दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार और राकेश अस्थाना का जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने सदरे आलम की याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 8 सितंबर को सूचीबद्ध कर दिया।
छह अगस्त को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा ऐसी ही जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति और उनकी सेवा को एक वर्ष के विस्तार को चुनौती दी गई थी।
31 अगस्त को भूषण ने तर्क दिया कि आलम की याचिका दुर्भावनापूर्ण है और उस मुद्दे की “पूरी नकल है” जिस पर वह सुप्रीम कोर्ट में बहस कर रहे हैं। उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप की अर्जी भी दाखिल की थी।
नियमों के अनुसार शीर्ष अदालत ने हस्तक्षेप आवेदन की अनुमति दे दी। भूषण ने कहा, “मेरी याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। मैं यहां बहस नहीं करना चाहता। इस याचिका को खारिज किया जाना चाहिए। यह न्यायालय के सभी नियमों का उल्लंघन करता है।”
जब अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या उन्होंने भूषण की याचिका की नकल की है, तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जनहित याचिका का विरोध किया और योग्यता के आधार पर इसका जवाब देने के लिए समय मांगा।
मेहता ने कहा, “यह भारी संयोग है कि टाइपोग्राफिक त्रुटियां भी समान हैं।” उन्होंने आगे “पेशेवर जनहित याचिकाकर्ताओं” की आलोचना की, जो ऐसी नियुक्तियों को चुनौती देने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं।
सदरे आलम बनाम भारत संघ
हाई कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में आलम ने अस्थाना को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करने के गृह मंत्रालय द्वारा जारी 27 जुलाई के आदेश और उन्हें अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति और सेवा विस्तार देने के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
वकील बीएस बग्गा के माध्यम से दायर याचिका में दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले जारी निर्देश के अनुसार सख्त कदम उठाने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि अस्थाना की नियुक्ति के संदर्भ में गृह मंत्रायल का आदेश प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि प्रतिवादी संख्या-2 (अस्थाना) के पास रियाटरमेंट से पहले छह महीने का न्यूनतम समय नहीं बचा था। दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए यूपीएससी द्वारा पैनल नहीं बनाया गया था। इसके अलावा दो साल के न्यूनतम कार्यकाल के मानदंडों को भी नजरअंदाज कर दिया गया है।
इसने दावा किया गया है कि प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित छह महीने वाले नियम के आधार पर भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता की उच्चस्तरीय समिति ने 24 मई, 2021 को हुई अपनी बैठक में अस्थाना को सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्त करने के केंद्र सरकार के प्रयास को खारिज कर दिया था।
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याचिका के मुताबिक, इसी आधार पर दिल्ली के पुलिस आयुक्त के पद पर अस्थाना की नियुक्ति को भी रद्द किया जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीपीआईएल द्वारा दायर इसी तरह की अपील के साथ दायर याचिका में केंद्र सरकार को 27 जुलाई के आदेश को पेश करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है, जिसमें गुजरात कैडर से एजीएमयूटी कैडर में अस्थाना की अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दी गई है।
याचिका में शीर्ष अदालत से अस्थाना की सेवा अवधि बढ़ाने के केंद्र के आदेश को रद्द करने का भी अनुरोध किया गया है। 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की नियुक्ति के खिलाफ उसके समक्ष लंबित याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा था।