जब सुप्रीम कोर्ट बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को दी गई माफी को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, तब यह याद करना उचित होगा कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने एक दशक पहले एक विवादास्पद माफी को कैसे निपटाया था।
सड़कों पर विहिप और बजरंग दल के लगातार विरोध को देखते हुए शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के पांच कार्यकर्ताओं को फिर से गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। उन्हें 2011 में गणतंत्र दिवस पर माफी वाली नीति के तहत जेल से रिहा किया गया था।
पांच सिमी सदस्य जनवरी 2011 में राज्य भर की जेलों से रिहा हुए 600 से अधिक उन लाभार्थियों में शामिल थे, जिन्होंने जेल में रहने के दौरान आधे से अधिक सजा पूरी कर ली थी और उनका आचरण भी अच्छा पाया गया था।
11 दोषियों को फिर से गिरफ्तार करने की मांग पर गुजरात सरकार की चुप्पी के उलट मध्य प्रदेश सरकार ने दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों द्वारा तत्कालीन गृह मंत्री और जेल अधिकारियों के पुतले जलाए जाने पर सक्रिय हो गई थी। संगठनों ने ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ में शामिल तत्वों की समयपूर्व रिहाई के लिए जेल अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू करने की भी धमकी दी थी।
यहां तक कि विपक्षी कांग्रेस ने भी दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों की मांगों का समर्थन करते हुए सरकार को समय पूर्व रिहाई वाली नीति की समीक्षा करने को मजबूर कर दिया था।
दरअसल 2008 में उज्जैन जिले के उनहेल में एक प्रशिक्षण शिविर लगाने के लिए प्रतिबंधित संगठन के पांच सदस्यों को पांच साल जेल की सजा सुनाई गई थी। वे पहले ही 31 महीने से अधिक जेल में बिताने के बाद रिहाई के लायक हो गए थे।
जेल विभाग ने एक स्थायी आदेश पर सिर्फ कार्रवाई की थी, जो पहली बार एक दशक पहले जारी किया गया था। इस नीति में कानून विभाग की अनुमति से हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त के अवसर पर समय पूर्व रिहाई की बात थी।
शिवराज सिंह चौहान सरकार विरोध प्रदर्शनों से परेशान थी, जो उसके हिंदुत्व की साख पर सवाल उठाने की कोशिश कर रही थी, और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मालवा क्षेत्र में बहुसंख्यक समुदाय का विरोध नहीं सहना चाहती थी। विरोध प्रदर्शन इंदौर और उज्जैन सहित कई अन्य शहरों में फैल गया था।
चौहान सरकार ने दबाव में आकर नियमों का घोर उल्लंघन करते हुए रिहाई के नौ दिन बाद पांचों सिमी कार्यकर्ताओं को फिर से गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। इससे पहले विरोध प्रदर्शन शुरू होने के तुरंत बाद स्थानीय पुलिस को अलर्ट पर रखा गया था। साथ ही सिमी सदस्यों को बिना अनुमति के अपने घरों से बाहर नहीं निकलने के लिए कहा गया था।
अगले नौ दिनों तक उन्हें रोजाना स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना पड़ता था और कई घंटों की पूछताछ के बाद ही घर लौट पाते थे। जब विरोध कम नहीं हुआ, तो पुलिस ने पांचों को उनके घरों से उठा लिया। परिवार के सदस्यों से कहा कि “हम पर भरोसा करें, हम उन्हें जल्द ही वापस लाएंगे।” परिजनों को लगा कि वे रात तक लौट आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मध्य प्रदेश सरकार इतनी सक्रिय थी कि उसने न केवल सिमी सदस्यों को सजा की शेष अवधि को पूरा करने के लिए वापस जेल भेज दिया, बल्कि वरिष्ठ पुलिस और जेल अधिकारियों के साथ-साथ एक नौकरशाह का भी तबादला कर दिया। इतना ही नहीं, जेल के एक जूनियर अधिकारी को निलंबित तक कर दिया गया था।
इन पांचों को छोड़ माफी योजना के अन्य लाभार्थियों को अछूता छोड़ दिया गया। इससे वे सभी समय से पहले रिहा हो गए।
नियमों को पिछली तारीख से बदल दिया गया था। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए लोगों को वार्षिक माफी के लिए अयोग्य बना दिया गया था। अधिकारी इतने डरे हुए थे कि छोटे-मोटे अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए और बुढ़ापे तक पहुंचने वालों को भी विवाद के बाद लंबे समय तक माफी नहीं दी।
वैसे सरकार की शर्मिंदगी खत्म नहीं हुई थी, क्योंकि छह महीने बाद हाई कोर्ट ने सिमी सदस्यों की फिर से गिरफ्तारी को कानून का घोर उल्लंघन बताते हुए उनकी रिहाई का आदेश दे दिया।
संयोग से, गोलीबारी में पकड़ा गया एक पाकिस्तानी नागरिक भी छिंदवाड़ा जेल में बंद था। उसे उसी नीति के तहत रिहा कर दिया गया था और वह वापस पाकिस्तान भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे भी फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और 18 महीने की जेल की अवधि पूरी करने के लिए कहा गया। रिहा होने के समय उसने 16 महीने जेल में बिताए थे।
कुआलालंपुर में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिक ने दावा किया था कि वह तो प्रेम में पड़ कर भारत पहुंच गया था। कथित प्रेम कहानी तब शुरू हुई थी, जब छिंदवाड़ा की एक डांसर एक मंडली के साथ मलेशियाई राजधानी गई थी। पुलिस ने सोचा कि वह एक जासूस है, लेकिन मामले को साबित नहीं किया जा सका। ऐसे में उसे जाली पासपोर्ट रखने के लिए दोषी ठहराया गया।
इसके विपरीत, गुजरात सरकार ने दोषियों को वापस जेल में भेजने की मांग का जवाब देने के बजाय चुनावी वर्ष में विरोध की आवाजों को लगभग नजरअंदाज कर दिया है। यहां तक कि एक भाजपा नेता ने कुछ दोषियों को “सुसंस्कृत” तक कह दिया। सरकार ने तब यह कहते हुए माफी को उचित ठहराया कि यह कानून के अनुसार है। फिर यह कहते हुए कानूनी चुनौती को रोकने की कोशिश की कि याचिकाकर्ताओं को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। अब इस पर शीर्ष अदालत के फैसले का इंतजार है।
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