नए भारत की तरह ही गुजरात में भी बिना राजनीतिक कारणों के कुछ नहीं होता। गुजरात के लिए राजनीति वही है, जो मुंबई के लिए बॉलीवुड है। इसलिए, जो लोग बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई को “स्थानीय निर्णय” के रूप में खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं, उनमें पाखंड और आला दर्जे की धूर्तता नजर आती है, जो गुजरात और इसकी सांप्रदायिक राजनीति का समर्थन करने वालों के लिए उल्लेखनीय है।
बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई यकीनन एक राजनीतिक कदम है। अगर सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के इस द्वेषपूर्ण आदेश को उलट देता है, तो यह जहां एक मानवीय कदम होगा, वहीं शायद भारतीय न्यायपालिका और इसकी विश्वसनीयता पर भरोसा बढ़ाने वाला साबित होगा।
गुजरात में बीजेपी बहुत मजबूत है। 2002 के बाद से हिंदुत्व ने गुजरात की 89% से अधिक बहुसंख्यक आबादी को गिरफ्त में लिया है। कहना ही होगा कि पहले गुजरात मॉडल, फिर विकास मॉडल जैसे अन्य मुखौटे सामने आते गए। उन्होंने राष्ट्रीय फलक पर गुजरात की छवि को बढ़ाने का काम किया है, लेकिन गुजरात के भीतर केवल हिंदुत्व मायने रखता है। चाहे वह घटिया नोटबंदी हो, जल्दबाजी में लागू जीएसटी, विकास मॉडल या गुजरात मॉडल; गुजरात में तो सिर चढ़कर सिर्फ हिंदुत्व मॉडल ही बोलता है।
अगर गुजरात में बीजेपी इतनी सहज है तो फिर बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा क्यों गया और विवादों का पिटारा क्यों खोला गया? दरअसल जोरदार राजनीतिक अभियानों के बीच, सरल राजनीतिक संदेशों को लगभग गुप्त तरीके से शानदार ढंग से व्यक्त किया जाता है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। आरएसएस दशकों से एक अनोखे ढंग से ऐसा करता चला आ रहा है।
गुजरात में अब भी सबसे बड़े समाचार की शुरुआत कानाफूसी से होती है। गुजरात नब्बे के दशक के मध्य से बीजेपी और आरएसएस की विभिन्न कल्पनाओं को परखने की प्रयोगशाला रहा है। उनमें से ज्यादातर, दुर्भाग्य से, अल्पसंख्यकों के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं।
गुजरात में न्याय का मजाक बनाना कोई नई बात नहीं है। धर्मनिरपेक्ष लोगों में सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष होने के बावजूद बिलकिस बानो न्याय पाने के अपने संकल्प पर डटी थीं। उन्होंने भारतीय संविधान और भारतीय न्यायपालिका में विश्वास व्यक्त करने के लिए लगातार संघर्ष किया, कभी कोई मौका नहीं गंवाया।
बिलकिस बानो गुजरात में हुए दंगों के कई चेहरों में से एक हैं। उनका मामला क्रूरता और “बदले की भावना” का चरम था, जिसने साबरमती एक्सप्रेस की एक भीषण घटना में 59 कारसेवकों की मौत के बाद राज्य में उन्मादी रूप ले लिया था। जैसा कि भारत में अक्सर होता है, साबरमती एक्सप्रेस त्रासदी पर विरोधाभासी राय हैं। वामपंथी झुकाव वाले मध्यमार्गियों के मुताबिक, साबरमती ट्रेन की घटना महज एक दुर्घटना थी। दूसरी ओर दक्षिणपंथी हैं। उनके मुताबिक, मुसलमानों को अयोध्या से लौटने वाले कारसेवकों के बारे में पता था और एक पूर्व नियोजित साजिश के तहत उन्हें जिंदा जला दिया गया। हो सकता है कि सच्चाई इन दोनों चरम सीमाओं के बीच हो, लेकिन बिलकिस बानो के साथ जो हुआ वह किसी भी सच्चाई या कल्पना से भी ज्यादा वीभत्स है।
लगभग 21 वर्षीय बिलकिस बानो ने 3 मार्च 2002 को तब अपने गांव छोड़ दिया, जब सशस्त्र भीड़ के हमले की खबर फैली। बिलकिस और उनका पूरा परिवार, जिनमें 17 सदस्य थे, उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन दाहोद के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव से निकल गए थे। पास के छपरवाड़ गांव के पास हमलावरों ने घेर लिया। उस समय अपने दूसरे बच्चे के साथ पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ उसकी तीन साल की बेटी और परिवार के अन्य सदस्यों के सामने सामूहिक बलात्कार किया गया। हमलावरों ने उनकी मां और कुछ अन्य महिलाओं के साथ भी बलात्कार किया, जिनकी हत्या भी कर दी गई। दरअसल, बिलकिस के साथ यात्रा कर रहे 17 लोगों में से आठ शव मौके पर मिले और छह लापता बताए गए। बिलकिस समेत तीन को जिंदा छोड़ दिया गया था।
बिलकिस को जिंदा क्यों छोड़ दिया गया? बिलकिस ने पहले मुझे बताया था कि उनके हमलावरों को लगा कि वह मर गई हैं, क्योंकि सामूहिक बलात्कार के दौरान वह बेहोश हो गई थीं। यकीनन, चूंकि मैं एक टेलीविजन चैनल के लिए काम नहीं करने के लिए भाग्यशाली थी, इसलिए मैंने बिलकिस से समय को लेकर यह नहीं पूछा कि “बलात्कार के दौरान वह कब मर गई थीं।”
लेकिन बिलकिस ने मुझे स्पष्ट रूप से बताया कि लगभग साढ़े तीन घंटे के बाद जब उन्होंने हमलावरों के समूह को घेरते देखा था, तो उन्हें होश आ गया था। बिलकिस की छोटी बेटी बलात्कार की गवाह थी। उसे बालों से खींचकर जमीन पर पटक दिया गया था। इस घटना के बाद अपने जीवन को संवारने के लिए बिलकिस को बहुत साहस की आवश्यकता थी। वह 2002 से अब तक 18 घर बदल चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को उन्हें घर और नौकरी देने का आदेश दिया था। लेकिन जैसा कि सभी जानते हैं, गुजरात एक ऐसा मॉडल है जो खुद को सभी मौजूदा नियमों और विनियमों से परे मानता है। तो जाहिर है, उन्होंने उस दिशा में कुछ नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, बिलकिस बानो को 50 लाख जरूर रुपये मिल गए।
यहां तक कि बिलकिस बानो जब अपने जीवन को पटरी पर वापस लाने की कोशिश कर रही थीं, अपने दागों को भूलने की कोशिश कर रही थीं; तभी गुजरात सरकार ने 2002 के जख्म को सेप्टिक की आशंका के साथ कुरेद दिया।
उनके एक बलात्कारी राधेश्याम शाह ने क्षमा दान की मांग करते हुए बाद में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। गुजरात सरकार ने तब एक कामचलाऊ समिति की सिफारिश पर उनके 11 बलात्कारियों को एक विशेष छूट योजना के तहत रिहा करके आश्चर्यचकित कर दिया। जहां भाजपा का दावा है कि बलात्कारियों को गुजरात में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा 1992 में बनाई गई एक योजना के तहत छूट दी गई है, वहीं कांग्रेस के पवन खेड़ा ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि यह 2013 की तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में बनाई गई नीति के तहत बलात्कारियों को कैसे रिहा कर दिया गया। गुजरात सरकार ने इसका ब्योरा देने से इनकार कर दिया है। फिर भी इसकी पुष्टि की है कि 1992 की क्षमा दान नीति निरस्त कर दी गई धी।
जिस कामचलाऊ समिति की सिफारिश पर रिहाई का फैसला हुआ, उसके अधिकांश सदस्य भाजपा से जुड़े रहे हैं। समिति में कुछ सरकारी अधिकारी भी थे। लेकिन जैसा कि ज्ञात है कि गुजरात में स्वाभिमान वाले बहुत से लोग नहीं बचे हैं। समिति के सदस्यों में से एक, पूर्व मंत्री और वर्तमान में भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों का यह कहकर बचाव किया है कि उन्हें फंसाया गया था और वे निर्दोष थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी धारणा इस तथ्य पर आधारित है कि कुछ बलात्कारी ब्राह्मण थे, इसलिए संस्कारी थे। ऐसे में वे बलात्कार कर ही नहीं सकते। वैसे रिहा होने वालों में कुछ गुजराती बनिया भी हैं और गुजरात वास्तव में अपने वैश्य समुदाय से प्यार करता है, जो उन्हें जन्म से बहुत संस्कारी बनाता है।
बलात्कारियों को रिहा करने से जो महीन राजनीतिक संदेश दिया गया है, वह अंत में हिंदुओं की जीत है। क्योंकि हिंदू निर्दोष हैं। क्योंकि हिंदू संस्कारी हैं और गैर-हिंदू पारंपरिक उत्पीड़क हैं, जो भोले-भाले हिंदुओं को फंसाते हैं। लेकिन गुजरात वह सब ठीक कर देगा। यही संदेश है। क्योंकि अंत में गुजरात में जो मायने रखता है, वह ओवरब्रिज या एसईजेड की संख्या या रोजगार से जुड़ा नहीं है। राज्य में सिर्फ हिंदुत्व मायने रखता है। जब गुजराती मतदान करने जाते हैं, तो उनमें से अधिकांश अचानक निश्चित वेतन, बेघर और बेरोजगारी को लेकर संतुष्ट हो जाते हैं। मोदी है तो मुमकिन है, एक ऐसा नारा है जो आज भी गुजरात में करिश्मा करता है।
पीएम नरेंद्र मोदी इस पैमाने की शर्मिंदगी क्यों चाहेंगे, जबकि गुजरात बीजेपी 1998 के बाद से लगातार छठी बार जीतने के लिए सहजता से तैयार है? याद कीजिए जब निर्भया कांड हुआ था, तब तत्कालीन सीएम मोदी समेत हर कोई भारत की बेटी को बचाना चाहता था। शुक्र है कि निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया। न्याय दिया गया।
लेकिन फिर, बिलकिस बानो के मामले में यह दोहरा मापदंड क्यों? जी हां, बिलकिस बानो का रेप इसलिए हुआ, क्योंकि वह महिला थीं। लेकिन 2002 में सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से उसके साथ गैंगरेप भी किया गया था। 11 बलात्कारियों की इस रिहाई के साथ जो बात दांव पर लगी है, वह यह कि हम मुसलमानों के खिलाफ सभी यौन और राजनीतिक हिंसा को सामान्य कर दे रहे हैं। यह जहरीली राजनीति है, जिसे गुजरात पसंद करता है। यह वह मोड़ है, जिस पर गुजरात ऊंची उड़ान भरता है। नैतिकता के पैमाने पर बात शुरू करें, तो गुजराती आपको उलटे उस दौर में ले जाएंगे जब महमूद गजनी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया और गुजरात के साथ अन्याय किया था। वे आपको उन कहानियों से रूबरू कराएंगे कि कैसे कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश किया, जिन्होंने हर बार पाकिस्तान के क्रिकेट मैच जीतने पर बेशर्मी से जश्न मनाया। संक्षेप में, हर लिहाज से हिंदू पीड़ित हैं।
आइए हम गुजरात विधान सभा के राजनीतिक संविधान का अध्ययन करें। बीजेपी 1995 से लगातार राज्य में शासन कर रही है, 1997 में एक संक्षिप्त अपवाद को छोड़कर जब शंकरसिंह वाघेला के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) ने कांग्रेस की बाहरी मदद से सत्ता हासिल की थी। गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं। भाजपा के 111 सदस्य हैं, तो कांग्रेस के 63 सदस्य। एक-एक सदस्य भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी), राकांपा और निर्दलीय हैं। निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस के साथ अपना प्रभाव बढ़ाया है। बीटीपी आम आदमी पार्टी का समर्थन कर रही है। राकांपा के एकमात्र विधायक भाजपा का समर्थन करते हैं। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट भी दिया। 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं, लेकिन समय के साथ उसके सदस्य भाजपा में शामिल होते चले गए। इस समय कांग्रेस के केवल 63 विधायक हैं। जाहिर है, कांग्रेस ने कुछ ठोस नहीं किया है। हालांकि यह पूरी तरह से एक अलग कहानी है।
दिसंबर 2022 के चुनावों को और अधिक दिलचस्प बनाने वाला एक महत्वपूर्ण तथ्य है। वह यह कि एआईएमआईएम के साथ पहली बार आप मैदान में है। हालांकि बीजेपी आराम से फिर सरकार बनाने के लिए तैयार है; फिर भी इस बात से सावधान है कि आप गुजरात में पहली बार चुनावी खाता खोल सकती है। आम आदमी पार्टी रिकॉर्ड जीत हासिल नहीं कर सकती। यह बात उसके नेता भी मानते हैं। वे स्वीकार करते हैं कि उन्हें इन चुनावों में सत्ता में आने की उम्मीद नहीं है, लेकिन यह पूरा भरोसा है कि वे मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले सकते हैं।
जाहिर है, बीजेपी ने बिलकिस बानो मुद्दे पर चुप रहने का फैसला किया है। अतीत के विपरीत, जब भगवा पार्टी ने हिंदुत्व की प्रशंसा करके सांप्रदायिक फैसलों का “स्वागत” किया था। पर इस बार भाजपा ने एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार पर चुप रहने का विकल्प चुना है। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के इस रुख का अनुकरण करने वाली एकमात्र पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) है। यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अगस्त में अब तक चार बार गुजरात का दौरा किया है। अगर गिरफ्तार नहीं हुए तो अपने डिप्टी मनीष सिसोदिया के साथ आज से फिर दो दिनों के दौरे पर होंगे। उन्होंने और बहुत सारी चीजें मुफ्त में देने और सत्ता में आने पर सुशासन का आश्वासन दिया है। इन सबके बावजूद, बिलकिस बानो मुद्दे पर उनकी पार्टी ने चुप्पी साध रखी है। लेकिन आप के भीतर के लोगों का कहना है कि चुप्पी की इस रणनीति से वास्तव में दिसंबर के होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को फायदा हो सकता है। अफसोस की बात है कि हिन्दुओं के वोट पाने के लिए आप वही राजनीति कर रही है, जो बीजेपी कर रही है।
गुजरात एक अत्यधिक ध्रुवीकृत राज्य है। यदि आम आदमी पार्टी बिलकिस बानो की जल्द रिहाई की आलोचना करती है, तो आप को एक नव-उदारवादी पार्टी के रूप में ठप्पा लग जाने का खतरा है, जो वह नहीं चाहती है। जब गुजरात की बात आती है, तो अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि हनुमान चालीसा बिलकिस बानो के लिए न्याय मांगने से बेहतर काम कर सकती है। हालांकि कोई भी नेता खुलकर कहना नहीं चाहता, पर आप के कम से कम तीन नेताओं ने दावा किया कि “गुजरात में बिलकिस बानो का मुद्दा उठाना वोट खोने की गारंटी है। यह याद किया जाना चाहिए कि दो साल पहले दिल्ली में आप ने नागरिकता विरोधी संशोधन अधिनियम के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली में ऐसी ही रणनीति बनाई थी। एक आप नेता ने कहा, “हम धर्मनिरपेक्ष हैं। हम नहीं चाहते कि हमें मुस्लिम हमदर्द के रूप में ब्रांडेड किया जाए। अगर हम गुजरात में बिलकिस बानो का मामला उठाते हैं, तो कोई भी हिंदू हमें वोट नहीं देगा।”
कांग्रेस के पवन खेड़ा ने बिना नाम लिए आप पर तंज कसा। उन्होंने स्पष्ट रूप से पूछा, “बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई पर विपक्ष के कुछ लोग चुप क्यों हैं? एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “राजनीति में ‘निर्भया’ कांड को आधार बनाकर प्रवेश करने वाली पार्टियां आज चुप क्यों हैं? क्या वे केवल वोट हासिल करने के लिए चुप हैं?”
उधर, आप नेताओं का कहना है कि “हम बिलकिस बानो मामले को नहीं उठाएंगे। कई वोट खोने की तुलना में कुछ आलोचनाओं का सामना करना बेहतर है। हमें विश्वास है कि बीजेपी गुजरात जीतने जा रही है, लेकिन हम कांग्रेस से विपक्ष की जगह छीनने की उम्मीद करते हैं। गुजरात में गहरा ध्रुवीकरण है। हम जानते हैं कि यह गलत है। बिलकिस बानो के बलात्कारी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन खुले तौर पर उनका पक्ष लेने से हमें बहुत नुकसान होगा।” गुजरात में आप बीजेपी के कुशासन, भ्रष्टाचार और नकली गुजरात मॉडल पर ध्यान केंद्रित कर रही है। यह बताने की कोशिश कर रही है कि कैसे गुजरात में विकास कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों तक ही सीमित है।
वैसे शुरुआती अनिच्छा के बाद, कांग्रेस ने आगे बढ़कर बिलकिस के पक्ष में बोलने का फैसला किया है। गुजरात में कांग्रेस के चुनाव पर्यवेक्षक अशोक गहलोत से लेकर राज्यसभा सांसद अमी याग्निक तक हर किसी ने गुजरात सरकार की ओर से जवाबदेही की मांग की है। विशेष छूट योजना के तहत 11 बलात्कारियों को रिहा करने की आलोचना करते हुए इस मुद्दे को मुखरता से उठाया है।
क्या इससे गुजरात में कांग्रेस की जो भी थोड़ी संभावनाएं हैं, वे और कम नहीं होंगी? अमी याग्निक ने हाल ही में पत्रकारों से कहा था, “हमारे लिए यह राजनीति नहीं है। बिलकिस बानो वोट के लिए नहीं हैं। यह हर महिला के मानवाधिकारों का मसला है। हर महिला के अधिकार की बात है।”
बहरहाल, यह देखा जाना बाकी है कि कांग्रेस अपने मुस्लिम मतदाताओं को एआईएमआईएम से वापस खींच पाती है या नहीं। वैसे एआईएमआईएम निश्चित रूप से बिलकिस बानो के समर्थन में मजबूती से रैली करके गुजरात में अपने मुस्लिम मतदाता आधार को मजबूत कर रही है। असदुद्दीन ओवैसी ने 11 बलात्कारियों को जेल की अवधि पूरी करने से पहले रिहा करने के फैसले के लिए गुजरात में बीजेपी सरकार की आलोचना की है।
इस राजनीति के बीच निराशा की प्रतिमूर्ती बनी हुई हैं बिलकिस बानो। गुजरात के दुर्लभ धर्मनिरपेक्ष लोगों को एक ही उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट उस आदेश को पलट सकता है। तब बिलकिस बानो फिर से कानूनी लड़ाई के लिए खुद को खड़ी कर सकती हैं। बेचारी औरत। और हां, गुजरात में मुसलमान होना दुर्भाग्य और नियति के अलावा और कुछ नहीं है।
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