गुजरात में हर 6-12 महीने में मेडिकल छात्रों में तनाव की होगी जांच

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गुजरात में हर 6-12 महीने में मेडिकल छात्रों में तनाव की होगी जांच

| Updated: February 8, 2023 13:03

अहमदाबाद: गुजरात के 32 मेडिकल कॉलेजों को मेडिकल छात्रों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती संख्या को देखते हुए विशेष समितियां मिलेंगी। मेडिकल विशेषज्ञों ने प्रत्येक 6 से 12 महीनों में मेडिकल छात्रों के समय-समय पर असेसमेंट की मांग की है। साथ ही छात्रों की संख्या के हिसाब से फैकल्टी मेंटर,  बेहतर माहौल और छात्रों के लिए अलग से हेल्पलाइन सहित सुधार के कई कदम भी सुझाए हैं।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन गुजरात स्टेट ब्रांच (IMA-GSB) ने हाल ही में कॉलेजों को पत्र लिखकर ‘जल्द से जल्द’ 11 सदस्यों वाली ‘IMA-GSB केयर कमेटी’ बनाने को कहा है।

IMA-GSB द्वारा 1 फरवरी को लिखे गए एक पत्र ने आत्महत्या को “ज्वलंत मुद्दा” बताते हुए कहा कि “छात्र मानसिक स्वास्थ्य की कमी और मेडिकल  शिक्षा के बोझ का सामना कर रहे हैं।” आईएमए-जीएसबी के सचिव डॉ मेहुल शाह ने बताया कि यह पहल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि छात्र किसी भी तरह के दबाव में अकेला या अनसुना महसूस न करें। उन्होंने कहा, “आईएमए-जीएसबी केयर्स कमेटी’ में आईएमए के तीन डॉक्टर, दो मनोचिकित्सक, दो मेडिकल छात्र, दो माता-पिता और मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के दो डॉक्टर होंगे। हमने हाल ही में इसके लिए अस्पतालों को पत्र लिखे हैं।”

बीजे मेडिकल कॉलेज की प्रभारी डीन डॉ. हंसा गोस्वामी ने कहा कि अभी एक बार ही असेसमेंट होता है, जो नियमित रूप से किया जाएगा। उन्होंने कहा, “प्रस्तावों में से एक फैकल्टी सलाहकार और छात्र अनुपात में सुधार करना और छात्र के मानसिक या शारीरिक तनाव में बेहतर समर्थन देना है। डीन छात्र की दिनचर्या भी जानेंगे। साथ ही साथियों और माहौल के दबाव से निपटने में मदद भी करेंगे।”

राज्य ने 2022 में नौ मेडिकल छात्रों द्वारा आत्महत्या दर्ज की थी। इनमें से पांच अहमदाबाद के मामले थे। इस साल जनवरी में एनएचएम म्युनिसिपल मेडिकल कॉलेज के एक 21 वर्षीय छात्र ने अटल ब्रिज से साबरमती में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।

विशेषज्ञों ने प्रति 1 लाख मेडिकल छात्रों पर लगभग 20 आत्महत्याओं की ओर इशारा किया, जो गुजरात की आत्महत्या दर 11.7 प्रति 1 लाख जनसंख्या की तुलना में लगभग दोगुना है। मेडिकल क्षेत्र में आत्महत्याओं पर एक राष्ट्रीय अध्ययन ने संकेत दिया कि 2010 और 2019 के बीच 358 ने जीवन समाप्त किया। इनमें 125 यूजी छात्र, 15 पीजी छात्र और 128 डॉक्टर शामिल थे। लगभग 20% मामलों में कार्यस्थल पर उत्पीड़न को प्रमुख कारण पाया गया।

जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल गमेती ने कहा कि आत्महत्या की संख्या में वृद्धि का एकमात्र कारण काम का बोझ नहीं है। उन्होंने कहा, “हमें अन्य तनावों की पहचान करने और उनसे निपटने की आवश्यकता है। जेडीए के सदस्यों को नए छात्रों को नए माहौल में एडजस्ट करने के लिए कहा जाता है।”

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