छोटे अपराधों की बड़ी सजा कम करने के लिए बिल पेश, आईटी एक्ट से हटेगी धारा 66ए

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छोटे अपराधों की बड़ी सजा कम करने के लिए बिल पेश, आईटी एक्ट से हटेगी धारा 66ए

| Updated: December 23, 2022 11:50

नई दिल्ली: सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में जन विश्वास (प्रोविजन में संशोधन) बिल- 2022 पेश किया। इसमें 42 कानूनों में 183 प्रावधानों (Provisions) में संशोधन करने की बात है। इसमें मामूली उल्लंघनों का गैर अपराधीकरण करना, जुर्माने को तर्कसंगत बनाना और सरकार पर भरोसा बढ़ाना है। इसे “जीने और काम करने में आसानी के लिए विश्वास-आधारित शासन को बढ़ाने” की दिशा में  एक कदम कहा गया है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस बिल को चीन पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्ष के हंगामे के बीच पेश किया। इसे उनके अनुरोध पर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। उसे अपनी रिपोर्ट बजट सत्र-2023 के दूसरे भाग के पहले सप्ताह तक दे देनी है।

पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने कंपनी अधिनियम जैसे कई कानूनों को गैर-अपराधीकरण करने की मांग की है, लेकिन यह सबसे व्यापक अभ्यास है। हटाए जाने के लिए प्रस्तावित प्रावधानों की सूची में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की विवादास्पद धारा 66ए भी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर आपत्ति जताई थी। सरकार ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि नया कानून लागू होने के बाद हर तीन साल में न्यूनतम जुर्माना और जुर्माने में 10 फीसदी की बढ़ोतरी की जाएगी।

बिल में कई ऐसे छोटे-मोटे उल्लंघनों पर सजा के उदाहरण दिए गए हैं, जो एक सदी से भी पहले से चले आ रहे हैं। इनमें जेल की सजा तक शामिल है। अब ऐसे छोटे-मोटे उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा रहा है। सूची में गैर-बायोडिग्रेडेबल नेचर के पॉलीथीन बैग ले जाने या उपयोग करने जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है।  इसमें कैंटोन्मेंट एक्ट, 2006 के तहत छह महीने तक की जेल होती है। पहली बार अपराध के लिए 5,000 रुपये तक का जुर्माना बरकरार रखा जा रहा है। बार-बार करने पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगेगा।

इसी तरह, भारतीय डाकघर कानून (Indian Post Office Act )- 1898 के तहत अनपेड पोस्टल आर्टिकल (unpaid postal articles) भेजने के लिए दो साल तक की कैद को हटाया जा रहा है। जैसा कि भारतीय वन कानून (Indian Forest Act), 1927 के तहत छह महीने तक की जेल में पशुओं को चराने के मामले में भी है। हालांकि 500 रुपये का जुर्माना बरकरार रखने का प्रस्ताव है।

रेलवे कानून-1989 में एक प्रावधान है, जिसमें कोच या रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगने वालों को जेल और जुर्माने की सजा की बात है। बिल में प्रस्ताव किया गया है: “किसी भी व्यक्ति को किसी भी रेलगाड़ी या रेलवे के किसी भी हिस्से में भीख मांगने की अनुमति नहीं दी जाएगी।”

इसके अलावा, चाय कानून- 1953 में ऐसे प्रावधान हैं जो सरकार को “अवैध खेती” के लिए जुर्माना लगाने और अनुमति के बिना लगाए गए चाय को हटाने की अनुमति देते हैं। इन्हें कारावास के कुछ प्रावधानों के साथ समाप्त किया जा रहा है।

लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009 के तहत लीगल मेट्रोलॉजी ऑफिसर, कंट्रोलर या डायरेक्टर को झूठी सूचना देना एक कंपाउंडेबल ऑफेंस बनाने का प्रस्ताव है। इसका मतलब है कि उल्लंघन करने वाला जुर्माना देकर बच सकता है, जैसा कि मामूली ट्रैफिक उल्लंघन के मामले में होता है।

सांख्यिकी अधिनियम (Collection of Statistics Act) 2009 के प्रावधानों को मामूली प्रक्रियात्मक (procedural) अपराधों जैसे पुस्तकों, खातों, दस्तावेजों या रिकार्ड रखने में विफलता या गलत बयानी के मामले को हल्का करने का भी प्रस्ताव है। जेल की सजा के प्रावधानों को हटाया जा रहा है और कुछ मामलों में जुर्माने का प्रस्ताव है।

इसी तरह, लोक ऋण अधिनियम (Public Debt Act) के तहत झूठा बयान देने के लिए जेल की सजा को हटाया जा रहा है। भंडारण अधिनियम और खाद्य निगम अधिनियम (Warehousing Act and Food Corporations Act ) में ऐसे प्रावधान थे, जो उनकी सहमति के बिना संस्थाओं के नाम का उपयोग करने वालों के लिए जेल की सजा की अनुमति देते थे। इन्हें अब हटाने का प्रस्ताव है।

साथ ही डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट के तहत खातों में हेराफेरी के लिए जुर्माने को काफी बढ़ा दिया गया है, जबकि जेल की सजा का प्रावधान खत्म कर दिया गया है। उच्च मूल्यवर्ग के बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम, 1978 के तहत जुर्माने में संशोधन का भी प्रस्ताव किया गया है।

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