गुजरात में दुग्ध उत्पादन अब इस अनुपात में पहुंच गया है कि गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) इसे बेचने में असमर्थ है। इस साल अमूल ब्रांड का मालिक यानी जीसीएमएमएफ इस सरप्लस को मिल्क पाउडर में बदलने और इसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में घाटे में बेचने के लिए मजबूर था। पिछले महीने गुजरात सरकार ने इन निर्यात घाटे पर जीसीएमएमएफ को सब्सिडी के रूप में 150 करोड़ रुपये दिए।
बीएम व्यास, जिन्होंने 20 वर्षों तक जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक के रूप में नेतृत्व किया और अब सेवानिवृत्त हो गए हैं, का कहना है कि सब्सिडी तो “शर्मनाक” है। उनके मुताबिक, फेडरेशन इस दुर्दशा से बच सकता था, अगर उसने आगे की योजना बनाई होती। वाइब्स ऑफ इंडिया के साथ एक विशेष इंटरव्यू में श्री व्यास ने इसपर बात की। गुजरात के सरप्लस दूध की मार्केटिंग के लिए वैकल्पिक रणनीतियों की चर्चा की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
वीओआइ: क्या अब से जीसीएमएमएफ को सरकार से नियमित रूप से सब्सिडी की जरूरत पड़ेगी?
व्यास: जीसीएमएमएफ गुजरात सरकार से सब्सिडी मांगे बिना इस नुकसान को समायोजित कर सकता था। वास्तव में मुझे तो यह शर्म की बात लगती है कि अमूल जैसे प्रतिष्ठत संगठन को सब्सिडी मांगनी पड़ी। 50,000 करोड़ रुपये के कारोबार वाले संगठन के लिए 150 करोड़ रुपये क्या हैं? सब्सिडी के साथ और भी कुछ आएगा। अमूल अब सरकार से अधिक से अधिक राजनीतिक हस्तक्षेप की उम्मीद कर सकता है। वे दरअसल अधिक नियंत्रण और बोर्ड में अधिक सीटें चाहते हैं।
वीओआइ: क्या अतिरिक्त दूध की आपूर्ति अमूल के लिए समस्या बनी रहेगी?
व्यास: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि लगभग 8% वार्षिक है। यह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ा है। आपको इस वृद्धि का अनुमान लगाना होगा और लंबे समय के लिए एक योजना बनानी होगी। अमूल एक दिन में लगभग 260 लाख लीटर दूध प्राप्त करता है और उसमें से अधिकांश तरल दूध के रूप में बेचा जाता है। मूल्य वर्धित उत्पाद जैसे दही, घी, पनीर, मक्खन और छाछ का कारोबार का अपेक्षाकृत छोटा है। करीब 100 लाख लीटर तरल दूध सरप्लस होने वाला है और आपको इसके लिए नए बाजार तलाशने होंगे।
वीओआइ: नए बाजार कहां से आएंगे?
व्यास: आपको निडर होकर सोचना होगा। स्वर्गीय डॉ वर्गीज कुरियन और मैंने कच्छ के तट से मध्य पूर्व तक तरल दूध भेजने की योजना पर चर्चा की थी। हम आणंद से दिल्ली और कोलकाता तक रेल टैंकर से 50,000 लीटर तरल दूध भेजते हैं। इसलिए दूध को गुजरात से संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई तक समुद्री कंटेनरों से ले जाना भी संभव है। तरल दूध की शिपिंग के लिए परिवहन लागत दूध पाउडर में परिवर्तित करने की लागत से कम है। पहले कदम के तौर पर मैंने दुबई में जीसीएमएमएफ उत्पादों की मार्केटिंग शुरू की। हमने 20 वितरक नियुक्त किए, जिनमें प्रसिद्ध लुलु समूह शामिल है। दरअसल यूएई के मुक्त व्यापार क्षेत्र में एक डेयरी स्थापित करने की योजना थी, जो बाकी क्षेत्र को आपूर्ति करता। पूरे मध्य पूर्व में दूध की कमी है। उनके यहां उत्पादन की लागत अधिक है। इसलिए वे कभी भी भारत से मुकाबला नहीं कर सकते।
वीओआइ: आइसक्रीम के बाद अमूल ने अपने पोर्टफोलियो में कई नए उत्पाद जैसे मिठाई, ब्रेड, फ्रेंच फ्राइज शामिल किए हैं। क्या ये मूल्यवर्धित उत्पाद लंबे समय में अतिरिक्त दूध को खपा सकते हैं?
व्यास: हमने अपने समय में टीसीएस को सलाहकार के रूप में काम पर रखा था। उन्होंने कहा कि अमूल को यदि 2025 तक एक लाख करोड़ रुपये के कारोबार के लक्ष्य तक पहुंचना है तो उसे डेयरी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। आलू में हैश ब्राउन, आलू टिक्की और फ्रेंच फ्राइज जैसे जो बहुरूपता हैं, वे ध्यान भंग करते हैं। ये अधिकतर बनास डेयरी के चेयरमैन शंकर चौधरी के दबाव के परिणाम हैं, क्योंकि उस इलाके में आलू बड़ी फसल है। यहां तक कि ऊंटनी के दूध में बहुरूपता खोजना कम मात्रा को देखते हुए समय की बर्बादी ही है। जीसीएमएमएफ दरअसल कम कर्मचारियों वाला मार्केटिंग संगठन है, जो इस तरह के प्रयोगों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसके बजाय उसे अपनी ऊर्जा अपने मुख्य उत्पाद में लगानी चाहिए। अमूल 50 लाख से अधिक आबादी वाले उन 80 और शहरों में दूध वितरण नेटवर्क स्थापित कर सकता है,
जहां यह मौजूद नहीं है। उदाहरण के लिए, अमूल का दूध ओडिशा के कटक और राउरकेला में जा सकता है, जहां दूध की कमी है और अगले कुछ दशकों तक ऐसा ही रहेगा।
वीओआइ: वर्तमान सरप्लस को देखते हुए क्या यह डेयरी फार्मिंग में और वृद्धि को हतोत्साहित करने का मामला है? या कि आपूर्ति और मांग के अनुसार कम से कम कीमतें तय करना?
व्यास: यह डेयरी सहकारी समितियों के मूल उद्देश्यों के खिलाफ होगा। उत्तर प्रदेश को देखें तो वह गुजरात से तीन गुना ज्यादा दूध का उत्पादन करता है। लेकिन वहां के किसान निजी डेयरियों के रहमोकरम पर हैं, जहां कीमतों को लेकर स्थिरता नहीं है। जीसीएमएमएफ का काम किसानों को शोषण से बचाना है। हम दिल्ली में केंद्र स्थापित करते हैं, ताकि यूपी के किसानों को शोषण से बचा सकें। दरअसल, अमूल सिर्फ गुजरात का ब्रांड नाम नहीं है। यह भारत के सभी किसानों के लिए ब्रांड नाम है।