अहमदाबाद की खाद्य संस्कृति पारंपरिक व्यंजनों तक ही सीमित नहीं है। शहर के व्यावसायिक उद्यमियों ने शहर के लोगों के लिए एक स्वादिष्ट भोजनालय अथवा छोटा आहार कक्ष स्थापित करने के लिए दूर-दूर तक खोजबीन की है।
इटली से भारत तक
उत्तर प्रदेश के चंदपुर में एक युवक ने अपना खुद का व्यवसाय करने का सपना देखा और वहीं से अपनी यात्रा शुरू की, जिसकी स्थापना अहमदाबाद में हुई जो अब प्रसिद्ध और प्रामाणिक बेकरी में से एक, ‘ इटालियन बेकरी’ के नाम से मशहूर है।
इटालियन बेकरी के बिस्किट और प्लम केक पूरे शहर में प्रसिद्ध हैं। भद्रा के एक कोने में स्थित यह प्रतिष्ठान विभिन्न प्रकार के बिस्कुट, केक और ब्रेड परोसता है। यह अहमदाबाद की ऐसी पहली बेकरी भी थी, जिसमें मैकरॉन मिलते थे।
“मेरे दादाजी ने मुंबई में अपने प्रवास के दौरान एक इतालवी शेफ से सीखने के बाद यह व्यवसाय शुरू किया,” आमिर शेख बताते हैं, जिनके दादा नौकरी की तलाश में मुंबई गए और एक स्थानीय रेस्तरां में एक इतालवी शेफ से बहुत कुछ सीखा। उसके बाद, वह 1936 में अहमदाबाद आए और शहर के सबसे व्यस्त हिस्से में हॉट क्रॉस बन्स बेचने लगे। इसके तुरंत बाद, उन्होंने ब्रेड, बिस्कुट, पुडिंग और केक बनाने की खुद की शाखा लगा दी।
बेकरी में बनने वाले आइटम अपने नाम के अनुरूप स्वाद और शुद्धता प्रदान करते हैं क्योंकि बिस्कुट का स्वाद बिल्कुल इटली के बिस्कुट जैसा होता है। इस तरह प्रामाणिकता यहां बनने वाले व्यंजनों में निहित है। शेख कहते हैं, “व्यापार न केवल चल रहा है, बल्कि प्राकृतिक अवयवों की प्रामाणिकता और उपयोग के कारण हम बाजार पर हावी हो गए हैं।” स्टोर लगातार नए व्यंजनों के साथ प्रयोग भी करता है और उनके मेनू में बदलाव करता है। मांग में कमी के कारण कुछ वस्तुओं को बंद कर दिया जाता है, लेकिन इसके मैकरॉन, ब्रेड और प्लम केक अभी भी
उतने ही मांग में हैं जितने कि उस समय थे जब वे शुरू में पेश किए गए थे।
इसके अलावा बेकरी का एक अंतरराष्ट्रीय स्वाद भी है;- इसने कुछ साल पहले अटलांटा, यूएसए में एक स्टोर लॉन्च किया था।
सीमाओं की दूरियां कम करता दुध का हलवा
पहले यह नारनपुरा में दूध की एक आम दुकान जैसा लगता है। जब, कोई विंटेज होर्डिंग और पारंपरिक रसोई पर ध्यान देता है, तो यह महसूस करता है कि यह अहमदाबाद के सबसे पुराने दूध घरों में से एक है, जिसे श्री किशनसिंह राव द्वारा 1962 में स्थापित किया गया था। ‘चंद्रिका दूधघर’ में पकाए जा रहे दूध के हलवे की एक निरंतर मोहक सुगंध है जो आपको तुरंत खाने के स्वर्ग का एहसास करा देती है।
ग्राहकों की लगातार आवाजाही के कारण हलवे का गर्म पाइपिंग बॉक्स परोसना मुश्किल हो रहा है। लेकिन प्रतिष्ठान चलाने वाली तीसरी पीढ़ी के व्यवसायी भाव्या और परिमीता किसी भी ग्राहक को निराश होकर बाहर नहीं निकलने देते हैं। प्रसिद्ध हलवे के अलावा, दुकान पर दूध, दूध से बने उत्पाद और पेड़े जैसी दूध की मिठाइयाँ भी विभिन्न स्वादों में बेंची जाती हैं।
इस दुकान का इतिहास उस समय से है जब 9 वर्षीय किशनसिंह ने ब्रिटिश शासन के दौरान एक स्थानीय जमींदार को अपना कर्ज चुकाने के लिए काम खोजने का फैसला किया था। उन्हें मुंबई में एक डेयरी में नौकरी मिली, और फिर, मुंबई से पैदल अहमदाबाद की यात्रा करने के बाद, किशन ने 1962 में फिर से एक डेयरी के लिए काम किया, और उन्होंने चंद्रिका स्थापित करने का फैसला किया। उस समय 15 उधार दूध के डिब्बे से शुरू हुई डेयरी अब न केवल एक दुकान बल्कि एक फैक्ट्री में तब्दील हो गई है। यह कुछ बची हुई दुकानों में से एक है जो अभी
भी अहमदाबाद में गर्म दूध का हलवा परोसती है।
भाव्या राव कहती हैं, “सिर्फ रेसिपी ही नहीं, बल्कि उसे बनाने वाले शेफ भी नहीं बदले हैं, उन्होने भट्टजी जो भी अभी तक नही बदला है जो, 1960 के दशक की शुरुआत में तब हलवा बना रहे थे जब दुकान शुरू हुई थी।”
शहर में कई मिठाई प्रतिष्ठानें भी खुलती रहती हैं। लेकिन उन्होने अपने व्यवसाय में अभी भी कई बदलाव नहीं किए, और आज भी उनके पास एक समृद्ध निर्यात व्यवसाय भी है।