गुजरात में मोरबी नगरपालिका ने आश्चर्यजनक रूप से राज्य सरकार के सामने अक्खड़पन दिखाया है। उसने मोरबी पुल हादसे को लेकर राज्य सरकार के नोटिस का जवाब 23 जनवरी को दे दिया। नोटिस में सरकार ने पूछा था कि “अपना फर्ज नहीं निभा पाने” और “अक्षमता” के लिए क्यों न उसे भंग कर देना चाहिए।
इस पर नगर पालिका ने तेवर दिखाते हुए जवाब दिया कि पहले सरकार उन दस्तावेजों को वापस करे, जिसे जांच टीम ने “जब्त” किया है। दरअसल, पुल हादसे में 135 लोगों की मौत की जवाबदेही को लेकर भाजपा शासित नगरपालिका को कहीं न कहीं राज्य की भाजपा सरकार टालमटोल में साथ दे रही है।
नगरपालिका की आम सभा से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि जब तक एसआईटी द्वारा जब्त किए गए रिकॉर्ड और दस्तावेज नहीं मिल जाते हैं, तब तक वह नोटिस का जवाब नहीं दे सकती है। ऐसे में सरकार को तब तक कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। हालांकि, यह समझ से बाहर है कि नगरपालिका के पास उन दस्तावेजों की कॉपी क्यों नहीं है। दूसरे, सरकार द्वारा 18 जनवरी के नोटिस पर नगरपालिका की प्रतिक्रिया से पहले भाजपा की मोरबी शहर इकाई के अध्यक्ष लाखाभाई जरिया के ऑफिस में एक बैठक हुई। इसमें इस बार मोरबी से चुनाव जीतने वाले विधायक कांतिलाल अमृतिया और नगरपालिका के लगभग 18 पार्षद (councillors) शामिल हुए।
कहना ही होगा कि भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार मोरबी मामले में धीमी गति से चल रही है। इसलिए कि हाल के वर्षों में राजकोट जिले में गोंडल तालुका पंचायत, देवभूमि द्वारका में भंवड़ नगरपालिका, और मोरबी में ही वांकानेर नगरपालिका के जनरल बोर्डों (general boards) को भंग करने में इतनी ढिलाई नहीं देखी गई थी।
2016 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली गोंडल तालुका पंचायत को भंग करने के बाद कांग्रेस के कुछ सदस्य भाजपा में चले गए थे। इससे जनरल बोर्ड बजट पास करने में विफल रहा। भंवड़ में भी इसी तरह 2021 में कांग्रेस की मदद से भाजपा के बागियों ने नगरपालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कराने में कामयाबी हासिल की थी।
सरकार ने नए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए जनरल बोर्ड की बैठक बुलाने के बजाय चार महीने बाद नगरपालिका को भंग करने से पहले भाजपा पार्षदों में से एक को अध्यक्ष का प्रभार सौंप दिया।
वांकानेर में बीजेपी के बागियों ने मार्च 2021 में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों के चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को हराकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद लगातार मनमुटाव के बाद राज्य सरकार ने अगस्त 2022 में जनरल बोर्ड को भंग कर दिया।
इसके विपरीत मोरबी नगरपालिका में भाजपा का पूर्ण नियंत्रण है। भाजपा ने यहां 2022 में अपनी सभी 52 सीटों पर जीत हासिल की थी। अध्यक्ष कुसुम परमार के नेतृत्व में यह भाजपा द्वारा शासित मोरबी जिले का एकमात्र निकाय है, जिसमें पाटीदार पार्षद नहीं हैं। इसलिए नगरपालिका के खिलाफ किसी भी कार्रवाई की कीमत पार्टी को चुकानी पड़ेगी।
टूट कर गिरने वाला मोरबी पुल नगरपालिका का है। इसकी देखरेख का जिम्मा ओरेवा (OREVA) ग्रुप के अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड के पास है। बता दें कि मोरबी पुल हादसा गुजरात में विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले हुआ था। हादसे के बाद मोरबी नगरपालिका के तबके मुख्य अधिकारी (सीओ) संदीपसिन जाला ने पुल की सुरक्षा ऑडिट की कमी के लिए ओरेवा ग्रुप को दोषी ठहराया था। कहा था कि उसने मरम्मत के लिए लंबे समय तक बंद रखने के बाद नगरपालिका को बिना बताए 26 अक्टूबर को जनता के लिए खोल दिया था।
24 नवंबर को इस मामले पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगरपालिका की गलती लगती है। उसने सरकार से पूछा था कि वह पालिका को भंग क्यों नहीं कर रही है।
15 दिसंबर को नगरपालिका के लगभग 45 पार्षदों ने भाजपा मोरबी विधायक अमृतिया के ऑफिस में बैठक की। इसमें उन्होंने निर्दोष होने का दावा किया और कहा कि वे पुल के संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा ग्रुप के साथ समझौता करने के पक्ष में नहीं थे। दावा किया कि उन्होंने न तो व्यक्तिगत रूप से एमओयू (MoU) पर दस्तखत किए थे और न ही सीओ ने इसे उस सामान्य बोर्ड को भेजा था, जिसके वे सदस्य हैं।
पार्षदों ने 19 दिसंबर को मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से मुलाकात कर नगरपालिका को भंग नहीं करने और पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। बताया जाता है कि तब सीएम ने कहा कि वह मामले को जानते हैं। साथ ही कहा था- “सरू थाई जशे (सब बढ़िया होगा)।”
अचानक 18 जनवरी को नगरपालिका को नोटिस भेजने का फैसला हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान फटकार से बचने के लिए सरकार की चाल लग रहा था। सरकार ने जहां नगरपालिका को जवाब देने के लिए 25 जनवरी तक का समय दिया, वहीं नगर निकाय ने 23 जनवरी को प्रस्ताव पारित कर दस्तावेज मांग लिए।
पार्षदों में से एक ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि उनमें से 33 पहली तो पहली बार पार्षद बने हैं। इसलिए, “उनके पास शासन का अधिक अनुभव नहीं है। ऐसे में वे अपने कार्यकाल में कटौती को रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं।”