अहमदाबाद: सूरत जिले की लिंबायत विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के सामने बड़ी समस्या है। कुल 27% वोट वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 36 मुस्लिम उम्मीदवारों में से चुनना है। इस सीट पर कुल 44 उम्मीदवारों में से अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व 80% से अधिक है।
ऐसी कई और सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोट शेयर महत्वपूर्ण हैं। अहमदाबाद के बापूनगर निर्वाचन क्षेत्र में कुल 29 उम्मीदवारों में से 10 मुस्लिम उम्मीदवार हैं। इस सीट पर 28% मुस्लिम वोट हैं। इस सीट को 2012 के परिसीमन के बाद बनाया गया था और कांग्रेस विधायक चुने गए थे।
इसी तरह, वेजलपुर सीट में जुहापुरा की सबसे बड़ी मुस्लिम बस्ती शामिल है। वहां अल्पसंख्यक समुदाय का 35% वोट शेयर है। यहां 15 में से नौ उम्मीदवार मुस्लिम हैं और सभी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
इस बार के चुनावों में प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा कुछ मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। जहां भाजपा ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है, वहीं कांग्रेस ने छह, आम आदमी पार्टी (AAP) ने तीन और ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
ऐसे में, जहां मुस्लिमों द्वारा निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने की होड़ साफ दिखती है, वहीं छह सीटों पर भागीदारी बढ़िया है। इन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने उतारा है। कच्छ जिले में वांकानेर और अब्दासा सीटों को छोड़कर मुस्लिम उम्मीदवार कुल उम्मीदवारों का 50% से अधिक हैं। सूरत (पूर्व) सीट को लें, जहां कांग्रेस के असलम साइकिलवाला को अपने ही मुस्लिम समुदाय से कड़ी टक्कर मिल रही है, क्योंकि कुल 14 उम्मीदवारों में से 12 मुस्लिम हैं। इस सीट पर 22% मुस्लिम वोट हैं। अहमदाबाद के दरियापुर निर्वाचन क्षेत्र में 46% मुस्लिम वोट हैं। यहां कुल सात उम्मीदवारों में से पांच मुस्लिम हैं। 2017 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के ग्यासुद्दीन शेख ने 5,000 से भी कम वोटों से जीत हासिल की थी।
कांग्रेस का कहना है कि मुस्लिम निर्दलीय उम्मीदवार वोट बांटेंगेः
जमालपुर-खड़िया में मुसलमान बहुसंख्यक मतदाता हैं। वहां से कांग्रेस के इमरान खेड़ावाला दूसरी बार विधायक बनना चाह रहे हैं। वह सात उम्मीदवारों का सामना कर रहे हैं, जिनमें से चार मुस्लिम हैं। भरूच का वागरा भी अलग नहीं है, जहां कुल नौ में से छह मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार यह सीट भाजपा ने 14 हजार वोटों से जीती थी। इस सीट पर कांग्रेस ने सुलेमान पटेल को यहां उतारा है।
इसके अलावा गोधरा और भुज जैसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, लेकिन समुदाय के वोट मायने रखते हैं। 2017 में गोधरा में भाजपा के सीके राउलजी सिर्फ 258 वोटों से जीते थे। दोनों सीटों पर 10-10 उम्मीदवारों में से आधे मुस्लिम हैं। कांग्रेस करीबी मुकाबला वाली सीटों पर मुस्लिम निर्दलीय उम्मीदवारों की भरमार को अल्पसंख्यक वोटों को बांटने के लिए भाजपा की चाल बता कर रो रही है।
हिम्मतसिंह पटेल ने 2017 में बापूनगर सीट पर भाजपा के जगरूपसिंह राजपूत को 3,067 वोटों के मामूली अंतर से हराया था। वह दूसरी बार भी विधायक बनने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पटेल ने आरोप लगाया, ”चूंकि इस सीट पर जीत का अंतर कम था, इसलिए अल्पसंख्यक वोटों को बांटने के लिए बीजेपी ने कई अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को पैसा देकर उतार दिया है।”
लिंबायत से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार गोपाल पाटिल ने भी कहा, “भाजपा ने मुस्लिम निर्दलीय उम्मीदवारों को हमारे वोटों में खाने के लिए उतारा है। 2012 में जब मुकाबला आसान था, तो केवल कुछ अल्पसंख्यक उम्मीदवार थे। इस बार आम आदमी पार्टि के आ जाने से चिंतित भाजपा इस तरह की राजनीतिक नौटंकी का सहारा ले रही है। सभी मुस्लिम उम्मीदवार मेथी खादी क्षेत्र से हैं। लिंबायत से एआईएमआईएम के उम्मीदवार अब्दुल शेख ने भी इसी भावना का समर्थन किया है। “मुझे लगता है कि अधिकांश मुस्लिम उम्मीदवार भाजपा द्वारा प्रायोजित हैं, जिसने एआईएमआईएम और आप के प्रवेश के बाद कांग्रेस के वोटों में कटौती करने के लिए इस रणनीति का सहारा लिया है।”
भाजपा के सीनियर नेताओं ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा, “विपक्षी उम्मीदवार भाजपा पर दोषारोपण करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि अगर हम उन्हें चुनाव लड़ने के लिए पीछे से समर्थन दे सकते हैं, तो हम उनका इस्तेमाल सिर्फ अपने लिए वोट बदलने में क्यों नहीं करेंगे? सच्चाई यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय ने कांग्रेस में विश्वास खो दिया है। दरअसल एआईएमआईएम के आगमन के साथ ध्यान आकर्षित करने के लिए कई मुस्लिम चुनाव लड़ रहे हैं।” समाजशास्त्री और राजनीतिक पर्यवेक्षक घनश्याम शाह ने कहा, “मतदाता के रूप में मुस्लिम एकजुट नहीं हैं। उनके वोटों में विभाजन से अन्य उम्मीदवारों को लाभ होगा। भाजपा वोटों को विभाजित करने के लिए निर्दलीय उम्मीदवारों को प्रोत्साहित करती है। मुसलमानों को भाजपा पर भरोसा नहीं है और वे भरोसा भी नहीं करते हैं। इसीलिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मुस्लिम समुदाय के सदस्य आप और कांग्रेस से चुनाव लड़ते हैं।”