चाहिए।