केंद्र ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया और योग्यता पर “संविधान की चुप्पी” (silence of the Constitution) संबंधी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का विरोध किया है। सीईसी और ईसी की नियुक्त करने के अपने अधिकार का मजबूती से बचाव करते हुए सरकार ने कहा कि संवैधानिक चुप्पी की भरपाई न्यायपालिका नहीं कर सकती है। इसलिए उसे कार्यपालिका (executive) के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण (encroaching) न करके उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
बता दें कि संविधान पीठ (Constitution bench) ने आशंका जताते हुए कहा था कि वर्तमान प्रणाली के तहत सरकार इन पदों पर सिर्फ ‘पसंदीदा’ को चुनेगी और नियुक्त करेगी। इस पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार द्वारा अपनाई गई कोई “पसंद कर चुनने की प्रक्रिया” नहीं है। ये नियुक्तियां नौकरशाहों की वरिष्ठता (seniority) के आधार पर की जाती हैं। उन्होंने कहा कि अदालत के हस्तक्षेप को सही बताने के लिए पक्षपातपूर्ण या अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति का कोई उदाहरण नहीं है।
जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश और सीटी रविकुमार की बेंच चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन के लिए “निष्पक्ष और पारदर्शी” सिस्टम की जरूरत सुनवाई कर रही है। इस सिलसिले में सरकार को कठिन सवालों का सामना कर पड़ रहा है। वेंकटरमणि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह की तिकड़ी ने अदालत को यह समझाने की कोशिश की कि न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आयोग ने हमेशा स्वतंत्र रूप से काम किया है और उल्लेखनीय काम किया है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हुई है।
एसजी ने कहा कि यदि कोई अयोग्य व्यक्ति चुना जाता है तो सुप्रीम कोर्ट निश्चित रूप से जांच कर सकता है और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को रद्द कर सकता है। इस पर बेंच ने कहा कि पद के लिए अभी तक कोई योग्यता तय ही नहीं की गई है, इसलिए किसी के अयोग्य होने का कोई सवाल ही नहीं है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि सीईसी का छोटा कार्यकाल आयोग की स्वतंत्रता को नष्ट कर रहा है। तब एजी ने कहा था कि इस पर विचार हो सकता है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव आयोग के सुधारों पर कई रिपोर्टें आई हैं और उन सभी ने बदलाव लाने की बात कही है। कोर्ट ने कहा, “कोई भी इतना आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए बहुत दूर नहीं जाना चाहता है और अदालत को इस गैप की जांच करनी है।” बेंच ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज करने में अगर सरकार द्वारा चुने गए चुनाव आयुक्त विफल रहे, तो इससे पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी।
इस पर तुषार मेहता ने कहा कि कार्यपालिका की स्वतंत्रता न्यायपालिका की स्वतंत्रता के समान ही पवित्र है। इसलिए एक गैर-कार्यकारी (non-executive) को आयोग की चयन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा सुझाए गए भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। यह सरासर न्यायिक अतिक्रमण (judicial overreach) होगा।
उन्होंने कहा कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए पीएम, विपक्ष के नेता और सीजेआई के एक पैनल द्वारा किए जाने का निर्देश दिया था, जो इससे अलग मामला था। मेहता ने तर्क दिया कि फैसले से पहले सीबीआई निदेशक सरकार का हिस्सा थे। लेकिन ईसी के पद और सीईसी संवैधानिक हैं। इस सिलसिले में नियुक्ति प्रक्रिया में कोई भी बदलाव केवल संसद द्वारा किया जा सकता है।
एएसजी बलबीर सिंह ने कहा कि आयोग ने वर्षों से स्वतंत्र रूप से और निष्पक्ष तरीके से काम किया है और इसके कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने हमेशा समय पर चुनाव कराने का उल्लेखनीय काम किया है। चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना भी सुनिश्चित किया है।
सुनवाई के अंत में, इसे राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से बचाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर अपने विचार सामने रखने की चुनाव आयोग की बारी थी। लेकिन चुनाव आयोग ने स्वतंत्र सचिवालय (independent secretariat) और संरक्षण (protection) के साथ वित्तीय स्वतंत्रता पर अपनी बात को सीमित रखा। चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा ने बहुत थोड़े में कहा कि आयोग ने उन पहलुओं पर सुधार के लिए केंद्र को विभिन्न प्रस्ताव भेजे थे, जिनकी गंभीरता से जांच की जानी चाहिए।