यह हॉलीवुड फिल्म के हैरी पॉटर जैसा नही है! कि उसे बाद में पता चले कि वह एक जादूगर है, लेकिन जानवी जानती है कि कोई जादू उसके जीवन को बदल नहीं सकता।
उससे पूछा गया कि वह पिछले साल मार्च से स्कूल क्यों नहीं जा रही है? और 11 साल की बच्ची अहमदाबाद में अपने माता-पिता की इस्त्री की दुकान पर उनके कामों में हाथ बटाती है। “मेरी शिक्षा महत्वपूर्ण नहीं है, मैं अपने माता-पिता को पैसे बचाने में मदद करना चाहती हूं ताकि मेरा छोटा भाई पढ़ सके,” -वह जवाब देती है।
मार्च 2020 में पहली बार लॉकडाउन की घोषणा के बाद से जानवी अपने माता-पिता की दुकान में काम कर रही है। जैसे ही स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं के साथ नए योजना को अपनाया, जानवी पीछे रह गई।
पूरे भारत में लाखों गरीब लोगों की तरह जानवी के माता-पिता उसे एक स्मार्ट फोन खरीद कर नहीं दिला सकते, जिससे वह घर से ही अपनी पढ़ाई जारी रख सके। उसके पिता वसंतभाई कहते हैं, “महामारी और भयानक वित्तीय स्थिति के कारण मेरे पास परिवार के लिए ‘खाने का मेज’ रखने तक के लिए पर्याप्त पैसे नही हैं।”
जानवी को स्कूल में अपने दोस्तों की याद आती है, लेकिन वह बहुत खुश भी है कि उसे अपने छोटे भाई के साथ बहुत अधिक समय बिताने को मिलता है।
वसंतभाई कहते हैं, “मेरा बेटा अभी भी स्कूल जाने के लिए बहुत छोटा है, लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं उन दोनों को कैसे पढ़ाऊंगा।”
अनुमानित रूप से पूरे भारत में जानवी जैसे करोड़ों बच्चे हैं।
भारत के 23 राज्यों में 2.9 करोड़ से अधिक स्कूली छात्र स्मार्ट फोन के बिना हैं। 5,91,590 बच्चों के साथ गुजरात छठा राज्य है जहां के बच्चे बिना डिजिटल उपकरणों (स्मार्ट फोन) के हैं। यह गुजरात में शिक्षा के क्षेत्र में करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद है।
सपने धूल में बदल जाते हैं
7 वर्षीय देवकी जैसे छोटे बच्चों के सपने, जो एक पुलिस अधिकारी बनना चाहते हैं, कोविड -19 महामारी से उपजी आर्थिक समस्याओं के कारण डिजिटल डिवाइड न ले पाने की समस्या से जूझ रहे हैं।
देवकी के पिता शराबी हैं जो दूर रहते हैं। वह अपनी मां शीलाबेन, छोटे भाई विनोद और दादी जमनाबेन के साथ रहती हैं।
पूरी झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, क्योंकि एक भी परिवार के पास मोबाइल फोन नहीं है।
शीलाबेन ने कहा, “हम जैसे लोग अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई कराने का खर्च नहीं उठा सकते हैं। तो हम स्मार्टफोन कैसे खरीद सकते हैं?” जिस नगरपालिका स्कूल में वह पढ़ रही थी, उसके बारे में बात करते हुए जमनाबेन कहती हैं कि, वहां वैसे भी शिक्षकों को शायद ही छात्रों की परवाह रहती थी।
“काश मैं एक स्मार्टफोन खरीद पाती और ऑनलाइन पढ़ाई कर सकती। महामारी ने हमारे जीवन को लगभग रोक दिया है,” -12 वर्षीय सानियाबानू ने कहा, जिसका परिवार जुहापुर में फतेहवाड़ी टॉवर के पास संकरी और भीड़-भाड़ वाली गलियों में स्थित एक रिश्तेदार के घर में शिफ्ट हो गया है।
सानियाबानू के पिता लयकाली शेख एक ऑटो चालक हैं और महामारी ने उन्हें स्कूल की फीस की देने व घर के किराए का भुगतान करने में असमर्थ बना दिया है।
“मेरे पिता ने अप्रैल 2020 तक फीस का भुगतान किया था और उसके बाद वह लॉकडाउन के कारण भुगतान नहीं कर सके,” – सानियाबानू ने गंभीरता से बताया।
“हालांकि स्कूल ने हमारे जैसे गरीब छात्रों के लिए आधी फीस में कटौती की है, मेरे पिता जो अधिक से अधिक 10,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं, वे ऑनलाइन पढ़ने के लिए फीस और स्मार्टफोन के खर्च का निर्वहन नहीं कर सकते। मेरे पास अपनी पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था,” -वह कहती हैं।
उसके बड़े भाई को मिर्गी है। परिवार निजी संगठनों द्वारा उपलब्ध कराए गए राशन किट पर निर्भर है। “लेकिन भोजन सिर्फ गेहूं और चीनी नहीं है। हमें अन्य किराने का सामान भी लाना है,” -लयकाली ने कहा।
आरव पढ़ना-लिखना भूल गया है। और वह 20 से आगे की गिनती भी नहीं गिन सकता है।
आरव को स्कूल जाना और कविताएँ पढ़ना बहुत पसंद था, लेकिन महामारी के दौरान यह सब खत्म हो गया। न तो उनके पिता और न ही दादी पढ़ना-लिखना जानते हैं और न ही उनके पास स्मार्टफोन है। इसलिए, भले ही आरव के स्कूल ने कुछ ही महीनों में ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की थीं, फिर भी उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
आरव कहते हैं, “मुझे स्कूल जाने की याद आती है, लेकिन मुझे अब होमवर्क नहीं मिलता है, इसलिए मैं खुश हूं।”
“हम उसे शिक्षित करना चाहते थे, वह परिवार में एकमात्र बच्चा है, लेकिन हमारे पास स्मार्टफोन या स्मार्टफोन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि कक्षाएं ऑनलाइन हो गई हैं, हम उसे फिर से स्कूल भेजने की उम्मीद करते हैं, लेकिन मुझे डर है कि उतना करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ सकता है।” – आरव की दादी कहती हैं।
(अश्विता सिंह, परिता पांड्या, यजुर्देवसिंह गोहिल के इनपुट्स के साथ)