भाजपा सांसद ने कहा- समलैंगिक संबंध चलेगा, लेकिन विवाह नहीं

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भाजपा सांसद ने कहा- समलैंगिक संबंध चलेगा, लेकिन विवाह नहीं

| Updated: December 20, 2022 13:01

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का विरोध किया है। राज्यसभा में इस मसले को उठाते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के सामाजिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दो जज बैठकर फैसला नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समलैंगिक संबंध (Same sex live-in relationships) ठीक है, लेकिन समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। बता दें कि समलैंगिक विवाह को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में है। अदालत ने केंद्र सरकार से छह जनवरी तक अपना पक्ष बताने को कहा है। इतना ही नहीं, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता भी दे दी थी।

सुशील मोदी ने कहा, “किसी भी कानून को देश की परंपराओं और संस्कृतियों के हिसाब से होना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि हमारा समाज क्या है। फिर क्या लोग इसे मान लेंगे।” उन्होंने कहा, “समान-लिंग संबंधों (Same sex relations ) को अब अपराध नहीं माना जाता है। यह क्राइम की लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। लेकिन जब बात विवाह की आती है, तो यह एक पवित्र संस्था है।  समान-लिंग वाले जोड़ों का एक साथ रहना एक बात है, लेकिन उन्हें कानूनी रूप से मान्यता दे देना अलग है।”

दरअसल राज्यसभा में बिहार से भाजपा सदस्य सुशील मोदी ने सोमवार को शून्यकाल में इस विषय को उठाया। कहा कि ‘कुछ वामपंथी-उदार कार्यकर्ता’ प्रयास कर रहे हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिल जाए। सुशील मोदी ने ऐसी कोशिशों का विरोध करते हुए कहा, “न्यायपालिका (judiciary) को ऐसा कोई निर्णय नहीं देना चाहिए, जो देश की सांस्कृतिक मूल्यों (the cultural ethos of the country ) के खिलाफ हो।”

उन्होंने कहा, “मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करता हूं। भारत में न समलैंगिक विवाह को मान्यता है, न यह मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे किसी भी असंहिताबद्ध (uncodified) पर्सनल लॉ या संहिताबद्ध (codified) संवैधानिक कानूनों में स्वीकार्य है। समलैंगिक विवाह देश में मौजूद अलग-अलग पर्सनल लॉ के बीच बने नाजुक संतुलन को पूरी तरह तबाह कर देंगे।”भाजपा सांसद ने केंद्र सरकार से  सुप्रीम कोर्ट में भी समलैंगिक विवाह का जमकर विरोध करने का आग्रह किया। कहा, “इतने महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर दो जज बैठकर फैसला नहीं कर सकते।  इस पर तो संसद में भी बहस होनी चाहिए, और व्यापक तौर पर समाज में भी चर्चा होनी चाहिए।”

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