दिब्येंदु गांगुली
अहमदाबाद में वाघबकरी मुख्यालय के सम्मेलन कक्ष की एक दीवार पर महात्मा गांधी द्वारा समूह के संस्थापक को दिए गए “प्रमाणपत्र” की प्रतिकृति है। लिखावट और अचूक हस्ताक्षर इसकी पुष्टि करते हैं कि गांधी जी “नरानंद देसाई को दक्षिण अफ्रीका में एक ईमानदार और अनुभवी चाय बागान के मालिक के रूप में जानते हैं।”
यह पता नहीं है कि इस सिफारिशी पत्र ने वास्तव में देसाई की तब मदद की थी, जब वह चाय का व्यवसाय शुरू करने के लिए गुजरात लौटे थे। लेकिन, यह गांधीवादी के ब्रांड नाम की पसंद का संकेत जरूर देता है। वाघबकरी का प्रतीक 121 साल पुराना है। इसमें एक बाघ (वाघ) और एक बकरी (बकरी) को एक साथ कटोरे से पीते हुए दर्शाया गया है। यह कमजोर और मजबूत, अमीर और गरीब, साहसी और डरपोक के एक साथ चाय पीने का प्रतीक है।
1915 में भारत के चाय उद्योग का अत्यधिक अंग्रेजीकरण हो गया था। वैसे टाटा के टेटली, यूनिलीवर के लिपॉन और ब्रुक बॉन्ड जैसे ब्रांड नामों के साथ आज भी ऐसा ही है। लेकिन वाघबकरी इन ब्रांडों के मुकाबले अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रही और आज देश की तीसरी सबसे बड़ी पैकेज्ड चाय कंपनी है। यह यकीनन उस गुजरात में नंबर वन चाय ब्रांड है, जो देश में सबसे ज्यादा चाय की खपत करने वाला राज्य है। जहां तक नाम की बात है, तो एक समय था जब इसे प्रांत विशेष से जोड़कर ही देखा जाता था। लेकिन अब हर दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनी हिंग्लिश मुहावरे को अपना रही है। ऐसे में वाघबकरी तो वाकई कूल है।
वाघबकरी का जन्म ऐसे युग में हुआ था, जब उद्यमियों ने अपनी प्रवृत्ति और अपने मूल्य प्रणालियों के आधार पर ब्रांड नामों का चयन किया था। अहमदाबाद के प्रसिद्ध हैवमोर ब्रांड की आइसक्रीम वास्तव में कराची में पैदा हुई थी। नाम “हैव मोर” में भी पंजाबी तड़का है। इसके पूर्व सीईओ प्रदीप चोना कहते हैं, “मेरे पिताजी ने 1944 में इस व्यवसाय को हाथ की गाड़ी पर चलाना शुरू किया था। उन्हें लगा था कि यह खाद्य उत्पाद के लिए सबसे अच्छा संभव नाम है। यह चश्मे के लिए रेबन की तरह है। ”
जब 2017 में चोना ने दक्षिण कोरिया की लोटे कन्फेक्शनरी को ब्रांड बेचा, तब हैवमोर ने आइसक्रीम से आगे बढ़कर रेस्तरां तक का विस्तार किया। उन्होंने कहा, “यह मेरे लिए एक कठिन निर्णय था, क्योंकि मुझे ब्रांड से लगाव था। लेकिन कोरियाई लोगों ने मुझे एक ऐसा प्रस्ताव दिया, जिसे मैं मना नहीं कर सकता था।” चोना ने 1944, HOCCO और ह्यूबर एंड होली जैसे स्टाइलिश ब्रांड नामों के साथ कई नए रेस्तरां लॉन्च किए हैं। इस बीच लोटे ने हैवमोर नाम को बरकरार रखा है, जो ब्रांड की शक्ति के प्रति सम्मान है। वाडीलाल एक और अहमदाबादी आइसक्रीम ब्रांड है, जिसने अहमदाबाद में एक एकल आउटलेट के रूप में छोटे स्तर से शुरुआत की। इसका नाम संस्थापक रणछोड़लाल वाडीलाल गांधी के नाम पर रखा गया।
जब वाघबकरी, हैवमोर और वाडीलाल को लॉन्च किया गया था तब ब्रांडिंग अपने आप में एक नई सोच थी। आज यह एक परिपक्व क्षेत्र है और ब्रांड नाम चुनने में काफी शोध किया जाता है। रसना का ही उदाहरण लें। संस्थापक अरीज खंबाटा ने अपनी विज्ञापन एजेंसी ओ एंड एम के साथ व्यापक परामर्श के बाद 1978 में अपना सबसे अधिक बिकने वाला सॉफ्ट-ड्रिंक कॉन्संट्रेट लॉन्च किया। रसना के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पिरुज खंबाटा कहते हैं, “मेरे पिता एक ऐसा भारतीय नाम चाहते थे जो सरल हो। रसना के साथ ओ एंड एम आया, जो इसमें फिट बैठता है। ”
अमूल ब्रांड नाम भी वर्गीज कुरियन और त्रिभुवनदास पटेल द्वारा कई विज्ञापन एजेंसियों से परामर्श के बाद तय किया गया था। ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड का संक्षिप्त रूप है, लेकिन गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) के पूर्व प्रबंध निदेशक बीएम व्यास का कहना है कि यह प्रक्रिया उससे कहीं अधिक जटिल थी। उन्होंने कहा, “विज्ञापन एजेंसियों ने शुरू में अंग्रेजी ब्रांड नामों की सीरीज दी थी। डॉ कुरियन को उनमें से कुछ नाम पसंद भी आए। लेकिन त्रिभुवनदास पटेल ने भारतीय नाम पर जोर दिया। अमूल अमूल्य शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अनमोल। यह अमूल मिल्क यूनियन से भी जुड़ा था, जो कि प्रमुख कारण बना।
GCMMF मूल रूप से अमूल ब्रांड नाम के तहत दूध, मक्खन और घी का कारोबार करता है। बाद में जब उसने दही लॉन्च किया, तो जीसीएमएमएफ ने मस्ती दही नामक एक उप-ब्रांड बनाया। व्यास कहते हैं, “हम उत्पाद की सफलता के बारे में सुनिश्चित नहीं थे, क्योंकि तब दही बड़े पैमाने पर घर में बनाया जाता था। हमने इसे अमूल दही के बजाय मस्ती दही नाम दिया। यह सोचकर कि कहीं यह यह फ्लॉप न हो जाए।” अमूल ने इस सब-ब्रांडिंग रणनीति को नए उत्पादों जैसे फ्लेवर्ड मिल्क (कूल) और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स (ट्रू) के साथ लागू करना जारी रखा है।
अहमदाबाद के कई सबसे पुराने और सबसे स्थापित ब्रांड नामों के निर्माण में शामिल यह विचार प्रक्रिया अब लुप्त हो गई है। उदाहरण के लिए, ज्यादातर लोग सोच सकते हैं कि अरविंद मिल्स का नाम अरविंद लालभाई के नाम पर रखा गया था। लेकिन निर्देशक कुलिन लालभाई इससे सहमत नहीं हैं। वह कहते हैं, “हम जानते हैं कि हमारे परदादा कस्तूरभाई लालभाई एक ऐसा नाम चाहते थे जो ए से शुरू हो। इसलिए नाम अरविंद पड़ा।”
सिम्फनी ब्रांड भी एक भाग्यशाली वर्णमाला से शुरू होने वाले नाम की खोज से पैदा हुआ था। चाहे वह साकार हो, सुरेल हो या श्रीनंद नगर, बेकरी कंस्ट्रक्शन ने अपने भवनों के नाम हमेशा एस से शुरू होने वाले दिए हैं। जब अचल बेकरी ने 1988 में अपना एयर कूलर ब्रांड लॉन्च किया, तो उन्होंने पारिवारिक परंपरा का पालन करने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “हम एक ऐसा ब्रांड नाम चाहते थे जो एक निश्चित जीवन शैली को दर्शाता हो। हम एक कार्यात्मक नाम नहीं चाहते थे, जो कूलर से जुड़ा हो। और हम एस (S) से शुरू होने वाला एक ब्रांड नाम चाहते थे। हमारी विज्ञापन एजेंसी तीन विकल्पों के साथ आई। मुझे याद नहीं है कि अन्य दो क्या थे, लेकिन मैंने सिम्फनी को चुना।”
सिम्फनी जैसे शब्दकोश वाले शब्द को चुनना जोखिम भरा था। हालांकि बेकरी का कहना है कि आपके ब्रांड के नाम का दुरुपयोग का खतरा तब कम हो जाता है, जब आप अपने द्वारा संचालित बाजारों में ब्रांड नाम पंजीकृत करा लेते हैं। टोरेंट फार्मास्युटिकल्स को मूल रूप से ट्रिनिटी लेबोरेटरीज नाम दिया गया था। लेकिन जब 1976 में इसने तमिलनाडु के बाजार में प्रवेश किया, तो इस पर इसी नाम से एक अन्य और अधिक स्थापित चेन्नई स्थित कंपनी ने मुकदमा कर दिया था। संस्थापक उत्तमलाल मेहता ने अदालती चक्कर से बाहर निकलने का फैसला किया और कंपनी का नाम बदलकर टोरेंट कर दिया। जैसा वह कहते हैं, आज यह ऐतिहासिक है।
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